राजा भैया के हाथी घोड़े और सामंती ठाठ-बाट
सोमवार, 4 मार्च, 2013 को 20:15 IST तक के समाचार
सोलह साल पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री
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कल्याण सिंह ने प्रतापगढ़ ज़िले के कुंडा क़स्बे में हुंकार भरी थी – गुंडा विहीन कुंडा करौं, ध्वज उठाय दोउ हाथ.
कल्याण सिंह उसके बाद से राजनीतिक हिचकोले खाते
रहे हैं पर जिस आदमी को उन्होंने 1996 में समूल नष्ट करने का संकल्प लिया
था वो अब फिर सुर्ख़ियों में है.रघुराज प्रताप सिंह के राजनीतिक करियर की शुरुआत के दिनों में मैं उनसे मिलने कुंडा वाले उनके महल पहुँचा जहाँ उनके कई सौ एकड़ में फैली उनकी रियासत में आलीशान हाथी-घोड़े बँधे रहते थे.
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अपनी जिप्सी में मुझे वो अपना फ़ार्म दिखाने ले गए. रास्ते में जिप्सी रोककर उन्होंने मुझसे उनकी पसलियाँ छूने को कहा. मैं थोड़ा अचकचाया पर जब मैंने हाथ बढ़ाकर पसलियाँ छुईं तो पाया कि दो पसलियाँ टूटी हुई थीं.
राजा भैया ने कहा, “घुड़सवारी का शौक है हमें और घोड़े से गिरने से ही ये पसलियाँ टूटीं.”
राजा भैया का न्याय
उनके महल के बाहर कमर तक झुके हाथ जोड़े लोगों की क़तार लगी रहती थी.
पंद्रह साल पहले कुंडा थाने के रिकॉर्डों में राजा भैया और उनके पिता उदय प्रताप सिंह के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी से लेकर हत्या के कई मामले दर्ज थे और उनका नाम इलाक़े के “हिस्ट्री शीटरों” में शामिल था.
"उनके पिता के बारे में पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है कि वो 20 सदस्यों वाला अपराधी गिरोह के सरगना हैं. दस्तावेज़ के मुताबिक़ उदय प्रताप सिंह ख़तरनाक हथियारों से ख़ुद को सुसज्जित करना पसंद करते हैं और आज के इस आज़ादी के युग में अपने समाज-विरोधी विचारों के आधार पर “अलग राज्य” स्थापित करना चाहते हैं."
उदय प्रताप सिंह भी कई विरोधाभासों को साधते रहे हैं. उनसे मुझे मिलाने ख़ुद राजा भैया ले गए लेकिन उनके महल के बाहर काफ़ी दूर ही उन्होंने अपनी गाड़ी का इंजन बंद कर दिया.
राजा भैया ने मुझे बताया,"पिताजी पर्यावरणवादी हैं और उनके सामने गाड़ी का इंजन ऑन नहीं रखा जा सकता. महल के अंदर से ख़ुद उनकी गाड़ी स्टार्ट करके बाहर नहीं लाई जाती बल्कि उसे खींचकर लाया जाता है और बाहर स्टार्ट किया जाता है."
पिता-पुत्र
पर राजा भैया की माँ ने बिना ज़ाहिर किए उन्हें प्राथमिक शिक्षा दिलवाई.
राजा भैया ने सिर्फ़ 24 वर्ष की उम्र में राजनीति में हाथ आज़माया और आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत लिया.
तीन साल बाद उन्होंने फिर चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री कल्याण सिंह उनके ख़िलाफ़ प्रचार करने कुंडा पहुँचे. मगर भारतीय जनता पार्टी का आधिकारिक उम्मीदवार राजा भैया से हार गया.
चमत्कार तो तब हुआ जब कुंडा को “गुंडामुक्त” कराने का दम भरने वाले कल्याण सिंह ने कुछ ही समय में राजा भैया को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया.
मायावती ने जब कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापिस लिया था तब राजा भैया ने सरकार बचाने में कल्याण सिंह को भरपूर मदद दी.
लंबी और महँगी कारों में चलने वाले इस नौजवान की उत्तर प्रदेश की राजनीति में अचानक चर्चा होने लगी. और ये चर्चा अब तक जारी है.
मायावती के शासन में उनपर पोटा क़ानून के तहत मामला दर्ज करके जेल भेज दिया गया था. लेकिन समाजवादी पार्टी के जीतते ही वो फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में आ गए.
कई बार मुश्किल में पड़ने के बावजूद उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजा भैया किसी न किसी तरह अपनी जगह बना ही लेते हैं. इसलिए इस इस्तीफ़े को राजा भैया के राजनीतिक कैरियर का अंत नहीं माना जा सकता.
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