8.9.12




सीएजी (कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट आई तो राजनीतिक हलक़ों में हंगामा मच गया. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2006-2009 के बीच कोयले के आवंटन में देश को 1.86 लाख करोड़ का घाटा हुआ. जैसे ही यह रिपोर्ट संसद में पेश की गई, कांग्रेस के मंत्री और नेता सीएजी के खिला़फ जहर उगलने लगे. पहली प्रतिक्रिया यह थी कि सीएजी ने अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा का उल्लंघन किया. भारतीय जनता पार्टी को मौक़ा मिला और संसद में हंगामा मच गया. कई दिनों तक संसद का कामकाज ठप्प रहा. सीएजी ने वे सारी दलीलें दीं, जिन्हें चौथी दुनिया ने अप्रैल 2011 में छापा था.
यह कोई पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस ने सीएजी की रिपोर्ट को नकारा है. कॉमनवेल्थ गेम्स पर जब सीएजी की रिपोर्ट आई थी, तब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित विपक्ष के निशाने पर आ गई थीं. रिपोर्ट ने देश की जनता के सामने सुबूत पेश किया कि कैसे कॉमनवेल्थ गेम्स नेताओं और अधिकारियों के लिए लूट महोत्सव बन गया. कांग्रेस पार्टी की तऱफ से दलील दी गई कि सीएजी की रिपोर्ट फाइनल नहीं है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं होगी. संसद में बहस भी हुई, लेकिन आज भी शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं. उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसी तरह 2-जी घोटाले में सीएजी की रिपोर्ट पर बवाल हुआ. उस व़क्त भी कांग्रेस ने कहा कि सीएजी ने घाटे का गलत आकलन किया है. सरकार की तऱफ से हास्यास्पद दलील दी गई कि कोई घाटा हुआ ही नहीं है. कोयला घोटाले पर सरकार उन्हीं बातों को दोहरा रही है, जो उसने 2-जी घोटाले के व़क्त कही थीं. कांग्रेस सीएजी जैसी संवैधानिक संस्था की प्रतिष्ठा नष्ट कर रही है. वैसे लोक लेखा कमेटी को कांग्रेस पार्टी ने 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में पहले ही राजनीति की भेंट चढ़ा दिया है. अब इस रिपोर्ट के साथ क्या होगा, यह पता नहीं.
कांग्रेस पार्टी और यूपीए मंत्रिमंडल में ऐसा कौन है, जो यह दावा कर सकता है कि वह संविधान के मामले में डॉ. भीमराव अंबेडकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू से ज़्यादा ज्ञानी है? संसद में ऐसा कौन है, जो सीएजी से बेहतर ऑडिटिंग जानता है? क्या संसद को सीएजी की रिपोर्ट ठुकराने का अधिकार है? सरकार किस अधिकार से यह कहती है कि सीएजी ने अपने अधिकार की सीमा को लांघा है? क्या सीएजी की रिपोर्ट को सरकार खारिज कर सकती है?
सीएजी की रिपोर्ट पर इसलिए हंगामा मचा, क्योंकि उसने भारत के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले को उजागर किया है. सीएजी की रिपोर्ट पर इसलिए भी हंगामा हुआ, क्योंकि इसमें सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह निशाने पर आ गए हैं. इससे पहले जब कोयला घोटाले को लेकर अन्ना हजारे और उनकी टीम ने मनमोहन सिंह पर आरोप लगाए थे तो उन्होंने कहा था कि अगर उन पर शक की सुई भी गई तो वह राजनीति छोड़ देंगे. सीएजी रिपोर्ट ने जब सुबूत दिए तो इस्ती़फा देने के बजाय सरकार सीएजी के अधिकारों और रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े करने लगी. ऐसे में सवाल यह है कि सीएजी के दायित्व एवं अधिकारों पर कांग्रेस पार्टी और सरकार की तऱफ से जो प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं, क्या वे सही हैं?
एक दलील दी जा रही है कि सीएजी की रिपोर्ट पर पीएसी में बहस होगी. क्या बहस होगी? बहस करने का अधिकार किसको है? क्या पीएसी के पास यह अधिकार है कि वह सीएजी की रिपोर्ट को खारिज कर सके? इन सवालों को समझने के लिए सीएजी को समझना ज़रूरी है. जो लोग यह दलील दे रहे हैं कि सीएजी की रिपोर्ट फाइनल नहीं है, उन्हें एम आर मसानी के विचारों को जानने की ज़रूरत है. वह 1967-69 में संसद की लोक लेखा कमेटी के चेयरमैन थे. एम आर मसानी के मुताबिक़, सीएजी की रिपोर्ट किसी भी सरकारी अधिकारी की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए पर्याप्त है. हकीकत यह है कि सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी में भेजना मामले को ठंडे बस्ते में डालना है, क्योंकि पीएसी अगर किसी निर्णय पर भी पहुंच गई तो उससे कुछ नहीं होगा. उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है. सरकार कहती है कि सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी में भेजना कार्य प्रणाली का हिस्सा है, लेकिन क्या कार्य प्रणाली का महत्व इतना है कि संविधान की आत्मा का ही गला घोंट दिया जाए? क़ानून मंत्री की दलील संविधान निर्माताओं एवं संविधान सभा के विचारों और विश्वास के विरुद्ध है. क्या सरकार यह कहना चाहती है कि सीएजी की रिपोर्ट अगर किसी घोटाले के बारे में बताती है तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी.
सीएजी देश की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है, जो भारतीय राजनीति में जवाबदेही सुनिश्चित करती है. सीएजी को भारत की सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्था के रूप में जाना जाता है और इसने 16 नवंबर, 2010 को अपनी स्थापना के 150 वर्ष पूरे किए हैं. ऐसी संस्था का महत्व ब्रिटिश सरकार ने तब महसूस किया, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1858 में सत्ता संभाली. आज दुनिया भर के देशों में सीएजी जैसी संस्थाएं हैं, जो ज़्यादा शक्तिशाली हैं. उनके पास ऑडिट करने के साथ-साथ किसी भी मामले की जांच करने की शक्ति है. भारत में एक ग़लत धारणा बन गई कि सीएजी स़िर्फ ऑडिट करने वाली संस्था है. सीएजी का पूरा अर्थ है कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल. मतलब, यह सरकारी खर्च का नियंत्रक भी है और ऑडिटर भी. यही हमारे संविधान में भी है. सीएजी की रिपोर्ट संसद में पेश की जाती है. इस रिपोर्ट का आधार यह होता है कि सरकारी पैसे का उपयोग अधिकारियों द्वारा कितनी समझदारी, ईमानदारी और व्यवस्थित तरीक़े से किया गया है. अधिकारियों को किसी योजना के तहत ही सरकारी धन दिया जाता है. यह धन उनका निजी धन नहीं है. इस धन को सही तरीक़े से खर्च करना और योजना को सफल बनाना उनका प्राथमिक दायित्व होता है. अब सवाल यह है कि क्या सीएजी का काम स़िर्फ ऑडिट रिपोर्ट भेजना है, क्या सीएजी का काम यह नहीं है कि जहां-जहां ग़लतियां हुई हैं, उनके बारे में संसद को बताया जाए. हैरानी की बात यह है कि मनमोहन सिंह की सरकार और उनके मंत्री भी यही मानते हैं कि सीएजी का काम स़िर्फ ऑडिट करना है.
अब सवाल यह है कि संविधान में क्या है? भारत के संविधान के मुताबिक़, सीएजी राष्ट्रपति को ऑडिट रिपोर्ट पेश करेगी, जिसे संसद में रखा जाएगा. इससे ज़्यादा संविधान में कुछ नहीं कहा गया. इससे यह नहीं समझा जा सकता है कि आखिर सीएजी का रोल क्या है. इसे समझने के लिए हमें संविधान सभा की उस बहस को जानना होगा, जब इस संस्था को भारत में लागू किया जा रहा था. संविधान निर्माताओं ने सीएजी को बनाने के मक़सद के बारे में सा़फ-सा़फ शब्दों में कहा है. संविधान सभा में सीएजी को लेकर जो बातें कही गईं, उनसे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देश के प्रजातंत्र को तानाशाही से बचाने और सरकार को जवाबदेह बनाने का दायित्व न्यायपालिका और सीएजी को दिया गया है. संविधान सभा में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सीएजी को भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी बताया था और कहा था कि सीएजी की ज़िम्मेदारी न्यायपालिका से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है. वित्तीय मामलों की सबसे बड़ी निर्णायक संस्था सीएजी होनी चाहिए, तब ही शायद देश में स्वराज स्थापित हो सकता है.
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सीएजी को सुप्रीम कोर्ट जैसा महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि सीएजी का दायित्व न्यायपालिका से कहीं ज़्यादा बड़ा है. संविधान के कई प्रावधानों के ज़रिए सीएजी की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा स्थापित की गई है. ग़ौर करने वाली बात यह है कि नियुक्ति के व़क्त सीएजी वैसे ही शपथ लेते हैं, जैसे सुप्रीम कोर्ट के जज लेते हैं. इन दोनों पर संविधान को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी है, लेकिन मंत्री जब शपथ लेते हैं तो कहते हैं कि वे संविधान के मुताबिक़ काम करेंगे. डॉ. भीमराव अंबेडकर के बयान की रोशनी में यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सीएजी पर यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी द्वारा जो दलीलें दी जा रही हैं, वे ग़लत हैं.
यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि संविधान सभा में डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. राधाकृष्णन एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे विद्वानों ने सीएजी के महत्व और दायित्व को सराहा. संविधान सभा में सीएजी के मामले में दिए गए बयानों में सबसे सटीक बयान है संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का. उन्होंने सीएजी को सुप्रीम कोर्ट जैसा महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि सीएजी का दायित्व न्यायपालिका से कहीं ज़्यादा बड़ा है. संविधान के कई प्रावधानों के ज़रिए सीएजी की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा स्थापित की गई है. ग़ौर करने वाली बात यह है कि नियुक्ति के व़क्त सीएजी वैसे ही शपथ लेते हैं, जैसे सुप्रीम कोर्ट के जज लेते हैं. इन दोनों पर संविधान को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी है, लेकिन मंत्री जब शपथ लेते हैं तो कहते हैं कि वे संविधान के मुताबिक़ काम करेंगे. डॉ. भीमराव अंबेडकर के बयान की रोशनी में यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सीएजी पर यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी द्वारा जो दलीलें दी जा रही हैं, वे ग़लत हैं.
क़द्दावर कांग्रेसी नेता बी पट्टावी सीतारमैया ने संविधान सभा में कहा कि देश का सीएजी सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह स्वतंत्र और आर्थिक मामलों में सुप्रीम होना चाहिए. सीएजी स़िर्फ ऑडिटर जनरल नहीं है, वह न्यायिक अधिकारी है. वह न्याय की मनोदशा से हर फैसला लेगा, उसका हर फैसला न्यायपूर्ण होगा, क्योंकि वह यह बताएगा कि क्या सही है और अधिकारियों ने क्या किया है.
कभी-कभी उसे अधिकारियों के खिला़फ बोलना होगा और उनकी करतूतों का पर्दा़फाश करना होगा. इसलिए सीएजी को ऐसे अधिकार मिले हैं, ताकि वह सरकार, किसी राजनीतिक दल या किसी सरकारी विभाग के गुस्से का शिकार न बन सके. हम जब तक एक ऐसे सीएजी का गठन नहीं करते, जो आर्थिक मामले का सबसे बड़ा निर्णायक हो, तब तक इस देश में स्वराज नहीं आ पाएगा. बी पट्टावी सीतारमैया के वक्तव्य से भी यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यूपीए सरकार के बयानों और संविधान सभा की भावनाओं में बहुत अंतर है.
क़ानून निर्माताओं ने देश में एक स्वतंत्र सीएजी का गठन किया था, एक मज़बूत सीएजी का गठन कांग्रेस के ही नेताओं ने किया था. यह गठन जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में किया गया था. आज वही पार्टी इस संवैधानिक संस्था पर हमला कर रही है. यूपीए सरकार की यह आदत सी बन गई है कि जब भी सीएजी की रिपोर्ट आती है तो वह उसे झूठा साबित करने के लिए तर्क देने लगती है. कांग्रेस पार्टी को समझना पड़ेगा कि कोर्ट में दलील पेश करने और जनता के सामने तर्क पेश करने में बड़ा फर्क़ होता है. अदालत दलीलों और सुबूतों पर चलती है, लेकिन राजनीति लोगों के विश्वास पर चलती है. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ने देश में भ्रष्टाचार के खिला़फ आंदोलन करके लोगों को जगा दिया है. लोग अब सरकार से पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद करते हैं. आज़ादी के 64 सालों के बाद यह लिखते हुए खराब लगता है कि कांग्रेस पार्टी एक झूठ को सच साबित करने की ज़िद में सीएजी जैसी संस्था का राजनीतिकरण कर रही है, उसकी प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुंचा रही है. इसका खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना होगा, क्योंकि सीएजी जैसी संवैधानिक संस्था पर हमला करना देश के प्रजातंत्र पर हमला है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.