6.11.12

बिना ब्‍याज का कर्ज और सस्‍ती जमीन: यह रिश्‍वत नहीं तो क्‍या है



नए-नए बने राजनीतिक दल (अरविंद केजरीवाल द्वारा घोषित) ने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर एक साथ कई आरोप लगाए हैं. इन तमाम आरोपों में कई चीजें शामिल हैं और इनमें कई तथ्य एवं आंकड़े बहुत ही बड़े हैं, लेकिन इस सबके बीच अगर सिद्धांत की बात की जाए तो दो चीजें एकदम स्पष्ट हैं. पहला यह कि रॉबर्ट वाड्रा की कुल पहचान यही है कि वह सोनिया गांधी के दामाद हैं. प्रियंका गांधी से शादी के पहले वह भले ही मुरादाबाद के एक बिजनेसमैन थे, लेकिन थे तो एक सामान्य से बिजनेसमैन ही. प्रियंका गांधी से शादी होने के बाद और सोनिया गांधी के दामाद बनने के बाद उनकी स्थिति अलग हो गई. दूसरी बात यह कि रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ, दोनों ने यह स्वीकार किया है कि कहीं कुछ गलत हुआ है, भ्रष्टाचार हुआ है. मैं बताता हूं कि यह कैसे हुआ?
मान लीजिए, डीएलएफ कहता है कि उसने वाड्रा को ब्याज रहित 50 लाख रुपये लोन दिए. वाड्रा भी लोन लेने की बात को स्वीकारते हैं और अन्य कॉरपोरेट बॉडीज की तरह डीएलएफ कह रहा है कि यह सब कुछ क़ानूनी रूप से सही है. अब यहां डीएलएफ द्वारा लोन दिए जाने और उसकी वैधता (लीगलिटी) पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है, लेकिन रॉबर्ट वाड्रा द्वारा ब्याज रहित लोन लिए जाने की बात निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार का एक उदाहरण है. भ्रष्टाचार का मतलब भ्रष्टाचार ही है, क्योंकि हर महीने 50 हज़ार रुपये की ब्याज माफी घूस की तरह ही है. डीएलएफ के केपी सिंह ने वाड्रा को कोई अपना व्यक्तिगत पैसा नहीं दिया है. उन्होंने यह पैसा अपनी कंपनी से दिया है. कंपनी ने बैंकों से हज़ारों करोड़ रुपये का लोन ले रखा है. डीएलएफ 12 से 15 फीसदी ब्याज बैंक को देती है, लेकिन अगर 12 फीसदी ब्याज की बात मानें तो 50 लाख रुपये के लोन का सालाना ब्याज हुआ 6 लाख रुपया यानी 50 हज़ार रुपया प्रति माह. अब कोई कह सकता है कि यह कोई बड़ी रकम नहीं है, लेकिन सवाल रकम के बड़ी या छोटी होने का नहीं है, सवाल सिद्धांत का है. एक ऐसा बिजनेस घराना, जिसे जाहिर तौर पर सरकार से हर दिन काम पड़ता है और जिसे सरकार की कृपा चाहिए, उसने रॉबर्ट वाड्रा को ब्याज रहित लोन देकर मानो अपने पे-रोल पर रख लिया और वाड्रा ने बाकायदा उसे स्वीकार भी किया. दोनों पार्टियों ने इन तथ्यों को स्वीकार कर लिया है. यहां पर भ्रष्टाचार निरोधी क़ानून की बात आती है. कोई अगर इस मामले को लेकर पीआईएल (जनहित याचिका) दायर करता है तो ब्याज रहित करोड़ों रुपये का लोन लेने के लिए रॉबर्ट वाड्रा के खिला़फ एफआईआर दर्ज की जा सकती है. आप इसे महज एक लोन नहीं बता सकते. करोड़ों रुपये का ब्याज रहित लोन भारत के किसी साधारण आदमी को मिल ही नहीं सकता.
डीएलएफ को यह बताना चाहिए, स्पष्ट करना चाहिए कि उसने और कितने ऐसे लोगों को ब्याज रहित लोन दिए हैं. अगर उसने और किसी को ऐसा लोन नहीं दिया है, तब वह इस बात को भी खारिज नहीं कर सकती कि वाड्रा को ब्याज रहित लोन इसलिए दिया गया, क्योंकि वह एक महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली परिवार से संबंध रखते हैं और किसी को भी अपनी ताकत से प्रभावित कर सकते हैं. अब केंद्र सरकार के मंत्री अरविंद केजरीवाल से कह रहे हैं कि वह इन आरोपों को साबित करें. यह किसी मजाक से कम नहीं है.
डीएलएफ को यह बताना चाहिए, स्पष्ट करना चाहिए कि उसने और कितने ऐसे लोगों को ब्याज रहित लोन दिए हैं. अगर उसने और किसी को ऐसा लोन नहीं दिया है, तब वह इस बात को भी खारिज नहीं कर सकती कि वाड्रा को ब्याज रहित लोन इसलिए दिया गया, क्योंकि वह एक महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली परिवार से संबंध रखते हैं और किसी को भी अपनी ताकत से प्रभावित कर सकते हैं. अब केंद्र सरकार के मंत्री अरविंद केजरीवाल से कह रहे हैं कि वह इन आरोपों को साबित करें. यह किसी मजाक से कम नहीं है. क्या ये मंत्री केजरीवाल को लोक अभियोजक या सीबीआई मानकर आरोप साबित करने के लिए बोल रहे हैं? केजरीवाल ने जो सूचना सार्वजनिक की है, वह किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक है. कहानी यहीं खत्म नहीं होती. वाड्रा ने डीएलएफ से ही ब्याज रहित करोड़ों का लोन लेकर उसी डीएलएफ से संपत्ति भी खरीदी. मैं इन कॉरपोरेट्‌स की चालाकियों को समझता हूं. कॉरपोरेट्‌स की चालाकी देखिए, कैश के जरिए घूस देने की बात तो आपने सुनी होगी, लेकिन यहां चेक के जरिए घूस देकर ज़मीन खरीदने को कहा गया. कृषि वाली ज़मीन खरीदे जाने के बाद और हाथ में आते ही गैर कृषि योग्य बन गई. ऐसे में लाखों की ज़मीन करोड़ों की बन गई. आम तौर पर बिजनेसमैन इसी तरह की चालाकी करते हैं. हाल में इस तरह के कई मामले सामने आए हैं. नेताओं द्वारा बनाए गए ट्रस्ट को ये बिजनेसमैन दान देते हैं, इसे दान कहा जाता है और आयकर विभाग भी इसे नहीं रोकता, लेकिन क्या यह सचमुच दान है? इतनी छोटी सी संस्था और इतना बड़ा दान! जाहिर है, यह दान नहीं, रिश्वत है.
कर्नाटक में येद्दुरप्पा के बेटे से एक बिजनेसमैन ने ज़मीन खरीदी. 2 करोड़ की ज़मीन उसने 20 करोड़ में खरीदी. जाहिर है, बाकी का 18 करोड़ रिश्वत ही है. हमेशा दस्तावेजों में ऐसी चीजों को सही दिखाया जाता है, लेकिन सच्चाई भी सबको मालूम रहती है. रॉबर्ट वाड्रा ने जो ब्याज रहित लोन लिया है, वह क्यों दिया गया, इसे सारे लोग जानते और समझते हैं और जो ज़मीन उन्होंने जितने में खरीदी, उस ज़मीन की असली क़ीमत को भी लोग जानते हैं. इसमें रहस्य जैसी कोई भी बात नहीं है. सरकार के मंत्री ही केवल ऐसे लोग हैं, जो इस बात को नहीं जानते हैं. वे लोग इन बातों को नहीं समझते हैं. सरकारी संस्थाएं किन कारणों से अंधी बनी हुई हैं, वह किसी से छुपा नहीं है. कल अगर यह सरकार गिर जाती है और किसी दूसरे दल या गठबंधन की सरकार बनती है तो इसी तरह के कोई दूसरे वाड्रा पैदा हो जाएंगे. एक जानकारी ही हम लोगों के पास है. इसके अलावा उन्होंने और क्या-क्या किया है, मैं नहीं जानता हूं. रॉबर्ट वाड्रा को सामने आना चाहिए और बताना चाहिए कि प्रियंका गांधी से शादी करने से पहले उनके पास कितनी संपत्ति थी, उनकी कंपनी का टर्न ओवर कितना था. वह सामान्य से आदमी थे, उनकी संपत्ति भी बहुत अधिक नहीं थी. कहा जा सकता है कि कुछ भी नहीं थी. उनके पास अभी जो संपत्ति है, वह शादी के बाद की है. इसी परिवार का एक दूसरा उदाहरण है, जो इससे बिल्कुल अलग और विपरीत है. इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से शादी की, जो कि एक सामान्य आदमी थे. अंतिम समय तक वह एक सामान्य आदमी ही बने रहे. उनके ससुर पंडित जवाहर लाल नेहरू थे, लेकिन फिरोज गांधी ने किसी भी क्षण ऐसा नहीं सोचा कि अपने ससुर के पद का फायदा उठाया जाए. वह हमेशा सोचते थे कि जवाहर लाल नेहरू उनके ससुर हैं, इसलिए उन्हें उदाहरण योग्य व्यवहार करना चाहिए. इन दो दामादों का उदाहरण यह दिखाता है कि हम कहां से कहां पहुंच गए हैं. अब सरकार को जाग जाना चाहिए, सरकार चलाने वाली पार्टी को जाग जाना चाहिए और समाज में हो रही इस तरह की लूट को रोकना चाहिए.
एक बार इकोनॉमिक टाइम्स ने रॉबर्ट वाड्रा पर एक स्टोरी की थी. यह अनुमान लगाया जा रहा था कि विपक्ष इस मुद्दे को उठाएगा, लेकिन न जाने किन वजहों से ऐसा नहीं हुआ. उन वजहों को समझना मुश्किल है, लेकिन अनुमान लगाना कठिन नहीं है. सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने इस मुद्दे को अपने हाथ से निकल जाने दिया. अगर सरकार विफल होती है तो यह एक गलत बात है, लेकिन विपक्ष असफल साबित होता है तो यह लोकतंत्र के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है.
दो और बातें, जिन्हें मैं आपके नोटिस में लाना चाहूंगा. एक तो यह कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा के पास ये सारे तथ्य थे, लेकिन लोकसभा और राज्यसभा में नेता विपक्ष ने इस मुद्दे को नहीं उठाया. एक बार इकोनॉमिक टाइम्स ने रॉबर्ट वाड्रा पर एक स्टोरी की थी. यह अनुमान लगाया जा रहा था कि विपक्ष इस मुद्दे को उठाएगा, लेकिन न जाने किन वजहों से ऐसा नहीं हुआ. उन वजहों को समझना मुश्किल है, लेकिन अनुमान लगाना कठिन नहीं है. सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने इस मुद्दे को अपने हाथ से निकल जाने दिया. अगर सरकार विफल होती है तो यह एक गलत बात है, लेकिन विपक्ष असफल साबित होता है तो यह लोकतंत्र के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. अगर भाजपा इसी तरह कांग्रेस के हर एक सही-गलत काम में हाथ मिलाती रही तो उसके लिए कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर पाना मुश्किल हो जाएगा और सत्ता में आ पाना तो और भी मुश्किल हो जाएगा. अगर वह भी कांग्रेस की तरह है तो वह देश को कोई विकल्प नहीं दे सकती.
आप भारत को बनाना रिपब्लिक बनाना चाहते हैं. इसे रोकिए. जनता इसके लिए आपको माफ नहीं करेगी. वित्त मंत्री ने भी रॉबर्ट वाड्रा का बचाव किया है, यह शर्म की बात है. भारत में और भी कई व्यापारिक घराने हैं, जिन पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं, जिनमें टाटा, बिड़ला, अंबानी तक शामिल हैं. वित्त मंत्री कभी उनका बचाव करने तो नहीं आते. 2-जी और कोल ब्लॉक आवंटन मामले में भी सरकार यह कहती रही कि किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ. यहां सरकार के साथ कोई डील नहीं हुई है, डील डीएलएफ के साथ हुई है.
दूसरी तऱफ, एक और मजाक की बात यह है कि डीएलएफ ने कहा है कि यह डील पारदर्शी ढंग से की गई. मैं इससे सहमत हूं. यह बहुत ही पारदर्शी तरीके से की गई, इसीलिए हम लोग इसके बारे में जान पाए. यह बहुत ही सामान्य बात है. इसे मजाक ही कहा जा सकता है कि कांग्रेस के मंत्री रॉबर्ट वाड्रा के समर्थन में उतर आए हैं, लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों? कुछ लोग कह सकते हैं कि रॉबर्ट वाड्रा पर हमला कांग्रेस पर किया गया हमला है. निश्चित तौर पर वाड्रा कांग्रेस में किसी पद पर नहीं हैं और वह निश्चित तौर पर यह कह सकते हैं कि मैंने इस पार्टी का फायदा उठाकर अपनी संपत्ति अर्जित नहीं की है. उन्होंने क्या किया है, इसे समझने से पहले उन्हें एक आम नागरिक मान लेते हैं. उन्हें अपने बचाव का मौका दिया जाना चाहिए. सरकार में शामिल लोग उनके बचाव की कोशिश क्यों कर रहे हैं? यह बहुत ही मजाकिया किस्म की बात है. अगर विपक्षी दल इस मुद्दे को उठाना नहीं चाहते और केजरीवाल इसे उठाते हैं तो आप कहते हैं कि वह इसे साबित करें, अन्यथा उन्हें देख लिया जाएगा. लेकिन असल में होना क्या चाहिए?
मेरे हिसाब से सरकार को इस मामले की जांच करने के लिए एक एसआईटी यानी विशेष जांच दल गठित करना चाहिए और केजरीवाल को इस एसआईटी का चेयरमैन बना दिया जाना चाहिए. तब वह इन आरोपों को साबित कर देंगे. उन्हें वह अधिकार दीजिए, जिसकी उन्हें ज़रूरत है, उन्हें मौका दीजिए. तब भी वह इन आरोपों को साबित नहीं कर पाते हैं तो उनके ़िखला़फ एक्शन ले सकते हैं. रॉबर्ट वाड्रा उन लोगों के काफी क़रीबी हैं, जो सत्ता में हैं. उन्हें अपनी बातें खुद कहने दीजिए. विपक्षी दल को यह मुद्दा उठाने दीजिए. आप भारत को बनाना रिपब्लिक बनाना चाहते हैं. इसे रोकिए. जनता इसके लिए आपको माफ नहीं करेगी. वित्त मंत्री ने भी रॉबर्ट वाड्रा का बचाव किया है, यह शर्म की बात है. भारत में और भी कई व्यापारिक घराने हैं, जिन पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं, जिनमें टाटा, बिड़ला, अंबानी तक शामिल हैं. वित्त मंत्री कभी उनका बचाव करने तो नहीं आते. 2-जी और कोल ब्लॅाक आवंटन मामले में भी सरकार यह कहती रही कि किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ. यहां सरकार के साथ कोई डील नहीं हुई है, डील डीएलएफ के साथ हुई है. मैं समझ सकता हूं कि डीएलएफ यह कह रही है कि कुछ भी गलत नहीं हुआ है, लेकिन चिदंबरम भी यह कह रहे हैं कि कुछ भी गलत नहीं हुआ है, तो यह बहुत हास्यास्पद बात है. इसका क्या अर्थ है? मैं समझता हूं कि सरकार अपने सिद्धांतों से भटक रही है और स्वीकार्यता के स्तर से भी नीचे गिरती जा रही है. जितनी जल्दी सरकार यह सब रोके, उतना ही अच्छा होगा.

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