खाप पंचायत की आंखों देखी, कानों सुनी
रविवार, 14 अक्तूबर, 2012 को 08:08 IST तक के समाचार
हरियाणा के सोनीपत जिले में जाट
महासभा भवन के बड़े से हॉल में विभिन्न खापों से करीब 100 लोग जमा थे.
शनिवार को आयोजित इस सर्व खाप पंचायत में मंथन होना था कि हरियाणा में
सामूहिक बलात्कार की घटनाओं को कैसे रोका जाए.
कई विचार आए. बलात्कारियों को अपराधी कहा गया.
सफेद दाढ़ी रखे वीरेंद्र सिंह काद्ययान ने जोरदार आवाज़ में सुझाव दिया कि
लड़के और लड़कियों को स्कूलों में साथ नहीं पढ़ाया जाए क्योंकि कम उम्र में
जवानी जोश मारती है.कुछ ने कहा शादी की उम्र को 18 से 16 कर दिया जाए क्योंकि प्रजनन की क्षमता तो 12 साल ही में आ जाती है और अगर लड़की किसी के साथ भाग जाती है तो माता-पिता क्या करेंगे?
एक वक्ता सूबे सिंह ने ‘वैज्ञानिक’ कारण दिए. कहा कि अगर लड़की और उसके माता-पिता 15 साल में शादी को तैयार है तो फिर कानूनी रोक क्यों?
गुस्सा मीडिया पर भी उतरा. 70 साल से ज्यादा के एक बुजुर्ग ने अपने हाथों को शरीर पर फेरते हुए बताया कि टीवी में कैसे लड़का और लड़की लिपटते हुए दिखाई देते हैं, और इन दृश्यों से कैसे काम वासना भड़कती है.
बेटी की जाति नहीं
"खाप पंचायतों को ऐसे कटघरे में खड़ा किया जा रहा है कि गैंगरेप खाप पंचायतें करवा रही हैं? बेटी की कोई जाति नहीं होती. बेटी बेटी होती है"
डॉक्टर संतोष दहिया, सर्व जाट खाप महापंचायत की महिला प्रमुख
एक ने कहा, “जाट हमेशा रक्षक रहा है, भक्षक नहीं.”
अदालतों पर भी गुस्सा निकला जहाँ “भ्रष्ट वकीलों” पर न्याय व्यवस्था टिकी होती है.
पुरुषों से भरे इस हॉल में एकमात्र महिला प्रतिनिधि चुपचाप नोट्स बना रही थीं. डॉक्टर संतोष दहिया सर्व जाट सर्व खाप महापंचायत की महिला प्रकोष्ठ की प्रमुख हैं. उन्होंने शादी की उम्र को घटाने का विरोध किया लेकिन उनकी बात का विरोध करने वालों की भी कमी नहीं थी.
उन्होंने कहा, “खाप पंचायतों को ऐसे कटघरे में खड़ा किया जा रहा है कि गैंगरेप खाप पंचायतें करवा रही हैं? बेटी की कोई जाति नहीं होती. बेटी बेटी होती है.”
उधर ह़ॉल के बाहर एक व्यक्ति ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, धर्मवीर गोयत ने गलत क्या कहा.
उन्होंने धीमी आवाज मुझसे कहा, “अगर कोई लड़की नहीं चाहे, तो आप उससे बलात्कार नहीं कर सकते. चाहे तो कोशिश करके देख लेना? ये लड़की ही होती है जो किसी लड़के के साथ भाग जाती है, फिर बलात्कार के आरोप लगते हैं.”
एक दूसरे व्यक्ति ने कहा कि धर्मवीर गोयत के आंकड़े कुछ गलत थे, 90 प्रतिशत नहीं बल्कि 50 प्रतिशत बलात्कार मामलों में लड़कियों की सहमति होती है.
ऐसे तर्कों को सुनने के थोड़ी देर बाद तक दिमाग सुन्न सा हो गया.
प्रदर्शन
वो कहती हैं, “हरियाणा में एक नया ट्रेंड आया है कि दिन दहाड़े 8-9 लड़के जान-पहचान की लड़कियों के साथ सुनियोजित तरीके से बलात्कार कर रहे हैं. बहुत सारे मामलों में पीड़ित दलित लड़कियाँ होती हैं, और माँ विधवा. ऐसे में पलटवार होने की संभावना नहीं होती.”
जानकार खापों को पुरुष-प्रधान समाज का प्रदर्शन के तौर पर देखते हैं जहाँ महिलाओं को हमेशा दबाकर रखा गया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर डीआर चौधरी की खापों पर लिखी किताब जल्द ही बाजार में आने वाली है.
वो कहते हैं, “जो कहावते हैं जैसे कि औरत तो पैर की जूती है, औरत की अक्ल तो गूदी में होती है, या फिर औरतों को नीचा दिखाने वाली दूसरी बातें हैं, वो इसी मानसिकता का प्रदर्शन है.”
इस समाज में पारिवारिक फैसलों में भी औरत की कोई हिस्सेदारी नहीं होती है, उन्हें बहुत अहमियत नहीं दी जाती.
जानकार मानते हैं कि खापों की परंपरा अब जाटों तक सीमित रह गई है. पहले पुराने जमाने में जहाँ दूसरी जातियाँ भी खापों में शामिल होती थीं, अब खापें गोत्र-आधारित जाट संस्था बनकर रह गई हैं, लेकिन आलोचनाओं से बचने के लिए इन्हें सर्वजाति का नाम दे दिया जाता है.
खापों की आलोचना होती रही है कि वो महिलाओं के जीवन के बारे में अहम फैसले लेते वक्त महिलाओं को ही फैसले लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं करते.
प्रोफेसर चौधरी बताते हैं, “13 अप्रेल 2010 को कुरुक्षेत्र खाप की महापंचायत के दौरान एक महिला विंग को खड़ा किया गया. जब महिला विंग के प्रधान ने महिलाओं को पारिवारिक जायदाद में हिस्सा दिए जाने का सवाल उठाया तो उसे बोलने नहीं दिया गया. कुल मिलाकर ये जाट समाज का जमावड़ा बनकर रहा गया है.”
कल आज और कल
प्रोफेसर चौधरी कहते हैं कि खापों के दो मुख्य काम होते थे. एक, हमले के दौरान लोगों को सुरक्षा प्रदान करना और दूसरा, अपने आपसी झगड़ों का निपटारा करना.
वो बताते हैं कि उस वक्त खाप की भूमिका प्रभावशाली और लाभकारी थी, लेकिन अब इसका औचित्य नहीं रह गया है.
राजनीतिज्ञ खापों को जाट वोट बैंक के कारण महत्वपूर्ण मानते हैं. ओमप्रकाश चौटाला और भूपिंदर सिंह हुड्डा दोनो को ही खापों का हिमायती माना जाता है लेकिन खापों का प्रभाव कम हुआ है.
दरअसल, हरियाणा के राजनीतिज्ञ किसी को नाराज नहीं करना चाहते. दलितों पर अत्याचार और बलात्कार इस समाज में हमेशा होता रहा है. लेकिन फर्क ये आया है कि पहले के मुकाबले अब दलितों ने अपनी संस्थाओं और पार्टियों के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद की है और उन्हें मीडिया का भी साथ मिला है.
प्रोफेसर चौधरी कृषक समाज से हैं और बताते हैं कि उनके वक्त भी जमींदार दलितों लड़कियों का शोषण किया करते थे.
हरियाणा में लिंग अनुपात भी एक बड़ी समस्या है. प्रोफेसर चौधरी के मुताबिक हरियाणा में 1000 लड़कों के मुकाबले मात्र 830 लड़कियाँ हैं.
वो बताते हैं, “ऐसे गाँव हैं जहाँ लड़कों ने शादी की उम्मीद ही छोड़ दी है. उनमें से एक लंपट तबका खड़ा हो गया है. कुछ के पास पैसा आ गया है क्योंकि जमीनों के भाव बढ़ गए हैं. उनके पास शराब औऱ गाड़ियाँ हैं और काम करने को कुछ नहीं. ऐसे लोग लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं.”
वो कहते हैं कि प्रशासन में भ्रष्टाचार औऱ निकम्मेपन के कारण लोगों में भय कम हुआ है क्योंकि प्रशासन राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव में आ जाता है.
“लोग समझते हैं कि हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा.”
'आर्थिक उत्थान नहीं'
वो कहते हैं कि हरियाणा में हरित क्रांति हुई, स्कूल कॉलेजों का जाल फैला, लेकिन सांस्कृतिक उत्थान में हरियाणा बहुत पीछे है.
प्रोफेसर चौधरी बताते हैं, “यहाँ अच्छी पत्र-पत्रकाएँ नहीं हैं, फिल्म उद्योग नहीं है, नाटक की परंपरा नहीं है. स्वांग होता था वो भी खत्म हो गया है. यहाँ साहित्य-संबंधी सांस्कृतिक संस्थाएँ नहीं हैं. हरियाणा में सांस्कृतिक तौर पर पिछड़ापन है. समाज सुधार आंदोलन हमारे यहाँ बहुत कमजोर रहा है. आर्य समाज का प्रभाव रहा है, लेकिन अब वो भी खत्म हो गया है. समाज सुधार आंदोलन की कमी के कारण सामाजिक और मानसिक पिछड़ापन है.”
“हरियाणा के अंदर एक आर्ट्स गैलरी नहीं है. आर्थिक विकास औऱ सांस्कृतिक उत्थान में जो खाई से और भी दूसरी बड़ी समस्याएँ जुड़ी हुई हैं.”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.