18.10.12

एक अफसर का खुलासाः ऐसे लूटा जाता है जनता का पैसा



महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एवं शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने अपने पद से इस्ती़फा दे दिया है. हालांकि उनके इस्ती़फे के बाद राज्य में सियासी भूचाल पैदा हो गया है. अजीत पवार पर आरोप है कि जल संसाधन मंत्री के रूप में उन्होंने लगभग 38 सिंचाई  परियोजनाओं को अवैध तरीक़े से म़ंजूरी दी और उसके बजट को मनमाने ढंग से बढ़ाया. इस बीच सीएजी ने महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले की जांच शुरू कर दी है. पवार ने वर्ष 2009 में जनवरी से लेकर अगस्त के दौरान 20 हज़ार करोड़ रुपये की परियोजनाओं को हड़बड़ी में क्यों म़ंजूरी दी, इसे लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं. राज्य में सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण में भारी अनियमितताओं को लेकर कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने श्वेतपत्र जारी करने की घोषणा विधानसभा के अंदर और बाहर की थी, मगर राकांपा नेताओं के दबाव में अब तक सिंचाई परियोजनाओं में हुए भारी-भरकम खर्च की अपेक्षा सिंचाई के संसाधनों में मामूली सुधार न होने की हक़ीक़त दबकर रह गई. अब राज्यस्तरीय तकनीकी सलाहकार समिति एवं मेंढेगिरी जांच समिति के सदस्य मुख्य अभियंता विजय बलवंत पांढरे द्वारा प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखे गए पत्र से चव्हाण सरकार की नींद उड़ गई है. उनका यह पत्र खुलासा करता है कि सिंचाई परियोजना के निर्माण में नौकरशाहों, ठेकेदारों एवं राजनेताओं का गठजोड़ किस तरह गोलमाल करके जनता का पैसा अपनी तिजोरी में भरता है. अभियंता पांढरे का यह पत्र किसी श्वेतपत्र से कम नहीं है. हालांकि चव्हाण सरकार किसी भी सूरत में इस पत्र को सार्वजनिक नहीं करना चाहती थी. आ़िखर इस पत्र में ऐसा क्या लिखा है कि महाराष्ट्र सरकार के होश उड़े हुए हैं. इस पत्र को चौथी दुनिया द्वारा सार्वजनिक किया जा रहा है, ताकि जनता को पता चले कि उसके पैसे से निर्मित होने वाली सिंचाई परियोजनाएं 15-20 साल तक क्यों अधूरी पड़ी रहती हैं, कैसे उनकी लागत में इज़ा़फा करके ठेकेदार, नेता और अ़फसर चांदी काट रहे हैं.
महाराष्ट्र में हज़ारों करोड़ रुपये का सिंचाई घोटाला हो गया और पूरा तंत्र आंख बंदकर देखता रहा. विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना ने भी इस मसले को नहीं उठाया. सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि दामनिया का दावा है कि उन्होंने इस घोटाले के बारे में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को जानकारी दी और उनसे इस मामले को उठाने के लिए कहा. अंजलि दामनिया किसी स्वार्थवश यह काम नहीं कर रही थीं. वह नितिन गडकरी से मुख्य विपक्षी पार्टी होने का धर्म निभाने की याचना कर रही थीं. नितिन गडकरी ने खुद इस मामले को उठाना तो दूर, अपनी ही पार्टी में भ्रष्टाचार सेल के प्रमुख किरीट सोमैया को भी मना कर दिया. अंजलि दामनिया के इस बयान को भारतीय जनता पार्टी और नितिन गडकरी नकार रहे हैं.
जब हमने सबसे पहले 26 लाख करोड़ के कोयला घोटाले का ख़ुलासा किया, तब भी नितिन गडकरी का यही चेहरा सामने आया था. महाराष्ट्र के एक बड़े पत्रकार के साथ चौथी दुनिया की टीम ने नितिन गडकरी से संपर्क साधा था. जब पहली बार उन्हें 26 लाख करोड़ रुपये के कोयला घोटाले के बारे में बताया गया था, तब वह गुवाहाटी में थे. टेलीफोन पर वह का़फी उत्सुक नज़र आए. उन्होंने यह भरोसा दिलाया था कि भारतीय जनता पार्टी इस मसले को ज़रूर उठाएगी. नितिन गडकरी ने फौरन अपने सहयोगी श्याम जाजू को चौथी दुनिया अ़खबार की प्रति देने के लिए कहा. उस व़क्त यह एहसास हुआ कि नितिन गडकरी आरएसएस द्वारा बनाए गए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं. वह संघ के अनुशासित एवं ईमानदार कार्यकर्ता हैं और उनमें देश के प्रति सेवा भावना मौजूद है.
तीन दिनों के बाद गडकरी साहब का जो चेहरा सामने आया, उससे यही साबित होता है कि इस समय राजनीतिक दल माफिया की तरह देश को लूटने-खसोटने में लगे हुए हैं. हम लगातार कोशिश करते रहे कि भारतीय जनता पार्टी कोयला घोटाले का मुद्दा उठाए, लेकिन उसने तब तक इस मुद्दे को नहीं उठाया, जब तक सीएजी की रिपोर्ट नहीं आ गई. भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि जिन कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित किए  गए थे, वे कांग्रेस और भाजपा को समान रूप से फंड देती हैं. अंजलि दामनिया के साहस का स्वागत होना चाहिए और उनकी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि उनकी बातों पर अविश्वास करने की कोई वजह नहीं है.
- संपादक

इन मामलों की स्वतंत्र जांच हो

  • सभी बजट पत्रों के रेट एनालिसिस की गड़बड़ी
  • सभी बजट पत्रों के लैंड स्टेटमेंट में हुई गड़बड़ी
  • सभी बजट पत्रों की उपयोगिता प्रस्ताव में हुई गड़बड़ी
  • सभी निविदाओं (टेंडर) में एक्सट्रा आइटम रेट लिस्ट में हुई अनियमितता
  • डीवाटरिंग आइटम की वृद्धि में हुई गड़बड़ी
  • सभी निविदाओं के क्लेम प्रकरण में हुई गड़बड़ी
  • सभी निविदाओं के क्लॉज 38 के प्रकरण में हुई गड़बड़ी
  • सभी बजट पत्रों में बढ़ी हुई क़ीमतें
  • सभी बजट पत्रों में पत्थरों की खुदाई में की गई वृद्धि
  • सभी उपसा सिंचन (लिफ्ट एरीगेशन) योजनाओं पर की गई फिज़ूलख़र्ची की जांच
  • सभी निर्मित और निर्माणाधीन उपसा सिंचन योजनाओं की समीक्षा
  • गेट फेब्रिकेशन के मूल्य निर्धारण में हुई गड़बड़ी
  • सीमेंट की एक्साइज ड्यूटी की जांच हो

विजय बलवंत पांढरे,
मुख्य अभियंता,
सदस्य राज्यस्तरीय तकनीकी सलाहकार समिति
सदस्य मेंढेगिरी जांच समिति
मेरी, नासिक,
दिनांक: 5/5/2012
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प्रति,
माननीय प्रधान सचिव
(जल संपदा नियोजन व विकास),
जल संपदा विभाग,
मंत्रालय, मुंबई-400032

  • महामहिम राज्यपाल, महाराष्ट्र राज्य, मुंबई
  • माननीय मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र
  • माननीय मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग, महाराष्ट्र शासन

विषय: महामंडल की बजट मांगों की तकनीकी समिति द्वारा जांच कराने बाबत शिकायत.
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उपरोक्त विषय के संदर्भ में कुछ ठोस प्रमाण और उससे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी से शासन को अवगत कराने का अनुरोध, पत्र द्वारा मुझसे किया गया था. इसी संदर्भ में विस्तृत जानकारी पेश कर रहा हूं. विभाग में जो कार्यभार ठेकेदार और राजनेताओं ने अधिकारियों की मदद से शुरू किया है, वह तत्काल बंद हो एवं जनता का पैसा अनावश्यक बेकार नहीं जाए, ऐसी अपेक्षा है. भविष्य में उपयोग किए जाने वाले अरबों रुपयों की फिज़ूलख़र्ची पर रोक लगे तो अच्छा होगा. सब कुछ सरकार के हाथ में है, यदि सरकार ही चूक करने लगेगी तो इस देश को कौन बचाएगा? स़िर्फ 6000 करोड़ से 7000 करोड़ रुपये की निधि हर साल उपलब्ध होने पर भी डीएसआर के हिसाब में 1 लाख करोड़ रुपये का ग़लत इस्तेमाल करना उचित नहीं है. मेरे द्वारा दिनांक 20 फरवरी, 2012 को दिए आवेदन में जो बात लिखी गई है, वह पूरी तरह सत्य है. सरकार ने इससे संबंधित अधिक जानकारी मांगी है. इसलिए इस संबंध में विस्तृत जानकारी पेश कर रहा हूं. सरकार द्वारा इन परियोजनाओं की निष्पक्ष जांच कराई जाए तो सिंचाई परियोजना में हुई भारी अनियमितता की बात सामने आएगी.
सबसे पहले हम बात कर रहे हैं नरडवे परियोजना (कोंकण) की. इस परियोजना की ऊंचाई बढ़ाने के साथ ही बांध की लागत 200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 650 करोड़ रुपये कर दी गई है. बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए सरकार से किसी तरह की अनुमति प्राप्त नहीं है. लिहाज़ा इस परियोजना के अनुमानित बजट का परीक्षण किया जाना ज़रूरी है. नरडवे परियोजना का टेंडर तो तृतीय श्रेणी का है, फिर भी इसमें 30-40 करोड़ रुपये का ईआईआरएल मंज़ूर किया गया है. इस टेंडर में सा़फ लिखा गया है कि नो ईआईआरएल विल वी अलॉउड इन दिस टेंडर. बावजूद इसके ईआईआरएल का अधिकार न होते हुए भी कार्यकारी संचालक और मंत्री महोदय ने उसे अपनी म़ंजूरी प्रदान की है.
इन दिनों कोंकण इलाक़े में एक मुहिम खूब ज़ोरों से चल रही है. यहां लघु सिंचाई बांध का हवाला देकर परियोजनाओं की मंज़ूरी हासिल की जाती है. उसके बाद उसकी ऊंचाई बढ़ाने का प्रस्ताव महामंडल स्तर पर पारित कराया जाता है और उसके बाद करोड़ों रुपये का घोटाला किया जाता है. कोंकण इलाक़े में यह खेल पिछले बीस वर्षों से जारी है. यहां 30-40 लघु सिंचाई बांध के निर्माण कार्यों के प्रस्ताव कुछ समय बाद आने वाले हैं. हालांकि इस पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि कोंकण में उपलब्ध पानी का दस प्रतिशत भी उपयोग नहीं होता. ऐसे में यहां बड़ी संख्या में बांधों का निर्माण किस मक़सद से किया जाता है. वैसे भी सरकार के पास पैसा नहीं रहता? जो काम पहले से शुरू हैं, उन्हें पूरा करने के लिए भी पैसे नहीं हैं. पंद्रह-बीस वर्षों तक परियोजनाएं पूरी नहीं होतीं, फिर भी टेंडर निकाले जाते हैं. सरकार को चाहिए कि जिन निविदाओं (टेंडर) में 20 प्रतिशत से भी कम ख़र्च हुआ है, उन सभी निविदाओं की जांच हो, ज़रूरत पड़ने पर उन्हें रद्द कर देना चाहिए, ताकि जनता का भला हो सके. इन दिनों अत्यंत महंगी परियोजनाएं शुरू करने का दौर है. वास्तव में कम ख़र्च पर पानी को कैसे सुरक्षित एवं संग्रहित किया जा सकता है, इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन महामंडल बनने के बाद अत्यधिक महंगी लागत का बजट बनाकर फिज़ूल ख़र्च किया जा रहा है.
नासिक में मांजरपाड़ा (1) परियोजना की खुदाई के लिए निर्धारित दर से अधिक भुगतान किया गया. इस मामले की जांच होनी चाहिए. उसी तरह मांजरपाड़ा (2) परियोजना में भी अनाप-शनाप बजट को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया शुरू है. इस परियोजना को देखते ही फिज़ूलख़र्ची की बात सामने आ जाती है. पानी उपलब्ध न होने पर भी इस परियोजना को पानी उपलब्धता का प्रमाणपत्र दिया गया है. पानी की कमी के बावजूद ऐसी परियोजनाओं को प्राथमिकता देने की कोशिश राजनेता कर रहे हैं. उसी तरह पैनगंगा खोरे में पानी न होने पर भी जल उपलब्धता का प्रमाणपत्र दिया गया है. पहले टेंडर जारी करके और फिर उसमें ख़ामियां दिखाकर उसकी लागत बढ़ाई जा रही है. मराठवाड़ा और विदर्भ में इस तरह के बैराज का़फी संख्या में हैं. यहां उपसा सिंचन परियोजना (लिफ्ट एरीगेशन प्रोजेक्ट) पूरी तरह नाकाम हो चुकी है. बावजूद इसके इस परियोजना पर 25-30 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किए जा रहे हैं.
उपसा सिंचन (लिफ्ट एरीगेशन) का इतिहास बहुत बड़ा है. महाराष्ट्र में हज़ारों उपसा सिंचन योजनाएं बन चुकी हैं, लेकिन उनमें से 99 प्रतिशत फिलहाल ठप पड़ी हैं. वास्तव में ये सभी योजनाएं राजनेताओं एवं ठेकेदारों के फायदे के लिए बनाई गई हैं. उपसा सिंचन योजना नाकाम होने का एक अच्छा उदाहरण जलगांव ज़िले के मुक्ताई नगर में देखा जा सकता है. एकनाथ खड़से जब महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री थे, तब वर्ष 1999-2000 के बीच इस योजना का काम पूरा कर लिया गया था, लेकिन यह योजना एक वर्ष भी नहीं चली. इसकी वजह यह थी कि लोगों द्वारा पानी की मांग ही नहीं की गई, लिहाज़ा पिछले 12 वर्षों से यह योजना बंद पड़ी है. कोंकण की लघु सिंचाई बांध, मध्यम एवं बड़ी परियोजनाओं में भी का़फी गड़बड़ियां हैं. अगर इसकी निष्पक्ष जांच कराई जाए तो इसमें करोड़ों रुपये की हेराफेरी की बात सिद्ध हो जाएगी. ग़ौरतलब है कि विदर्भ में लाइनिंग के लिए करोड़ों रुपये के टेंडर हुए हैं, यदि इसकी जांच-पड़ताल की जाए तो यहां भी बड़े घोटाले का खुलासा हो सकता है. इन सभी महामंडलों (कॉरपोरेशन) के तहत स्टील फेब्रिकेशन का काम बड़े पैमाने पर किया गया है. इस स्टील फेब्रिकेशन के लिए बाज़ार भाव से कहीं अधिक रेट दिए गए हैं. अगर सभी महामंडलों के स्टील फेब्रिकेशन आइटम की जांच होती है तो यहां भी करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आ सकता है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि लगभग सभी महामंडलों (कॉरपोरेशन) ने इसका बजट बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है. उसी तरह जल संसाधन विभाग के तकनीकी विभाग के मा़र्फत जो कार्य किया जाता है, उसमें भी का़फी गड़बड़ी हुई है. इस तकनीकी विभाग की जांच एक अलग विषय है. इसलिए इसकी जांच स्वतंत्र रूप से कराई जानी चाहिए. महाराष्ट्र के जल संसाधन विभाग में भी आपसी समन्वय का अभाव है. विभागों पर सचिवों का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है. कोंकण इलाक़े में पानी का महज़ 10 प्रतिशत उपयोग किया जाता है. इसके बावजूद बांधों की ऊंचाई बढ़ाने के लिए 40-50 बजट पत्र बनाने का काम जल संसाधन विभाग द्वारा किया जाता है. ऐसे सभी कार्यों को तत्काल स्थगित कर देना चाहिए, क्योंकि कोंकण से संबंधित बजट पत्र तकनीकी दृष्टि से अनुचित हैं.
तापी महामंडल में टेंडर नोटिस में दर्ज क़ीमत और वर्क ऑर्डर देने के दौरान तय क़ीमत की जांच हुई तो उसमें भारी वृद्धि नज़र आई. अगर तापी महामंडल के मूल बजट पत्र और संशोधित बजट पत्र के अंतर की जांच कराई जाए तो उसमें भी भारी अनियमितता का खुलासा होगा. इस तरह की सभी गड़बड़ियों की शुरुआत कृष्णा खोरे से हुई है. गठबंधन सरकार ने ही इस घपले की शुरुआत की है. वर्ष 1996 से 2001 के दौरान कृष्णा खोरे के बजट पत्र की गंभीरता से जांच हो तो उसमें भी भारी अनियमितता का पता चलेगा. जिन अधिकारियों ने कृष्णा खोरे में गड़बड़ी की, वही बाद में तापी गए, मराठवाड़ा गए. उसके बाद विदर्भ गए और अंत में कोंकण पहुंचे. इसमें कोई शक नहीं कि ठेकेदारों, राजनेताओं एवं कुछ अधिकारियों ने मिलीभगत करके महाराष्ट्र का आर्थिक सत्यानाश कर डाला. ऐसे में जब तक किसी पूर्व सचिव के मार्फत इन सभी बजट पत्रों की निष्पक्ष जांच नहीं होती है, तब तक यह गड़बड़ी सामने आने वाली नहीं है. जल संसाधन विभाग के महामंडल (कॉरपोरेशन) बनने के बाद ठेकेदारों द्वारा सीमेंट बेचना आसान हो गया है. अब सीमेंट पर इस विभाग का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है. सीमेंट का कितना उपयोग किया जाना चाहिए, इसकी ज़रूरत ठेकेदार नहीं समझते. ऐसे में यहां बड़े पैमाने पर सीमेंट घोटाला हुआ है, इसकी भी जांच कराए जाने की आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि यहां पहले भी भारी मात्रा में अवैध तरीक़े से सीमेंट बेचे जाने का खुलासा हो चुका है. बड़ी मात्रा में सीमेंट बेचने के प्रकरण पर ही सचिव आर जी कुलकर्णी ने सीमेंट को परिशिष्ट-अ से बाहर कर दिया. गोसीखुर्द की बांयी नहर में भी अभियंताओं द्वारा भारी अनियमितता बरती गई, लेकिन उनके ख़िला़फ कोई कार्रवाई नहीं की गई. इससे यह साबित होता है कि काम चाहे कितना भी ख़राब क्यों न किया जाए, दोषियों को राजनेताओं का संरक्षण मिलता रहेगा. दस वर्ष पहले निम्न तापी परियोजना में घटिया निर्माण कार्य से संबंधित रिपोर्ट कार्यकारी अभियंता होने के नाते मैंने सरकार को भेजी थी. उसके बाद मेरा स्थानांतरण कर दिया गया, जबकि इस रिपोर्ट के आधार पर अन्य किसी का निलंबन नहीं किया गया. उसी तरह तारली परियोजना के निर्माण कार्य से संबंधित रिपोर्ट अधीक्षक अभियंता होने के नाते मैंने सरकार को सौंपी. हालांकि इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस पत्र का सार यही है कि महाराष्ट्र के सभी महामंडलों (कॉरपोरेशन) में भयंकर गड़बड़ी हुई है.

इन बातों पर ग़ौर किया जाए

  • सभी महामंडलों (कॉरपोरेशन) को बर्ख़ास्त किया जाए
  • सचिव-1 पद भारतीय प्रशासनिक सेवा से भरा जाना चाहिए
  • कितनी क़ीमत की निविदा निकाली जाए, यह तय किया जाना चाहिए
  • 500 करोड़ से अधिक क़ीमत के बजट पत्र पर पाबंदी लगानी चाहिए
ग़ौरतलब है कि विदर्भ में वडनेरे समिति की जांच रिपोर्ट पर 1500 करोड़ रुपये की रिकवरी करने का आदेश सरकार ने दिया है. उसी तरह विदर्भ में 2900 करोड़ रुपये की लाइनिंग निविदा को रद्द करने का आदेश भी दिया गया है. इसकी जांच होने पर एक महामंडल में 4400 करोड़ रुपये का घपला होने का पता चला. इसलिए सभी महामंडलों में पिछले 15 वर्षों में किए गए सभी कार्यों की जांच की गई तो 20 हज़ार करोड़ रुपये फिज़ूल में ख़र्च करने का मामला सहज ही सिद्ध हो जाएगा. स़िर्फ उपसा सिंचन योजनाओं की निष्पक्ष एवं गहन जांच होने पर जनता के 15 हज़ार करोड़ रुपये पानी में जाने की बात सिद्ध हो जाएगी. ग़ौरतलब है कि ये सभी कार्य शुरू हैं. ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों, इसलिए सरकार को ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है. यदि सही बजट पत्र बनाए जाते और उनका उचित तरीक़े से नियोजन किया जाता तो 40 हज़ार करोड़ रुपये इस तरह बर्बाद नहीं होते. आज राजनेताओं को अधिक संवेदनशील और अधिकारियों को भयरहित होकर काम करने की ज़रूरत है. कोंकण में सरकार द्वारा संशोधित मंजूरी प्राप्त न होने पर भी बड़े पैमाने पर ज़्यादा ख़र्च किया जा रहा है. ऐसे कार्यों की गंभीरता से जांच कर इन पर रोक लगाने की ज़रूरत है. कोंकण के सभी बांधों की ऊंचाई बढ़ाने के प्रकरणों की जांच पहले होनी चाहिए, ताकि उसमें हुए घोटालों का खुलासा हो सके. कोंकण के सभी ईआईआरएल (अतिरिक्त वस्तु मूल्य सूची) और क्लॉज 38 प्रकरणों की जांच होनी चाहिए, क्योंकि कोंकण इलाक़े में सिंचाई बहुत ही कम होती है, लेकिन सिंचाई के नाम पर हर साल भारी-भरकम खर्च होता हैं. इसे रोकने की ज़रूरत है. राज्य में घोटालों की संख्या न बढ़े, फिज़ूलख़र्ची पर रोक लगे, परियोजनाएं अधूरी न रहें और जनता का पैसा बेकार न जाए, इस बाबत एक नियंत्रक को बहाल किया जाए, क्योंकि इस मामले में अब कड़े फैसले लेने की ज़रूरत है.

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