धरती पर सबसे खतरनाक जगह...
शनिवार, 6 अक्तूबर, 2012 को 08:07 IST तक के समाचार
पाकिस्तान के क़बायली इलाक़े
वज़ीरिस्तान में अमरीका के ड्रोन हमले होना आम बात है. हैरत की बात नहीं कि
इसे धरती पर सबसे ख़तरनाक जगह कहा जाता है.
लगातार होने वाले ये हमले यहाँ रहने वाले लोगों के ज़हन पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं और उन पर ग़लत मनोवैज्ञानिक असर होता है.मैं मई में इस इलाक़े में गया था और तब मैंने देखा कि कैसे हमलों के कारण लोगों के दिलों में डर, तनाव और अवसाद है.
ऐसा नहीं है कि कोई ड्रोन अचानक आता है, हमला करता है और चला जाता है. दिन में कम से कम चार ड्रोन आकाश में मंडराते रहते हैं. उनकी घर्र-घर्र वाली आवाज़ इसका सूचक रहती है.
स्थानीय लोग इन्हें ‘मच्छर’ कहते हैं. उत्तरी वज़ीरिस्तान में रहने वाले अब्दुल वहीद कहते हैं, “जिसने भी दिन भर ड्रोन की आवाज़ सुनी हो वो रात को सो नहीं पाता है. ये ड्रोन नेत्रहीन व्यक्ति की लाठी की तरह हैं. ये कभी भी किसी पर भी हमला कर सकते हैं.”
सोने के लिए नींद की गोलियाँ
स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि सिर्फ़ तालिबान और अल-क़ायदा के लोगों को ही निशाना नहीं बनाया जाता बल्कि कई स्थानीय नागरिक भी मारे जा चुके हैं.लोग बताते हैं कि ऐसा भी होता है कि आपसी रंजिश के कारण एक क़बीले के लोग विरोधी क़बीले के लोगों को अल-क़ायदा का समर्थक बता देते हैं....इस उम्मीद में कि वे हमले में मारे जाएँगे. हर किसी को यहाँ लगता है कि अगली बारी उसकी है.
पाकिस्तान में ड्रोन हमले
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हमलों में सैकड़ों चरमपंथी कमांडर और कई नागरिकों की मौत
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अमरीकी रिपोर्ट में कहा है कि लोग हमलों से आतंकित हैं
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ड्रोन से मारे गए लोगों की संख्या पता लगाना मुश्किल क्योंकि स्वतंत्र मीडिया संगठनों को जाने की इजाज़त नहीं
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ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नेलिज़्म के मुताबिक2,570-3,337लोग मारे गए हैं जिसमें से474-884नागरिक हैं
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लिविंग अंडर ड्रोन्स रिपोर्ट के मुताबिक मृतकों में दो फीसदी टॉप कमांडर होते हैं
ऑरकज़ई से होते हुए जब मैं वज़ीरिस्तान की ओर गया तो सड़कों पर ड्रोन हमलों के निशान देखे जा सकते थे- नष्ट हुए वाहन और चरपमंथियों के नष्ट हुए परिसर.
मैं ड्रोन हमलों से डरता नहीं पर...
यहाँ मेरी मुलाक़ात तालिबान कमांडर वली मोहम्मद से हुई. वे नेक मोहम्मद के भाई हैं. नेक मोहम्मद वही शख़्स है जिसने पाकिस्तान में तालिबान की नींव रखी.नेक मोहम्मद 2004 में हुए ड्रोन हमले में मारे गए थे. वो इस इलाक़े में पहला ड्रोन हमला था. वली मोहम्मद भी इस हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए थे पर ज़िंदा बच गए थे.
वली मोहम्मद कहते हैं कि ज़्यादातर तालिबान लड़ाके ड्रोन हमले में मारे जाने के बजाए नेटो सैनिकों से लड़ते हुए मरना पसंद करेंगे. इसमें वो ख़ुद को भी शामिल करते हैं.
उनका कहना है, “मैं ड्रोन हमलों से डरता नहीं हूँ. लेकिन मैं इन हमलों में मरना भी नहीं चाहता.”
तालिबान और स्थानीय लोग बताते हैं कि ड्रोन हमलों में अकसर स्थानीय जासूस की मदद ली जाती है.
जासूसी की सज़ा मौत
इसी वजह से बहुत से लोग (ख़ासकर चरमपंथी कमांडर) जब इधर-उधर जाते हैं तो अपनी गाड़ी के पास गार्ड छोड़कर जाते हैं.
अगर किसी पर शक हो जाए तो उसे कुछ कहने का भी मौक़ा नहीं मिलता. ताबिलान लड़ाके पहले उसे जान से मारते हैं और फिर तय करते हैं कि संदिग्ध वाक़ई जासूसी कर रहा था या नहीं. तालिबान लड़ाकों का कहना है कि बाद में पछताने से बेहतर है कि एहतियात बरती जाए.
26 मई 2012 को जब मैं मीरनशाह में था तो केंद्रीय बाज़ार की एक इमारत पर मिसाइल आकर गिरी. मैं यहाँ से 500 मीटर की दूरी पर रुका हुआ था. सुबह सवा चार बजे का समय था जब धमाके से मेरी नींद खुल गई.
अभी कोई मुझे बोल ही रहा था कि मिसाइल दाग़ी जा रही है कि ज़ोर से आवाज़ हुई और धमाका हो गया.
मिसाइल को दाग़े जाने और निशाने पर पहुँचने के बीच चंद सेकेंड का ही फ़ासला था. लोग डर के मारे गलियों में निकल आए. कुछ लोग ये देखने के लिए भागे कि कौन चपेट में आया है.
हमले के कुछ मिनट बाद ही तालिबान और स्थानीय लोग मलबे से घायलों और मृत लोगों को निकाल लेते हैं. कोई ये बताने को तैयार नहीं कि घायल या मृतक कौन थे.
मासूम भी बनते हैं शिकार
जब बाद में मैने लोगों और मिलिशिया से बात करने की कोशिश की, तो हर कोई अलग-अलग जवाब देता था. लगता था कि किसी को मालूम ही नहीं था कि असल में कौन मारा गया है..फिर रेडियो से जानकारी मिलती है कि अल-क़ायदा के वरिष्ठ नेता अबू हफ्स अल-मिसरी भी मृतकों में शामिल है.
हालांकि इस बात से कोई इनकार नहीं कर रहा कि हमले में अल-क़ायदा नेत मारे गए हैं पर वे कोलेट्रल डेमेज यानी बाक़ी नुक़सान की ओर भी इशारा करते हैं- वो मासूम लोग जो मारे गए.
तालिबान के पास इन ड्रोन हमलों का कोई जवाब या हल नहीं है. इसलिए वो अपना ज़्यादातर समय जासूसों को ख़त्म करने में लगाते हैं जो हमलों में मदद करते हैं.
एक तालिबान कमांडर का कहना है कि ज़्यादातर जासूस स्थानीय लोग ही होते हैं जिसे पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों ने तैयार किया है.
ज़्यादातर तालिबान कमांडरों की तरह ये कमांडर भी पाकिस्तान सरकार और सैनिकों को ड्रोन हमलों का दोषी मानता है.
तालिबान का कहना है कि ड्रोन हमलों के बावजूद वे अपना लक्ष्य नहीं छोड़ेगा. पर इस सब का ख़ामियाज़ा आम लोग भुगत रहे हैं. हर रोज़ उन्हें मानसिक यातना से गुज़रना पड़ता है.
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