किसने दिए थे सद्दाम को रासायनिक हथियार?
सोमवार, 10 दिसंबर, 2012 को 10:59 IST तक के समाचार
लगभग 25 साल पहले की बात है.
इराक़ी सेना ने अपने हज़ारों नागरिकों की हत्या कर दी थी. हत्या के लिए
रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था. ये बात है कुर्द क़स्बे हलब्जा
की.
25 साल बाद अब इस बात की पड़ताल की जा रही है कि
किस देश ने इन रासायनिक हथियारों की आपूर्ति की थी और ये हथियार किस
फ़ैक्ट्री में बने थे.ग़ौर से देखने से पता चला कि मरने वाले किसी न किसी को बचाने की कोशिश करते मारे गए थे, हालांकि वे जिसे बचाने की कोशिश कर रहे थे वो भी मारे गए.
सद्दाम हुसैन के लोगों ने कुर्द लोगों को सबक़ सिखाने के लिए यहां अँधाधुंध तरीक़े से रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था.
मैं इससे पहले ईरान-इराक़ युद्ध में सैनिकों के ख़िलाफ़ रासायनिक हथियारों का हश्र देख चुका था. वो दिल दहलाने वाला मंज़र था. लेकिन यहां निर्दोष नागरिकों पर ज़हरीली गैसें छोड़ी गई थीं जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.
मक़सद सबक़ सिखाना
कुछ लोगों ने हमले के फ़ौरन बाद दम तोड़ दिया था और कुछ तड़प-तड़पकर मरे थे. ज़हरीली गैसों की वजह से एक महिला इस तरह सिकुड़ गई थी कि उसका सिर, अपने पैरों को छू रहा था, कपड़ों पर ख़ून ही ख़ून था जो उसके मुंह से निकला था.
सद्दाम हुसैन की सेना ने इन लोगों को इसलिए निशाना बनाया था क्योंकि ईरान-इराक़ युद्ध के अंतिम दिनों में हलब्जा के लोगों ने ईरान की फ़ौज के आगे बढ़ने पर ख़ुशी जताई थी.
सद्दाम हुसैन और केमिकल अली के नाम से कुख्यात उनके भाई अली हसन अल माजिद इन लोगों को सबक़ सिखाना चाहते थे.
इराक़ी वायुसेना ने यहां तरह-तरह के रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था जिनमें बेहद ज़हरीली मस्टर्ड गैस भी शामिल थी जिसका इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भी किया गया था.
मैं वहां हालात का जायज़ा लेने गया था और मेरे साथ बेल्जियम के एक वैज्ञानिक भी थे जो रासायनिक हथियारों के विशेषज्ञ थे. हम दोनों शव गिनते-गिनते थक गए थे.
हमारे पास वक़्त कम था और इराक़ी जानते थे कि हम वहां मौजूद हैं. हमारे हेलिकॉप्टरों को भी निशाना बनाने की कोशिश की गई थी और हम रासायनिक हमले की चपेट में भी आ सकते थे.
जल्दी-जल्दी में ही सही, हमने क़रीब 5,000 शव गिने होंगे. रासायनिक हथियारों के हमले के असर को जानने वाले विशेषज्ञ भी इस आंकड़ें की पुष्टि करते हैं.
हथियार आए कहां से
हलब्जा की हवा में मस्टर्ड गैस अभी भी मौजूद है और इसका असर वहां रहने वाले लोगों पर देखा जा सकता है.रासायनिक हथियारों के जानकार ब्रिटेन के हेमिश डी ब्रेटन-गॉर्डन, कुर्द सरकार के साथ इस मसले पर विचार-विमर्श कर रहे हैं कि हलब्जा की हवा में घुले ज़हर को दूर कैसे किया जाए.
"'हमें उम्मीद है कि सामूहिक कब्रों में मस्टर्ड गैसों के नमूने मिल सकते हैं. इन नमूनों के अणुओं के घटकों को यदि हम अलग कर पाए तो शायद हम इस बात का पता लगा सकें कि ये हथियार कहां बने थे."
हेमिश डी ब्रेटन-गॉर्डन
वे कहते हैं, ''हमें उम्मीद है कि सामूहिक क़ब्रों में मस्टर्ड गैसों के नमूने मिल सकते हैं. इन नमूनों के अणुओं के घटकों को यदि हम अलग कर पाए तो शायद हम इस बात का पता लगा सकें कि ये हथियार कहां बने थे.''
उनका मानना है कि इस प्रक्रिया से पता चल सकता है कि ये हथियार किस देश और किस फ़ैक्टरी में बने थे.
कुर्द प्रांतीय सरकार ने ऐसी किसी योजना को अभी मंज़ूरी नहीं दी है. सरकार का कहना है कि सामूहिक क़ब्रों की खुदाई को मंज़ूरी देने से पहले वो अपने लोगों और कुछ कंपनियों के साथ विचार-विमर्श करेगी.
लेकिन राजनीतिक जगत में इस बात को स्वीकार किया जाता है कि इस तरह की रासायनिक गैसों की आपूर्ति करने वाली विदेशी कंपनियों को जब तक दंडित नहीं किया जाएगा, तब तक त्रासदी का ये अध्याय पूरी तरह से बंद नहीं हो सकेगा.
रूस के पास रासायनिक युद्ध की क्षमता है और ऐसा प्रतीत होता है कि रूस ने ही सद्दाम हुसैन को इस तरह के हथियार मुहैया कराए होंगे.
पश्चिमी जर्मनी के रसायन उद्योग को बॉन सरकार ने अपने अंतरराष्ट्रीय समझौतों के दायरे से बाहर रखा था, जिनमें रासायनिक हथियारों की बिक्री पर रोक थी. अन्य देश भी इसमें शामिल हो सकते हैं. जांच-पड़ताल की इस पूरी क़वायद से जो तथ्य सामने आएंगे, वो हैरान करने वाले होंगे.
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