रीडर्स मेल
बढ़ते हादसों का देश देश
के जाम और हादसों में बुरी तरह
जकड़ा होने के कारण इसका विकास और प्रगति बुरी तरह बाधित है। इससे जनता पर
और नई मार पड़ रही है। गांव से लेकर शहर और दिल्ली जैसे महानगर भी इससे
अछूते नहीं रह गए हैं। प्रति वर्ष जान-माल के साथ अमूल्य समय का भी बहुत
नुकसान हो रहा है। मजे की बात यह है कि वाहन तूफानी रफ्तार से बढ़ रहे हैं,
लेकिन सड़कें भ्रष्टाचार के चलते फूहड़ प्लानिंग और अतिक्रमण आदि से
लगातार सिकुड़ती जा रही हैं। क्या पैदल यात्री और क्या वाहन चालक, किसी के
लिए भी इत्मीनान से चलने की गुंजाइश नहीं बची है। ऐसे में सड़क हादसों में
इजाफा हो रहा है और सड़कें लगातार खून से रंगी जा रही हैं। लेकिन सत्ता की
स्वादिष्ट मलाई काट रहे हमारे हुक्मरानों को किसी की कोई चिंता नहीं है।
हमारे तमाम नेतागण खुद जमीनों की दलाली कर किसानों और आम जनता को लूटने और
लुटवाने में मस्त हैं। नजी कंपनियां भी सिर्फ अपने मुनाफे के लिए अपने
हिसाब से काम करती हैं। इन्हें भी जनता से कोई सरोकार नहीं है। इसीलिए ही तो आज बड़े-बड़े राजमागरे और एक्सप्रेस वेज पर कहीं भी
अंडरवेज या ओवरवेज न होने से बड़ी भयंकर दुर्घटनाएं हो रही हैं। दूसरी ओर
इन्हीं बड़े एक्सप्रेस वेज आदि के लिए अलग से जनता पर भारी टैक्स भी लाद
दिया गया है, जिससे बेचारी जनता पर दोहरी मार ही पड़ रही है। बिना उचित
प्लानिंग के देश में अब तक जो बिगाड़खाता हो चुका है उसे अब इतनी आसानी से
ठीक करना आसान काम नहीं है। अभी भी भ्रष्टाचार के तहत यह बर्बादी रुकने का
नाम नहीं ले रही है। ऐसे तो देश के हालात और भी बिगड़ते चले जाने की आशंका
है। वेद प्रकाश, पटना
पूर्वाग्रही सोच
भारतीय
मीडिया के एक तबके को आखिर क्या हो गया है कि वह नरेंद्र मोदी को अधिकतर
नकारात्मक रूप में ही पेश करता है। यह बात समझ नहीं आती। पिछले दिनों
गुजरात चुनाव के दौरान मीडिया का यह चेहरा स्पष्ट रूप से देखने को मिला। इस
दौरान नरेंद्र मोदी को बार-बार अलग- अलग चैनलों द्वारा नकारात्मक रूप में
ही दिखाया गया। हालांकि इसके बावजूद मोदी गुजरात विस चुनाव जीत गए। जीतने
के बाद जब वे सबसे पहले अपनी मां का आशीर्वाद लेने गए तो उसे ज्यादा नहीं
दिखाया गया, जबकि इससे भारतीय युवाओं को भी एक अच्छा संदेश मिलता। इसके
बाद वे केशुभाई पटेल से भी आशीर्वाद लेने पहुंचे। हालांकि मीडिया में इसे
उनकी राजनीतिक चाल करार देकर पेश किया गया, जबकि इसे भी सही रूप में दिखाया
जा सकता था। जिन केशुभाई पटेल की वजह से मोदी को लगभग 15-20 सीटों का
नुकसान हुआ हो, यदि उनके पास भी मोदी आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं तो यह उनकी
सहृदयता का प्रमाण था। यदि मीडिया चाहता तो इसे भी सकारात्मक रूप से दिखा
सकता था, लेकिन मीडिया ने केवल नकारात्मकता ही दिखाई। अपने इस तरह के
पूर्वाग्रही चरित्र को दिखाकर मीडिया सामान्य जनता का विास खो रहा है।
मीडिया तो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है और यदि वह भी नेताओं की तरह
अपने आपको संकीर्ण ढंग से पेश करेगा तो इससे निष्पक्ष ढंग से जनमत निर्माण
की उसकी भूमिका सवालों के घेरे में आ जाएगी। जगदीश शर्मा, नवादा
फिर न हो ऐसा वाकया
देश को विदेशी दासता से मुक्ति मिले छह दशक बीत चुके हैं, परंतु आज भी हम
मानसिक दासता में इस तरह जकड़े हैं कि मानवता हर मोड़ पर शर्मशार है।
सभ्यता फिर वहीं खड़ी दिखाई पड़ रही है, जहां से कभी उसका आरंभ हुआ था।
वास्तव में सभ्यता के विकास की कहानी पाशविकता पर विवेकशीलता की विजयगाथा
थी। परंतु दिल्ली की घटना सभ्य समाज के चेहरे पर जोरदार तमाचा है। कोशिश
होनी चाहिए कि फिर कभी इसकी पुनरावृत्ति न हो। एस. शंकर गिरि, नागा रोड,
रक्सौलक्ष्/द्रऊ
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