यह आम आदमी की पार्टी है |
देश की संपत्ति का एक बड़ा भाग केवल सौ घरानों के हाथ में है और दूसरी तऱफ देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या 20 रुपये प्रतिदिन से भी कम पर गुज़ारा करती है. सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से ग़रीबों के हाथ से पैसा निकल कर अमीरों के हाथ में जा रहा है. कुछ चंद लोगों के हाथों में इतनी अपार संपत्ति आई कैसे?ऐसे-ऐसे नेताओं के बयान आए, जिन्हें जनता का समर्थन हासिल नहीं है, जिन्होंने कभी चुनाव भी नहीं लड़ा, लेकिन मंत्री बन गए. कुछ ऐसे भी नेताओं ने बयान दिया, जिनकी राजनीति स़िर्फ इस बात पर टिकी है कि वे किसी बड़े नेता के नज़दीकी हैं. भाजपा और कांग्रेस की तऱफ से एक ही बात कही गई कि देश में कई सारे राजनीतिक दल हैं, एक और पार्टी आ गई है, उसका स्वागत है. यह स्वागत नहीं, इन नेताओं ने जनता की ताकत का मजाक उड़ाया. वे भूल गए कि लोकपाल के आंदोलन में अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे के साथ पूरा देश खड़ा हो गया था. उन्हें ऐसा जनसमर्थन मिला, जिसे भाजपा और कांग्रेस पार्टी करोड़ों रुपये खर्च करके नहीं जुटा सकती थीं. मीडिया ने भी अपने आकाओं के इशारे को समझा. जिस दिन आम आदमी पार्टी को लांच किया गया तो उसकी खबर मीडिया से गायब थी. इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि देश का मीडिया पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली बन गया है. देश की राजनीति आम आदमी बनाम शोषक वर्ग में तब्दील होती नज़र आ रही है. एक तऱफ देश के ग़रीब किसान, मज़दूर, दलित, वनवासी, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक हैं और दूसरी तऱफ देश का शासक वर्ग, जिसमें सभी राजनीतिक दल, पूंजीपति, अधिकारी एवं शक्तिशाली लोग हैं. लेकिन सवाल यह है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी किस तऱफ है. हमने अरविंद केजरीवाल से लंबी बातचीत की और आम आदमी पार्टी की विचारधारा, संगठन और नेतृत्व के बारे में जानकारी हासिल की.
यह बात सही है कि भ्रष्टाचार के खिला़फ जन लोकपाल की मांग को लेकर लाखों लोग सड़कों पर उतरे, जिसमें सभी पार्टियां बेनकाब हो गईं. जंतर-मंतर के अनशन के दौरान जब अरविंद केजरीवाल की तबीयत बिगड़ने लगी और ऐसा लगने लगा कि सरकार ने एक कठोर फैसला कर लिया है कि केजरीवाल को मरना है तो मरें, लेकिन उनकी मांगों को नहीं सुना जाएगा, तब देश के विशिष्ट लोगों के एक ग्रुप, जिसमें जनरल वी के सिंह भी शामिल थे, ने सुझाव दिया कि देश को एक राजनीतिक विकल्प की ज़रूरत है, जो देश की दूषित राजनीति को पूरी तरह से बदल सके. एक ऐसा बदलाव, जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए सत्ता के छद्म केंद्रों को ध्वस्त करके राजनीतिक सत्ता सीधे जनता के पास आ जाए.
आम आदमी पार्टी ने अपना वैचारिक आधार स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिखाए गए सपनों एवं संविधान की आत्मा को बनाया है, जिसके जरिए भारत में एक न्यायपूर्ण समाज स्थापित करने का संकल्प है. पार्टी का मानना है कि देश के लोगों ने आज़ादी के वक्त जो सपने देखे थे, आज की स्थितियां उनके ठीक विपरीत हैं, क्योंकि देश चलाने के लिए जो ढांचा बनाया गया, उसमें भारी कमी रह गई. अंग्रेजों के जमाने के सारे क़ानून और वही ढांचा जारी हैं, जो आज़ादी के पहले अंग्रेजों के प्रति जवाबदेह थे, जनता के प्रति नहीं. आज़ादी के बाद वे सब नेताओं के प्रति जवाबदेह हो गए. इसलिए जनता का शोषण जारी रहा. ़फर्क़ स़िर्फ इतना है कि पहले अंग्रेज़ लोगों का शोषण करते थे, अब अपने ही लोग शोषण करते हैं. इसलिए आम आदमी पार्टी के एजेंडे में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ढांचे को बदलना सबसे आगे है. यह जनता के प्रति एक जवाबदेह ढांचा तैयार करना चाहती है, जिसमें भ्रष्ट और काम न करने वाले नेताओं एवं अधिकारियों को किसी भी समय हटाने का अधिकार जनता के पास हो.
आम आदमी पार्टी ने वर्तमान व्यवस्था का एक मूल्यांकन भी किया है. अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि कार्यपालिका में सभी निर्णय सरकार में बैठे कुछ नेता और अफसर लेते हैं, जनता की कुछ नहीं चलती. सरकार अलग है और जनता अलग. इसे बदलना होगा और संविधान एवं नई गाइड लाइन तैयार करके एक ऐसा मॉडल विकसित करना होगा, जिसमें लोग जब ग्राम सभा और मोहल्ला सभा में बैठकर निर्णय लेंगे, तो अपने गांव और मोहल्ले के लिए वही सरकार होंगे. मतलब यह कि सत्ता का विकेंद्रीकरण भी आम आदमी पार्टी के एजेंडे में है. विधायिका को लेकर भी उनकी राय अलग है. उनका मानना है कि क़ानून बनाने में जनता की कोई भागीदारी नहीं है, बल्कि जनता के ऊपर क़ानून थोप दिए जाते हैं. कई क़ानून जनता के हितों के खिला़फ और चंद लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए भी बनाए जा रहे हैं. आम आदमी पार्टी चाहती है कि राज्यों और देश के क़ानून बनाने में आम आदमी की भागीदारी हो. आम आदमी पार्टी न्यायपालिका को भी प्रो-पीपुल बनाना चाहती है. आम आदमी पार्टी चाहती है कि न्याय अधिकार के रूप में मिलना चाहिए. न्याय हर आम आदमी का अधिकार होना चाहिए. इसके लिए उसे किसी वकील से भीख न मांगनी पड़े. इसलिए यह पार्टी पूरी न्याय व्यवस्था बदलने के पक्ष में है. देश में राजनीति का चरित्र कैसा हो, इस पर पार्टी गांधी के विचारों का पालन करती है. यह पार्टी राजनीति को देशभक्ति, समाज सेवा और आम आदमी से जोड़ना चाहती है.
भ्रष्टाचार के खिला़फ मुहिम आम आदमी पार्टी की रीढ़ की हड्डी है. इसके लिए पार्टी एक सख्त जन लोकपाल स्थापित करना चाहती है, जिसमें सीबीआई को स्वतंत्रता हो और जिसके पास शिकायतों की जांच करने का अधिकार हो, ताकि भ्रष्ट नेताओं एवं कर्मचारियों को जेल भेजा जा सके. उनका मानना है कि भ्रष्टाचार के मामले कई-कई वर्षों तक चलते रहते हैं. इस दौरान भ्रष्टाचारी नेता बार-बार चुनकर आता रहता है और देश को लूटता रहता है. कई बार तो नेता मर जाता है, पर मुकदमा जिंदा रहता है. आम आदमी पार्टी ऐसा जन लोकपाल चाहती है, जिसमें यह हो कि जांच कार्य और मुकदमा तुरंत पूरा किया जाए, ताकि डेढ़ से दो साल के अंदर भ्रष्टाचारी व्यक्ति को जेल हो, उसकी संपत्ति ज़ब्त की जाए, उसे नौकरी से बर्खास्त किया जाए. नेताओं के मामलों की जल्दी जांच का प्रावधान होगा. भ्रष्ट नेताओं को छह महीने के अंदर जेल भेजा जाएगा. इसके अलावा दफ्तरों के कामकाज में जवाबदेही तय करने के लिए भी पार्टी समय सीमा निर्धारित करेगी कि कौन सा काम कितने दिनों में किया जाएगा और कौन सा अधिकारी करेगा. यदि उक्त अधिकारी तय समय सीमा में काम नहीं करता है तो उस पर पेनल्टी लगेगी, जो उसके वेतन से काटकर शिकायतकर्ता को दी जाएगी और शिकायतकर्ता का काम 30 दिनों में कराया जाएगा.
सरकारी नौकरी में आरक्षण को आम आदमी पार्टी जातिगत राजनीति और वोट बैंक की राजनीति से अलग रखकर देखती है. आम आदमी पार्टी मानती है कि आरक्षण होना चाहिए. सामाजिक के साथ-साथ आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को भी आरक्षण मिले, लेकिन केवल आरक्षण से काम नहीं चलेगा. आरक्षण के साथ-साथ जाति-धर्म से ऊपर उठकर बच्चों को मुफ्त और उच्च कोटि की शिक्षा भी देनी होगी. देश के सभी सरकारी स्कूलों को अच्छे निजी स्कूलों के बराबर लाया जाए, यह पार्टी का मुख्य एजेंडा है. दलित, आदिवासी एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था के साथ ग़रीब एवं अन्य वंचित वर्गों के लिए भी विशेष अवसर की व्यवस्था हो. आरक्षण का लाभ सही लोगों तक पहुंचे, इसके लिए सुविधा संपन्न परिवारों की जगह ऐसे व्यक्तियों, परिवारों एवं समुदायों को प्राथमिकता दी जाए, जिन्हें अब तक इस व्यवस्था का लाभ नहीं मिला है. महादलित, अति पिछड़े, आदिवासी एवं घुमंतू समुदायों के लिए विशेष योजनाएं बनें.
देश की संपत्ति का एक बड़ा भाग केवल सौ घरानों के हाथ में है और दूसरी तऱफ देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या 20 रुपये प्रतिदिन से भी कम पर गुज़ारा करती है. सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से ग़रीबों के हाथ से पैसा निकल कर अमीरों के हाथ में जा रहा है. कुछ चंद लोगों के हाथों में इतनी अपार संपत्ति आई कैसे? आम आदमी पार्टी का मानना है कि देश की मौजूदा आर्थिक नीतियां मेहनत करने वालों के हाथ में पैसा न देकर जमाखोरी, सट्टाबाज़ारी और भ्रष्टाचार करने वालों को बढ़ावा दे रही हैं. ऐसी नीतियों को खत्म करना होगा. आम आदमी पार्टी का मानना है कि मौजूदा आर्थिक नीतियां खेती, किसानों और गांवों के शोषण पर आधारित हैं. किसानों की ज़मीन बड़े-बड़े उद्योगपतियों एवं बिल्डरों को कौड़ियों के भाव दे दी जाती है. गांव वाले रोते-बिलखते रह जाते हैं, भूमिहीन हो जाते हैं और बेरोज़गार हो जाते हैं. अभी हाल में कई घोटाले सामने आए, जिनमें पता चला कि नेताओं एवं कुछ उद्योगपतियों ने मिलकर विकास के नाम पर किसानों की ज़मीन कौड़ियों के भाव खरीदी, उसका लैंड यूज़ बदलवाया और कुछ दिनों बाद कई गुना दामों में दूसरों को बेच दी. आम आदमी पार्टी का मानना है कि यह बंद होना चाहिए. यह किसानों के साथ धोखाधड़ी है. किसी भी गांव की ज़मीन वहां की ग्राम सभा की सहमति के बिना नहीं ली जानी चाहिए.
किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. एक तऱफ बीज एवं खाद के दाम बढ़ने से फसल की लागत कई गुना बढ़ गई है, वहीं दूसरी तऱफ सरकार उपज की ऐसी क़ीमत तय करती है कि लागत भी नहीं निकलती. आम आदमी पार्टी का मानना है कि किसानों को उनकी मेहनत और फसल का कम से कम इतना मूल्य तो मिले कि उन्हें उचित मुनाफा हो सके. पार्टी स्वामीनाथन की रिपोर्ट का हवाला देती है कि किसानों को उनकी सारी लागत जोड़कर उस पर कम से कम 50 प्रतिशत मुनाफा मिलना चाहिए. वह गांव में नागरिक सुविधाएं बेहतर करने के लिए स्वराज का मॉडल लागू करना चाहती है, जिसमें लोग अपने गांव के विकास के लिए उचित योजनाएं बनाकर उन्हें लागू कर सकेंगे. हर गांव में मूलभूत सुविधाएं हों और रोजगार मिले, जिससे गांव वालों को शहर की ओर न भागना पड़े, यही आम आदमी पार्टी के ग्रामीण विकास का मॉडल है. साथ ही यह पार्टी जल, जंगल और ज़मीन सहित सभी प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समाज के अधिकार की पक्षधर है.
आम आदमी पार्टी के एजेंडे में महंगाई दूर करना है. पार्टी का आरोप है कि सरकार ने बड़ी-बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए कई चीज़ें महंगी कर रखी हैं. यह भी सीधे-सीधे एक भ्रष्टाचार है. पार्टी का मानना है कि जिन वस्तुओं के दाम सरकार तय करती है, जैसे डीज़ल एवं पेट्रोल आदि, उनके दाम तय करने में जनता की भागीदारी होनी चाहिए, क्योंकि एक तऱफ तो भारत सरकार बड़ी-बड़ी अमीर कंपनियों को हर वर्ष 5 लाख करोड़ रुपये की छूट दे देती है और दूसरी तऱफ वह पेट्रोल एवं डीज़ल पर एक साल में आम आदमी से दो लाख करोड़ रुपये का टैक्स वसूल कर रही है. अमीरों का तो टैक्स मा़फ और आम आदमी का खून चूसा जा रहा है. अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि यदि इन अमीर कंपनियों से 13 लाख करोड़ का टैक्स वसूला जाए और आम आदमी पर दो लाख करोड़ का टैक्स मा़फ किया जाए तो पेट्रोल 50 रुपये प्रति लीटर हो सकता है और डीज़ल 40 रुपये प्रति लीटर. गैस सिलेंडर पर भी कटौती करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. 350 रुपये प्रति सिलेंडर के हिसाब से लोग जितने चाहें, उतने सिलेंडर ले सकेंगे. वह कहते हैं कि रिलायंस वाले जब चाहते हैं, मनमानी करके गैस के दाम बढ़ा देते हैं. सरकार उनका लाइसेंस रद्द करने की बजाय उनसे रिश्वत खाकर उनकी हर मांग पूरी कर देती है. इसलिए गैस महंगी है. अरविंद केजरीवाल बिजली के बिल को लेकर सुर्खियों में आए थे. वह कहते हैं कि बिजली कंपनियों के साथ साठगांठ करके दिल्ली सरकार ने बिजली के दाम 100 प्रतिशत तक बढ़वा दिए हैं. जबकि दिल्ली में बिजली के दाम 23 प्रतिशत कम होने चाहिए. बिजली कंपनियों को भारी मुनाफा हो रहा है और वे जनता का खून चूस रही हैं.
आम आदमी पार्टी सबको अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की बात करती है. कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं का शोषण एवं उनके खिला़फ हिंसा रोकने के लिए कारगर व्यवस्था और ग्रामीण लड़कियों को शिक्षा के विशेष अवसर एवं सुविधाओं पर भी पार्टी जोर देती है. एक और अच्छी बात यह है कि आम आदमी पार्टी कहती है कि कहीं भी ग्राम सभा और मोहल्ला सभा में मौजूद महिलाओं की मंजूरी के बिना किसी भी क़ीमत पर शराब का ठेका नहीं खुलना चाहिए. आम आदमी पार्टी संसद एवं विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई प्रतिनिधित्व देने के पक्ष में है और चुनाव सुधार के रूप में राइट टू रिजेक्ट एवं राइट टू रिकॉल क़ानून पारित करना चाहती है. आम आदमी पार्टी शिक्षा के बाज़ारीकरण के खिला़फ है, सरकारी नौकरियां पाने में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिला़फ है. पार्टी का मानना है कि बुजुर्ग, बेसहारा एवं अक्षम लोगों की गुजर-बसर समाज की ज़िम्मेदारी हो, इसके लिए पर्याप्त शक्ति, संसाधन और क्षमता ग्राम सभा-मोहल्ला सभा तक पहुंचे. असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की सुरक्षा की व्यवस्था हो. पार्टी का मानना है कि औद्योगिक मज़दूरों की दशा बहुत दयनीय होती जा रही है. उन्हें कांट्रैक्ट या ठेके पर रखा जाता है और जिसे जब चाहे, निकाल दिया जाता है. श्रम क़ानूनों का सरासर उल्लंघन किया जाता है, क्योंकि लेबर कमिश्नर बड़ी-बड़ी कंपनियों एवं ठेकेदारों से रिश्वत खाकर मज़दूरों के हितों को बेच देता है. मज़दूर ईमानदारी से इज्जत की ज़िंदगी जी सकें, उन्हें सभी बुनियादी सुविधाएं मिलें और उनके साथ अन्याय न हो, इसके लिए विशेष नीति बनानी होगी. आम आदमी पार्टी इसे सुनिश्चित करने का वायदा करती है.
अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के एजेंडों को आम जनता से जोड़ा है. वैचारिक दृष्टि से आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति में एक बदलाव का संकेत देती है, क्योंकि यह पार्टी एक ऐसे वैचारिक पटल पर है, जहां बदलाव ही एकमात्र रास्ता है. अच्छी बात यह है कि इस बदलाव में आंकड़ों के झांसे और विकास के नाम पर शोषण के लिए जगह नहीं है. इसमें शामिल होने के लिए लोगों में सेवाभाव और देशभक्ति होना अनिवार्य है, अन्यथा उनका दम घुट जाएगा. अगर इन मुद्दों पर लोगों ने स़िर्फ सोचना शुरू कर दिया तो कई बड़ी पार्टियों के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है. लेकिन सवाल यही है कि क्या आम आदमी पार्टी अपने विचारों को लागू कर पाएगी, क्या उसे जनसमर्थन मिलेगा और क्या वह चुनाव जीत पाएगी? पिछले 65 सालों में हमने बहुत कुछ हासिल किया है, लेकिन खो उससे ज़्यादा दिया है. आज भारत फिर से परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा है. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी इस परिवर्तन के सूत्रधार बन सकें और भारत के ग़रीबों, किसानों, मज़दूरों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों,अल्पसंख्यकों समेत सभी वंचित वर्गों को शोषण से मुक्ति मिल सके.
देश के सूचना मंत्री ने झूठ बोला
सुरेंद्र सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के एक जांबाज कमांडो, जो मुंबई हमले के दौरान आतंकवादियों से लड़ते-लड़ते मेडिकली अनफिट हो गए. सुरेंद्र सिंह ताज होटल से लोगों को बाहर निकालने के दौरान घायल हो गए थे. उसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें मेडिकली अनफिट घोषित कर दिया. तबसे उन्हें एक भी पैसा नहीं मिला है. उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्हें कोई भी आर्थिक लाभ, भत्ता या पेंशन नहीं मिली. और तो और, जो पैसा उन्हें एवं उनके साथियों को उपहार स्वरूप मिलने के लिए आया, वह भी उन्हें नहीं मिला. मीडिया को सुरेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि ऑफिस की फाइलों में उन्होंने रोहन मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड और एक दूसरी कंपनी के दो-दो लाख रुपये के चेकों की फोटोकॉपी देखी थी, लेकिन वह पैसा न तो उन्हें मिला और न उनके सहकर्मियों को.मीडिया में इस खबर के आने के बाद देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने जांबाज सुरेंद्र सिंह के दावों को झूठा करार दिया. उन्होंने कहा कि सुरेंद्र सिंह को केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार द्वारा 31 लाख रुपये दे दिए गए हैं. साथ ही उन्होंने यह भी फरमाया कि देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बचाने में जो लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं, उनकी इज्जत और प्रतिष्ठा को बचाने में सरकार पीछे नहीं रहेगी. वैसे एक बात है कि लंबी-लंबी बातें करना अगर किसी को सीखना हो तो उसे मनीष तिवारी से सीखना चाहिए. वह देश के केंद्रीय मंत्री हैं, झूठ बोलना उन्हें शोभा नहीं देता है. मनीष तिवारी के बयान के बाद जांबाज कमांडो सुरेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार झूठ बोल रही है. उन्होंने अपने बैंक एकाउंट भी मीडिया को दिखाए और कहा कि उन्हें एक भी पैसा नहीं मिला है.
कमांडो सुरेंद्र सिंह फिर मीडिया के सामने आए, उन्होंने अपने बैंक एकाउंट का ब्यौरा दिया. जंतर-मंतर में आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास ने मनीष तिवारी को ललकारा. उन्होंने कहा कि इस देश का सूचना मंत्री ही झूठ बोलता है. अब सवाल यह है कि अगर मनीष तिवारी की जानकारी सही है तो कमांडो सुरेंद्र सिंह के दूसरे दौर के दावों के बाद वह क्यों चुप बैठ गए, मीडिया से गायब क्यों हो गए, उन्होंने फिर से खंडन क्यों नहीं किया? कुमार विश्वास के बयान के बाद मनीष तिवारी ने इस मामले पर कुछ नहीं कहा. उनकी इस चुप्पी का मतलब क्या है, क्या सचमुच देश का सूचना मंत्री गलत सूचनाएं दे रहा है, क्या राजनीतिक दलों एवं नेताओं का स्तर इतना गिर चुका है कि हम यह भी भुला दें कि जिस कुर्सी पर कभी इंदिरा गांधी बैठा करती थीं, उस कुर्सी पर बैठने वाला मंत्री देश के सामने शान से झूठ बोलता है और मा़फी भी नहीं मांगता? या फिर यह मान लिया जाए कि इस देश में मंत्रियों द्वारा झूठ बोलना अब कोई खराब बात नहीं है? अच्छा तो यह होता कि मनीष तिवारी मीडिया के सामने खुद हाजिर होते और सफाई देते.
मनीष तिवारी कांग्रेस के ऐसे प्रवक्ता हैं, जो अपने बयानों को लेकर काफी अलोकप्रिय हुए. उनके इस बयान पर कि अन्ना हजारे तुम सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में लिप्त हो, के लिए उन्हें मा़फी तक मांगनी पड़ी थी, क्योंकि उनके हाव-भाव और उनकी भाषा से करोड़ों भारतवासियों को ठेस पहुंची थी. मनीष तिवारी ने फिर एक झूठ का सहारा लेकर अरविंद केजरीवाल पर हमला करने की कोशिश की है. उन्हें इस मामले पर बयान देना चाहिए और गलती से अगर उन्होंने देश के सामने झूठ बोला है तो उन्हें मा़फी मांगनी चाहिए. इसमें कोई बुराई नहीं है. हर व्यक्ति से गलती होती है और मा़फी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता, बल्कि उसकी साख बढ़ जाती है.
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