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नारी जो जननी है मगर उसे आज के विकासशील दौर में भी दोयम दर्जे का जीवन जीना पड़ता है. दुनियाँ भर में महिलाएं जहाँ अपनी योग्यता के बल पर शीर्ष पदों को शोभायमान कर रहीं हैं वहीँ विश्व के कई देशों में औरत आज भी मर्दों की गुलाम की तरह बरती जाती हैं. भास्कर ने दस ऐसे देशों की सूचि प्रकाशित की है जहाँ नारी आज भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. पेश है भास्कर की दिल दहला देने वाली रिपोर्ट…यूं तो मानवाधिकार आयोग का कहना होता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ अपमानजनक, निर्दयता या अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, बावजूद इसके महिलाओं को जेंडर के आधार पर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. सारी दुनिया में पुराने रीति-रिवाजों और धार्मिक सिद्धांतों की वजह से महिलाओं की दशा और भी खराब हो गई है.

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साल के गृहयुद्ध के बाद नेपाल इस मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां संसद में
33 फीसदी महिलाएं हैं. इसके बावजूद उनकी स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं
आया है. सफलता के बावजूद ये महिला राजनीतिज्ञ मानती हैं कि देश में पुराने
रीति-रिवाजों का ही बोलबाला है. हाल ही के युद्ध में 15000 लोगों के मरने
की बात कही गई है. उसी समय 22000 महिलाओं की प्रसव के दौरान मौत हो गई.
नेपाल में कम उम्र में ही शादी हो जाना आम बात है. यहां पर लड़के के जन्म
के लिए महिलाओं को कई बार प्रेग्नेंट होने के लिए मजबूर किया जाता है.
जेंडर के आधार पर भेदभाव तो आम बात है. इससे महिलाएं शिक्षा से वंचित रह
जाती हैं. नेपाल में घरेलू हिंसा एक बहुत बड़ी समस्या है. यहां पर ‘रूरल
वुमेंस नेटवर्क नेपाल’ जैसी संस्थाएं भी हैं, जो महिलाओं की दशा सुधारने का
काम कर रही हैं.
को
सबसे बुरे देशों में से एक बताया है. सऊदी अरब में हर उम्र की महिला के
साथ एक पुरुष अभिभावक का होना जरूरी है. यहां तक कि घर में घुसने के लिए
महिला-पुरुष के दरवाजे भी अलग होते हैं. वहां भेदभाव वाले नियम आज भी
मौजूद हैं, जैसे एक महिला 1990 के बाद से हवाई जहाज में यात्रा तो कर सकती
है, लेकिन एयरपोर्ट तक कार चला कर नहीं जा सकती है. 2012 में पहली बार सराह
अत्तर और वोजडन शाहरकनी ने ओलिंपिक में भाग लेकर एक नया इतिहास रचा. 2012
में एक नया नियम लागू किया गया, जिसमें 2015 में महिलाएं पुरुष की इजाजत के
बिना भी वोट दे सकेंगी.
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अक्टूबर, 2012 को मलाला यूसुफजई पर हुए हमले के कुछ महीनों बाद ही दुनिया
भर से हजारों लोगों ने मलाला को ‘नोबल शांति पुरस्कार’ देने की मांग की.
तालिबान ने इस 15 साल की लड़की को गोली मार दी थी, क्योंकि वह महिला शिक्षा
के लिए आवाज उठा रही थी. इसका इलाज ब्रिटेन में किया गया था और वह बच गई.
2008 में ही तालिबान ने सिर्फ महिला शिक्षा को रोकने के लिए करीब 150
स्कूलों को तबाह कर दिया. मलाला पर हुआ यह हमला तो बस एक ही पक्ष को दिखाता
है. इस देश में ऑनर किलिंग, जबरदस्ती शादी कराना, महिला तस्करी, रेप और
एसिड से हमला काफी आम बात है. पाकिस्तान में 90 फीसदी से ज्यादा महिलाएं
उनके परिवार के लोगों के द्वारा ही मानसिक रूप से प्रताड़ित की जाती हैं.
जाकर
थोड़ा ध्यान महिलाओं के अधिकारों पर दिया जा रहा है. चार दशकों से चीन में
‘एक बच्चे’ की पॉलिसी को प्रमोट किया जा रहा है, जिसका देश में जेंडर
अनुपात पर बहुत ही गहरा असर पड़ रहा है. यह अनुमान है कि चीन के लगभग 40
मिलियन पुरुषों को पार्टनर नहीं मिलेगी.
माली
में महिलाओं के गुप्तांग को अंग-भंग करने की बात सामने आती है. माली की 95
प्रतिशत से भी ज्यादा महिलाओं के साथ यह हुआ है. माली में शिक्षा की कमी
के कारण लोग इससे होने वाले मानसिक एवं शारीरिक नुकसान को नहीं समझ पा रहे
हैं. यह माना जाता है कि सेक्स के दौरान ज्यादा दर्द साइको-सेक्शुअल
समस्याओं का कारण बन सकता है.
के
न होने और अमेरिकी सेना के हटा लिए जाने के बावजूद इराक अभी भी खुद को
बंटा हुआ मानता है. एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि इराक में 19 फीसदी
महिलाएं मानसिक परेशानियों से जूझ रही हैं. कहा जाता है कि सद्दाम हुसैन की
मौत के बाद से महिलाओं की स्वतंत्रता काफी कम हो गई है. 2003 में कुछ
एनजीओ भी शुरू हुए जैसे, ‘ऑर्गेनाइजेशन फॉर वुमेंस फ्रीडम इन इराक’. नई
सरकार ने 2004 में एक ‘शारिया’ कानून भी लागू किया जो महिलाओं के विकास के
लिए बनाया गया. ओडब्ल्यूएफआई ने महिलाओं की सुरक्षा में एक बड़ा रोल अदा
किया है. इसने लोगों का ध्यान बढ़ते हुए रेप के मामलों, महिलाओं पर होने
वाले हमलों, ऑनर किलिंग जैसे मामलों की तरफ आकर्षित किया. धार्मिक एवं
सांप्रदायिक मामलों की वजह से महिलाओं को संघर्ष करना पड़ रहा है. 2003 से
इस्लाम के दबाव की वजह से बुर्का प्रथा को काफी बढ़ावा मिला. एक महिला डॉ.
लुब्ना नाजी ने बताया कि सद्दाम शासनकाल में महिलाएं ज्यादा स्वतंत्र थीं.
भारत
एक बहुत ही तेजी से बढ़ने वाली इकॉनोमी है. हालांकि, हाल में ही हुए कुछ
मामले जनता का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं. दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में बस
में हुए गैंगरेप मामले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया और यहां पर महिलाओं
की सुरक्षा पर एक महत्वपूर्ण सवाल भी उठाया. एक सर्वे के अनुसार हर 14 घंटे
में एक महिला का रेप होता है. 2012 में ‘थॉम्पसन रॉयटर्स फाउंडेशन’ के पोल
के मुताबिक, भारत में महिलाओं की स्थिति अन्य जी20 देशों के मुकाबले बहुत
ही खराब है. घरेलू हिंसा यहां की महिलाओं के मानसिक तनाव का एक कारण है.
महिलाओं
के लिए सोमालिया एक बहुत ही बुरा देश माना जाता है.अदान ने कहा कि उनका
विदेश मंत्री बनना राजनीति में एक बड़ी पहल है. इससे देश की हालत सुधारी जा
सकेगी. 2011 में ‘थॉम्पसन रॉयटर्स फाउंडेशन सर्विस ट्रस्ट लॉ’ ने यह पाया
कि महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसर बहुत कम हैं. महिलाओं के खिलाफ घरेलू
हिंसा आम बात है. यहां की 95 प्रतिशत लड़कियों के गुप्तांग अंग-भंग करने की
बात भी सामने आई है. इस्लामी आतंकवादियों अल-शबाब वाले क्षेत्र सबसे
ज्यादा बुरे माने जाते हैं. इन क्षेत्रों में महिलाओं को कैंपों में रहना
होता है. यहां पर हथियार बंद गुटों के द्वारा उनके साथ रेप किया जाना एक आम
बात है.