आइंस्टीन ने 100 साल पहले कहा था कि प्रकाश की गति से तेज कुछ नहीं हो सकता
है. पिछले साल इस पर सवाल उठे और कहा गया कि न्यूट्रीनो तेज हो सकते हैं.
कई परीक्षणों के बाद वैज्ञानिकों ने मान लिया कि आइंस्टीन सही थे.
एटम यानी परमाणु से भी छोटे इस कण पर स्विट्जरलैंड की मशहूर सेर्न
प्रयोगशाला में प्रयोग किए गए. इटली की ग्रैन सासो ने पिछले साल सितंबर में
यहीं दावा किया था कि गति के मामले में प्रकाश को भी मात देने वाला कोई कण
पा लिया गया है. हालांकि इसे तथ्य के तौर पर नहीं रखा गया था और कहा गया
था कि कुछ और प्रयोगों की जरूरत है. पिछले महीने पता चला कि मशीन में तार
लगाते वक्त कहीं कुछ गड़बड़ हुई थी. उसके बाद से इस बात पर शक और गहरा गया.
नई जानकारी इकारुस नाम के प्रयोग से सामने आई है. इसमें सर्न के वैज्ञानिकों ने एक एक कर सात न्यूट्रीनो को छोड़ा और देखा कि उनकी रफ्तार लगभग प्रकाश की गति के बराबर ही है. उससे ज्यादा कतई नहीं. इस नए प्रयोग के बारे में इससे जुड़े वैज्ञानिक सैंड्रो सेंट्रो का मानना कि इस बार सही नतीजे पा लिए गए हैं. उन्होंने कहा, "प्रकाश की गति और न्यूट्रीनो की गति बिलकुल बराबर थी."
ये सारे प्रयोग उस महाप्रयोग के हिस्से हैं, जो 2008 में शुरू हुआ था और शुरू में जिसकी वजह से अफवाह उड़ी थी कि दुनिया खत्म हो सकती है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि वह ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में जानने के लिए यह प्रयोग कर रहे हैं कि आखिर पृथ्वी और इसका वातावरण कैसा बना. वे बिग बैंग थ्योरी पर काम कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे ही एक विस्फोट के बाद धरती बनी थी.
पिछले बार के रिसर्च में कहा गया था कि न्यूट्रीनो ने सर्न से ग्रान सासो तक की 730 किलोमीटर तक की दूरी 60 नैनोसेकंड यानी सेकंड के 60 अरबवें हिस्से में पूरी कर ली थी. यह गति निश्चित तौर पर प्रकाश की गति से कहीं ज्यादा है. सर्न के रिसर्च डायरेक्टर सर्गियो बर्तेलुच्ची का कहना है, "अभी वैज्ञानिक मई में कुछ और प्रयोग करने वाले हैं. उसके बाद ही सर्न पक्के तौर पर कुछ कह सकता है."
कई वैज्ञानिकों ने पिछले प्रयोग के बाद से ही उस पर अंगुली उठानी शुरू कर
दी थी क्योंकि उससे आइंस्टीन का बुनियादी सिद्घांत गलत साबित हो रहा था.
साल 1905 में आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत दिया था, जिसमें कहा गया
था कि इस ब्रह्मांड में कोई भी वस्तु प्रकाश की गति से तेज नहीं चल सकता
है. अगर यह सिद्धांत गलत साबित हो जाए, तो आधुनिक भौतिकी के दर्जनों
सिद्धांत खारिज हो जाएंगे क्योंकि वे उसी बुनियाद पर तैयार हुए हैं. इसके
अलावा विज्ञान की हजारों किताबों को दोबारा लिखना होगा.
इसी से मिलते जुलते प्रयोग पर रोम के पास की एक प्रयोगशाला में भी रिसर्च चल रहा है. यहां के वैज्ञानिक शुरू से उस बात पर सवाल उठा रहे थे, जिसमें न्यूट्रीनो की गति के बारे में बात चल रही थी. उनका सीधा सा तर्क था कि अगर न्यूट्रीनो ने प्रकाश की गति भेद दी होती, तो उसकी ऊर्जा अत्यधिक कम हो जाती जो कि नहीं हुआ.
वैज्ञानिकों ने पहाड़ियों के बीच में सुरंगनुमा प्रयोगशाला तैयार की है, जिस पर बरसों चलने वली रिसर्च की जा रही है.
रिपोर्टः एपी, रॉयटर्स/ए जमाल
संपादनः एन रंजन
नई जानकारी इकारुस नाम के प्रयोग से सामने आई है. इसमें सर्न के वैज्ञानिकों ने एक एक कर सात न्यूट्रीनो को छोड़ा और देखा कि उनकी रफ्तार लगभग प्रकाश की गति के बराबर ही है. उससे ज्यादा कतई नहीं. इस नए प्रयोग के बारे में इससे जुड़े वैज्ञानिक सैंड्रो सेंट्रो का मानना कि इस बार सही नतीजे पा लिए गए हैं. उन्होंने कहा, "प्रकाश की गति और न्यूट्रीनो की गति बिलकुल बराबर थी."
ये सारे प्रयोग उस महाप्रयोग के हिस्से हैं, जो 2008 में शुरू हुआ था और शुरू में जिसकी वजह से अफवाह उड़ी थी कि दुनिया खत्म हो सकती है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि वह ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में जानने के लिए यह प्रयोग कर रहे हैं कि आखिर पृथ्वी और इसका वातावरण कैसा बना. वे बिग बैंग थ्योरी पर काम कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे ही एक विस्फोट के बाद धरती बनी थी.
पिछले बार के रिसर्च में कहा गया था कि न्यूट्रीनो ने सर्न से ग्रान सासो तक की 730 किलोमीटर तक की दूरी 60 नैनोसेकंड यानी सेकंड के 60 अरबवें हिस्से में पूरी कर ली थी. यह गति निश्चित तौर पर प्रकाश की गति से कहीं ज्यादा है. सर्न के रिसर्च डायरेक्टर सर्गियो बर्तेलुच्ची का कहना है, "अभी वैज्ञानिक मई में कुछ और प्रयोग करने वाले हैं. उसके बाद ही सर्न पक्के तौर पर कुछ कह सकता है."
इसी से मिलते जुलते प्रयोग पर रोम के पास की एक प्रयोगशाला में भी रिसर्च चल रहा है. यहां के वैज्ञानिक शुरू से उस बात पर सवाल उठा रहे थे, जिसमें न्यूट्रीनो की गति के बारे में बात चल रही थी. उनका सीधा सा तर्क था कि अगर न्यूट्रीनो ने प्रकाश की गति भेद दी होती, तो उसकी ऊर्जा अत्यधिक कम हो जाती जो कि नहीं हुआ.
वैज्ञानिकों ने पहाड़ियों के बीच में सुरंगनुमा प्रयोगशाला तैयार की है, जिस पर बरसों चलने वली रिसर्च की जा रही है.
रिपोर्टः एपी, रॉयटर्स/ए जमाल
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