किसानों की आत्महत्या: कितनी बड़ी समस्या?
सोमवार, 28 जनवरी, 2013 को 07:44 IST तक के समाचार
भारत में गरीबी और आर्थिक तंगी के
चलते बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्या करते हैं. सरकार कह रही है कि उसने
किसानों की आत्महत्या के मामलों को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं. लेकिन
मौजूदा स्थिति क्या है?
1990 के दशक से भारत में किसानों की आत्महत्या के
मामले सुर्खियां बटोरते रहे हैं. पहले-पहल महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर
किसानों की आत्महत्या की घटनाएं सामने आईं और उसके बाद देश के दूसरे
राज्यों में भी किसानों की आत्महत्या देखने को मिलीं.सरकार ने कई समितियों को जांच का जिम्मा सौंपा, बावजूद इन सबके बीते 18 महीनों से ये मामला एक बार फिर सुर्खियों में हैं.
बीते साल, केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि ये बेहद गंभीर मुद्दा है और सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि में निवेश बढ़ाने पर जोर दे रही है. इसके लिए फसल का न्यूनतम मूल्य भी बढ़ाया गया.
कर्ज़ की वजह
किसानों का समर्थन कर रहे समूहों का कहना है कि अनाज की वास्तविक कीमतें किसानों को नहीं मिलती और उन्हें जीएम कंपनियों से कपास के काफी महंगे बीज और खाद खरीदने होते हैं.इन समूहों के मुताबिक जीएम बीज को खरीदने में कई किसान गहरे कर्ज में डूब जाते हैं. जब फसल की सही कीमत नहीं मिलती है तो उन्हें आत्महत्या कर लेना एकमात्र विकल्प नजर आता है.
"भारत में वर्ष 2010 में करीब 1,90,000 आत्महत्याएं हुई हैं. इसमें किसान महज 10 फ़ीसदी ही हैं."
प्रभात झा, निदेशक, सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च
हाल ही में ब्रिटेन के निवेशक जिम रोजर्स ने बीबीसी से एक बहस के दौरान कहा कि पिछले कुछ सालों में भारत के लाखों किसानों ने आत्महत्या की है क्योंकि वे जीने लायक पैसे भी नहीं कमा पाए.
आधिकारिक तौर पर वर्ष 1995 से अब तक 2,70,000 किसानों ने आत्महत्या की है.
रोजर्स के मुताबिक, उन्होंने भारत में किसानों की आत्महत्या की खबरें अख़बारों में पढ़ी थी, लेकिन लगता है कि यहां एक लाख के लिए मिलियन का इस्तेमाल किया गया हो, जबकि एक मिलियन का मतलब दस लाख होता है.
बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं आंकड़े
अनीस मानते हैं कि दक्षिण एशिया में जिस तरह से एक लाख लिखा जाता है, उससे भ्रम पैदा हो सकता है.
वे कहते हैं, ''1,00,000 में दो कॉमा का इस्तेमाल होता है, इससे हो सकता है किसी ने गलती से एक लाख को दस लाख समझ लिया हो.''
ऐसा ही भ्रम करोड़ और लाख में भी हो सकता है. एक करोड़ में एक सौ लाख होते हैं. इसे 1,00,00,000 लिखा जाता है. यही वजह है कि जब अंग्रेजी में मिलेनियर की बात होती है तो दक्षिण एशिया में उसे करोड़ ही समझा जाता है.
यही वजह है कि स्लमडॉग मिलेनियर का हिंदी वर्जन स्लमडॉग करोड़पति हो जाता है.
क्या है वास्तविक तस्वीर?
बावजूद इसके सरकारी आंकड़े भी कम भयावह नहीं हैं. इनके मुताबिक भी हर साल भारत में हजारों किसान आत्महत्या करते हैं. सरकार के ताजा आकंड़ों के मुताबिक 2011 में करीब 14 हजार किसानों ने आत्महत्या की है.ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लैंसेट में भारत में आत्महत्याओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट छपी है जो बताती है कि कई आत्महत्याओं की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती है.
लैंसेट के मुताबिक, वर्ष 2010 में 19 हजार किसानों ने आत्महत्या की.
इस रिपोर्ट के लेखकों में शामिल और टोरांटो स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के निदेशक प्रभात झा कहते हैं, ''आधिकारिक आकंड़ों के लिए भारत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो पर निर्भर है, जहां वही मामले दर्ज होते हैं जिसे पुलिस आत्महत्या के तौर पर दर्ज करती है.''
लेकिन यहां आत्महत्या की वजह क्या है, उसे भी देखे जाने की जरूरत है, क्योंकि भारत एक बहुत विशाल देश है और यहां की आबादी भी बहुत ज़्यादा है. साथ ही आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा खेती पर ही निर्भर है.
केवल किसान ही नहीं करते आत्महत्याएं
प्रभात झा कहते हैं, '' वर्ष 2010 में भारत में करीब 1,90,000 आत्महत्याएं हुई हैं. इसमें किसान महज 10 फ़ीसदी ही हैं.''
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, अब भारत की महज 20 फ़ीसद आबादी खेती से जुड़ी है. प्रभात झा के नतीजों और संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में प्रति एक लाख लोगों में 15 लोग आत्महत्या करते हैं. खेती से जुड़े लोगों में यह हिस्सेदारी घटकर प्रति लाख सात लोगों की हो जाती है.
अगर किसानों की समस्या को सही ढंग से हल किया जाए तो ये आंकड़े और भी कम हो सकते हैं. लेकिन संसाधनों की कमी के चलते यह नहीं हो पा रहा है.
वैसे भारत में सड़क दुर्घटना के बाद युवाओं की मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या ही है.
प्रभात झा के मुताबिक, किसानों की आत्महत्या पर ज्यादा जोर दिए जाने से दूसरे क्षेत्रों में आत्महत्याओं पर बात नहीं हो पाती.
लैंसेट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में किसान बड़े पैमाने पर आत्महत्या जरूर कर रहे हैं, लेकिन यह दूसरे क्षेत्रों के लोगों की आत्महत्याओं के मुकाबले बहुत ज़्यादा और अविश्वसनीय भी नहीं है.
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