देस में अपनी ज़मीन के लिए लड़ते परदेसी
गुरुवार, 31 जनवरी, 2013 को 14:56 IST तक के समाचार
भारत में हाल के वर्षों में ज़मीन
के दामों में जबरदस्त इजाफा हुआ है. ऐसे में भारतीय मूल के उन लोगों की
तादाद बढ़ रही है जो विरासत में मिली ज़मीन से पैसा बनाने के लिए ब्रिटेन
से भारत का रुख कर रहे हैं.
लेकिन भारत पहुंचने पर ज्यादातर लोगों को पता चलता
है कि या तो वो ज़मीन बेच दी गई है या दूसरे लोगों ने उसे हथिया लिया है.
कई मामलों में ज़मीन कानूनी दांव पेंच में फंसी मिलती है.सिंह के पिता 1960 के दशक में भारत से जाकर ब्रिटेन में बसने वाले उन पहली पीढ़ी के लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने एक नए मुल्क में मेहनत से अपनी तकदीर बनाई.
हाथों से निकलती ज़मीन
इकबाल सिंह बताते हैं, “हम बहुत गरीब थे. हमारे पास टीवी भी नहीं था.”इकबाल सिंह के पिता ने ब्रिटेन में की गई अपनी गाढ़ी कमाई से भारत में ज़मीन खरीदी क्योंकि उनकी आंखों में एक दिन वापस लौट जाने का सपना पलता था.
"जब मेरे पिता दम तोड़ रहे थे तो मैंने उनसे वादा किया था कि ज़मीन को वापस लेकर रहूंगा और मैं अपने वादे नहीं तोड़ता हूं."
इकबाल सिंह, एनआरआई
लेकिन इकबाल सिंह बताते हैं, “मेरे पिता एक बार खेत देखने गए तो पता चला कि उस पर तो कोई और मालिक होने का दावा कर रहा है.”
इकबाल के परिवार ने 1996 में अपनी ज़मीन को उसके नए मालिकों से हासिल करने के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू की. हालांकि नए मालिकों का कहना है कि उन्होंने तो पूरी ईमानदारी से पैसे देकर ज़मीन ली है.
इसके बाद न जाने कितनी बार अदालत की सुनवाई हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
ये कहानी झूठ, धोखे और विश्वासघात की है और ये इस तरह का इलकौता मामला नहीं है.
कानूनी दांव पेंच
लंदन में 'लिटिल पंजाब' कहे जाने वाले साउथहॉल के इलाके में अपना दफ्तर चलाने वाले वकील हरजाप सिंह भंगल के पास इस तरह के बहुत सारे मामले हैं.वो बताते हैं, “ये बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि ब्रिटेन में रह रहे पंजाबी अपने पूर्वजों की ज़मीन प्राप्त करना चाहते हैं.”
पिछले एक दशक में पंजाब में तेजी से शहरीकरण हुआ है और ज़मीन के दाम आसमान को छू रहे हैं.
जालंधर में काम करने वाले प्रॉपर्टी डीलर जग चीमा का भारत के साथ साथ ब्रिटेन में भी दफ्तर है.
वो बताते हैं कि जालंधर में अच्छी लॉकेशन पर दो एकड़ के एक प्लॉट की कीमत दस लाख पाउंड यानी साढ़े आठ करोड़ रुपये के आसपास है. ऐसे प्लॉट्स पर दुकानें और अपार्टमेंट्स बनाए जा रहे हैं.
चीमा बताते हैं कि जब ज़मीन के दाम हवा से बात कर रहे हों तो ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के लोग भला अपना हक कैसे भूल सकते हैं.
भारतीय अदालतों में किसी मामले के निपटारे में 25 से 30 साल भी लग जाते हैं और इस पर बड़ी रकम खर्च होती है.
ऐसे में दोनों पक्ष एक दूसरे पर डराने और धमकाने के आरोप भी लगाते हैं.
पंजाब पुलिस का कहना है कि हर साल इस तरह के दो से ढाई हजार मामले दर्ज होते हैं जिनमें से ज्यादातर अदालत तक पहुंचते हैं.
पिता से किया वादा
इस बीच ज़मीन से जुड़े विवादों से फायदे उठाने वाले गिरोह भी पैदा हो गए हैं जो बेहद सस्ते दामों पर तुरत फुरत में ये ज़मीन खरीद रहे हैं.पुलिस का कहना है कि उन्हें इस बारे में जानकारी है.
"जब ज़मीन के दाम हवा से बात कर रहे हों तो ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के लोग भला अपना हक कैसे भूल सकते हैं."
जग चीमा, प्रॉपर्टी डीलर
इस महीने पंजाब में राज्य सरकार की तरफ से कराए गए एनआरआई सम्मेलन में भी इस मामले पर चर्चा की गई थी. ऐसे मामलों में शिकायत के लिए एक वेबसाइट बनाई गई है और ऐसे मुकदमों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाने की बात भी हो रही है.
लेकिन इकबाल सिंह इन कदमों से ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. वकीलों का कहना है कि उनके मामले को हाई कोर्ट तक पहुंचने में ही दस साल लग सकते हैं. लेकिन वो इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि अपने पिता की गाढ़ी कमाई से खरीदी गई ज़मीन को वापस लेकर ही रहेंगे.
वो बताते हैं, “जब मेरे पिता दम तोड़ रहे थे तो मैंने उनसे वादा किया था कि ज़मीन को वापस लेकर रहूंगा और मैं अपने वादे नहीं तोड़ता हूं.”
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