10.9.12

वासेपुर जैसे ढेरों गैंग्स हैं झारखंड में

 मंगलवार, 11 सितंबर, 2012 को 08:25 IST तक के समाचार

कोयला खदान में चोरी कर भागते लोग
धनबाद की धरती ने कोयले के लिए वर्चस्व की लड़ाई में काफी खून बहाया है.
'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' में ये देखकर कई लोग चकित थे कि कोयला खदानों में किस तरह से हथियारों के दम पर मज़दूरों से काम करवाया जाता था.
लेकिन ये तस्वीर सिर्फ़ फ़िल्मी नहीं है. सच है. और झारखंड में जगह-जगह दिखती है. ख़ासकर वहाँ जहाँ कोयला है.
धनबाद के निरसा की छोटी-छोटी पहाड़ियों पर तड़के से ही आस-पास की बस्तियों से मजदूरों का झुंड उमड़ पड़ता है. वे बंद पड़ी खदानों से कोयला निकालने का काम शुरू कर देते हैं.
मोटर साइकिलों पर सवार हथियारबंद लोग इनकी निगरानी करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा कोयला निकाला जा सके. ज़्यादा कोयला यानी ज़्यादा मुनाफा.
मेरे वहां पहुँचते ही हलचल मच गई. कुछ लोग मेरा पीछा करते हुए वहां तक आ पहुंचे. देखने से ही पता चल रहा था कि सबकी कमर में कट्टे छुपे हुए हैं.
ये कोयले की अवैध खदानों के संचालक तो नहीं हैं मगर उनके 'लठैत' हैं.
उन्हें पता था मैं कौन हूँ क्योंकि मैं इस इलाके में रह चुका हूँ. वह खुलकर मेरा विरोध नहीं कर पाए. मगर धमकी भरे अंदाज़ से वो ये फिर भी कह गए कि उनके इलाके का नाम मैं ना बताऊं.
मजबूरी .
इन लठैतों की मौजूदगी में कोई कुछ नहीं बोलता.
कोई हिम्मत अगर करेगा तो उसका अंजाम क्या होगा इसकी कल्पना कठिन नहीं है. धनबाद की धरती ने काफी खून खराबा देखा है.
मेरे एक पुराने परिचित ने मुझे बताया कि अप्रैल महीने में कोयले के अवैध कारोबार में वर्चस्व को लेकर दो बड़े गुटों में इतना बड़ा संघर्ष हुआ कि खुलेआम बम फूटे और बंदूकें गरजीं. इस संघर्ष में एक मारा गया और कई घायल हुए थे.
क्या ये सिर्फ़ संयोग है कि इन खेमों का नेतृत्व झारखंड के दो राजनीतिक दलों से जुड़े नेता कर रहे थे जिन्होंने इस व्यापार पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया है?
"हम मजदूरी कर रहे हैं तो आप कैमरा लेकर हमारे पीछे आ गए. उन लोगों की तस्वीर क्यों नहीं लेते जो करोड़ों रूपए कमा रहे हैं. वो बड़े लोग हैं. दबंग हैं. हम तो मजदूरी करते हैं. जान हथेली पर रख कर काम करते हैं और दिन भर की कमर तोड़ मेहनत के बाद सौ रूपए मिलते हैं. उसमें से भी पुलिस को देना पड़ता है."
बालेश्वर महतो, खदानों से कोयला चोरी करने वाला मज़दूर
और ये भी संयोग नहीं है कि कोयले के अवैध खनन के लिए बदनाम हैं ग़रीब लोग जिनके पास आजीविका चलाने का कोई दूसरा साधन नहीं है.
मानवाधिकार का मामला .
निरसा के मुगमा इलाके में मुझे देखते ही काम करने वाले लोग बिदक गए.
उनमें से एक बालेश्वर महतो (बदला हुआ नाम) ने पूछा, "हम मजदूरी कर रहे हैं तो आप कैमरा लेकर हमारे पीछे आ गए. उन लोगों की तस्वीर क्यों नहीं लेते जो करोड़ों रुपए कमा रहे हैं. वो बड़े लोग हैं. दबंग हैं. हम तो मजदूरी करते हैं. जान हथेली पर रख कर काम करते हैं और दिन भर की कमर तोड़ मेहनत के बाद सौ रुपए मिलते हैं. उसमें से भी पुलिस को देना पड़ता है, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवानों को और स्थानीय रंगदारों को. हम तो बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर पाते हैं."
हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने झारखंड सरकार को एक नोटिस भेजकर कोयले के अवैध खनन को बंद करने का निर्देश दिया है.
आयोग के नोटिस में कहा गया है कि संगठित गिरोह स्थानीय लोगों और आदिवासियों से इन खदानों में मजदूरी करवा रहे हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि धंधे में लगे संगठित लोगों की ग़रीबी का फायदा उठा रहे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अवैध उत्खनन के दौरान हज़ारों मौतें भी होती हैं मगर ये हादसे रिपोर्ट नहीं किए जाते क्योंकि इस इलाके में संगठित गिरोह का वर्चस्व है.
हर मौसम की एक कहानी .
निरसा से निकलकर मैं रामगढ़ की घाटियों में पहुंचा. यहाँ भी वही नज़ारा.
"सूबे की ज़्यादातर आबादी चोरी का कोयला लेने को मजबूर है क्योंकि इतने वर्षों में आज तक राज्य में सरकारी कोयले के डिपो नहीं है."
अमिताभ कौशल, ज़िलाधिकारी, रामगढ़
लेकिन यहाँ लम्बी कतारों में साइकिलें भी दिखीं जिन पर कोयला लदा हुआ था. इतना कोयला कि उनकी सवारी नहीं की जा सकती, सिर्फ़ पैदल चला जा सकता है.
साइकिलों को धकेलते हुए मीलों का सफ़र.
बंद पड़ी खदानों से कोयला अपनी साइकिलों पर लाद कर ये लोग 40 से 50 किलोमीटर का सफ़र तय करते हैं.
चाहे वह सर्द हवाओं के थपेड़े हों या फिर गर्मियों की चिलचिलाती धूप. इनका काम कभी नहीं रुकता.
रामगढ़ की घाटियों में मिले अमीनुल्लाह (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि ये कोयला उन्होंने रामगढ़ में ही सीसीएल की खदान के पास से चोरी किया है.
जबकि उनके साथ साइकिल पर कोयला लादे उनके साथियों का कहना है कि दामोदर नदी के किनारे से कोयले का अवैध खनन कर इसे बेचने जा रहे हैं.
यहाँ भी संगठित गिरोह सक्रिय हैं.
अपनी-अपनी मजबूरियां .
लेकिन सवाल ये है कि शासन प्रशासन की ओर से कोई क़दम क्यों नहीं उठाया जाता?
अवैध खनन के मामले पर रामगढ़ के जिला अधिकारी अमिताभ कौशल थोड़ी देर बाद ही अपनी मजबूरियाँ गिनाने लगते हैं.
पहले उन्होंने ठीकरा उन कंपनियों के सिर फोड़ा जिन्होंने खनन बंद करने के बाद खदानों को सील नहीं किया. फिर वे कहने लगे कि अगर सिर्फ़ ग़रीबों को पकड़ा तो इलाक़े में अपराध बढ़ सकता है.
कोयला खदानों में चोरी करते लोग
यहां की छोटी छोटी पहाड़ियों पर तड़के से ही आसपास की बस्तियों से मजदूरों का झुंड उमड़ पड़ता है.
कौशल ने बताया कि सूबे की ज़्यादातर आबादी चोरी का कोयला लेने को मजबूर है क्योंकि इतने वर्षों में आज तक राज्य में सरकारी कोयले के डिपो नहीं है.
वो कहते हैं, "अगर आपको खाना पकाने के लिए कोयले की ज़रुरत है तो आपको भी चोरी का कोयला ही लेना पड़ेगा, यहाँ कोई सरकारी डिपो नहीं है.
"अगर रामगढ़ या धनबाद या फिर कोयलांचल के किसी भी जिले के कलेक्टर इस धंधे में लगी बड़ी मछलियों के कोई कुछ नहीं बिगड़ सकते क्योंकि इनके तार दूर-दूर तक जुड़े हैं. यह मामला राजनीतिक है.''
अवैध उत्खनन के मामले को लेकर अब कोल इण्डिया लिमिटेड ने जमशेदपुर स्थित जेवियर लेबर रिसर्च इंस्टीटयूट और धनबाद स्थित इन्डियन स्कूल ऑफ़ माइन्स की मदद मांगी है.
बंदूकों और लाठियों के दम पर हो रही कोयले की चोरी को रोकने के लिए ये संस्थान क्या उपाय सुझाते हैं ये देखना दिलचस्प होगा.

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