13.7.13

जन-आंदोलन का स्वरूप

संविधान निर्माताओं ने बालिग मताधिकार पर आधारित लोकशाही की पश्चिमी पद्धति स्वीकार की, जिसकी नींव में बिखरे हुए और असंगठित मतदाताओं का समूह है, जिसे भ्रष्ट करना और भरमाना आसान है. आज बहुत से लोगों की आकांक्षा सुशासन की है. स्व-शासन के बिना सुशासन हो नहीं सकता, इसे लोगों ने अच्छी तरह देख और समझ लिया है. लेकिन फिर भी, कई लोगों में भ्रम बाकी है. उसे तोड़ना होगा और ग्राम स्वराज्य की भावना को जगाना होगा. दो सौ साल से स्व-शासन की सत्ता जनता से ले ली गई है. अब केंद्रीय सत्ता के बहुत सारे ढांचों को तोड़ना होगा और स्व-शासन की मांग गांव-गांव से जन-जन से उठे, ऐसा माहौल बनाना होगा. अत: गांव-गांव से सारी सत्ता जनता को, यह जोरदार मांग उठे. इसके लिए ग्राम-पंचायतें और ग्रामसभाएं इकट्ठा होकर प्रस्ताव पास करें. सारे देश में साल भर में या उससे भी जल्द ऐसा माहौल बने, तो हज़ारों-लाखों गांव सरकार के सामने इस हक के लिए प्रदर्शन कर सकते हैं. सरकार को सूचना देकर ऐसा करने के लिए उस पर दबाव भी लाया जा सकता है. सूचना की अवधि समाप्त हो जाने पर यदि सरकार इस विषय पर उदासीनता बरते, तो ग्राम और नगरवासियों के लिए स्व-शासन के अधिकार प्राप्ति के लिए सत्याग्रह का क़दम अनिवार्य हो जाएगा. सत्याग्रह की तिथि, निश्चित स्वरूप आदि बातें उस समय की परिस्थिति को देखकर जनता तय करेगी. इस आंदोलन का प्रारंभ उपवास यानी आत्म-शुद्धि से हो. एक स्वरूप यह भी हो सकता है कि जनता गांव-गांव में ग्रामसभा बनाए और संविधान में परिवर्तन की बाट देखे बिना अपने जन्मसिद्ध अधिकारों का उपयोग करना शुरू कर दे, मानो उसे यह अधिकार है ही. जैसे, लगान ग्रामसभा को देना या ग्रामसभा द्वारा तहसील में, संभवत: अनाज के रूप में, जमा कराना, अपने खेत में एक या दो नए पेड़ लगाकर एक जीर्ण पेड़ काटने की अनुमति ग्रामसभा से लेकर पेड़ काटना, बेघर लोगों को घर बनाने के लिए राजस्व विभाग से इजाजत न लेते हुए ग्रामसभा से अनुमति लेकर घर बनाना. यानी ग्रामसभा द्वारा ऐसी ज़मीनों का आवंटन, परती ज़मीन का खेती के लिए आवंटन इत्यादि कार्य ग्रामसभा शुरू कर दे.
सत्याग्रह के परिणामों को भुगतने की तैयारी जहां-जहां ग्रामसभा यानी ग्रामवासियों की होगी, वहां-वहां ऐसा क़दम उठाया जा सकता है. और भी कई उपाय भविष्य में लोगों को सूझेंगे और वे उस पर शांतिपूर्ण एवं शुद्ध तरीके से अमल करेंगे. अन्याय के खिलाफ जुझारूपन एवं शुद्ध साधन, ये दोनों सत्याग्रह के सार-सर्वस्व हैं. इन्हें ख्याल में रखते हुए विभिन्न कार्यक्रम ग्रामसभा अमल में लाएगी. ग्रामसभा गांव के निर्माण के लिए कई रचनात्मक कार्यक्रम चलाएगी, जैसे उत्तम एवं विपुल कम्पोस्ट खाद बनाना. महाराष्ट्र में पुसद के श्री नारायणराव पांढरीपांडे ने, मवेशियों के गोबर एवं मूत्र से आज से 10-20 गुना बढ़िया खाद बनाई जा सकती है, यह सिद्ध किया है. लेनिन ने एक बार कहा था कि लोगों को विचार रूपी अस्त्र दो और विचार के अस्त्र से लोग स्वयं सुसज्जित हो जाएंगे. ग्राम स्वराज्य यानी सारी सत्ता जनता को, यह ऐसा विचार है, जिसके लिए समय पक गया है. स्वराज में जनता आज हतवीर्य और गुलाम हो गई है. अत: केंद्रीय अर्थ-नीति और राज्य-नीति से मुक्त होने के लिए आंदोलन करने का समय आ गया है. इस मुक्ति की लड़ाई में जनता उत्साह से हिस्सा लेगी. अत: वह दिन दूर नहीं है, जब भारत के गांव फिर से एक बार ग्राम स्वराज्य को प्राप्त करके रहेंगे. स्वतंत्रता के लिए यह दूसरी लड़ाई होगी. इसे स्वयं समझने, दूसरों को समझाने और आंदोलन चलाने के लिए हर रोज एक घंटा या सप्ताह में कुछ समय हर समझदार नागरिक दे.
ऐसा इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि सन्‌1947 में प्राप्त किया हुआ स्वराज्य अपूर्ण रह गया है. अत: कार्य समाप्त नहीं हुआ है. संग्राम कभी समाप्त नहीं होता. स्वराज्य के बाद गांधी जी ने कहा था, स्वतंत्रता एक ऐसा जीवन-मूल्य है, जिसके लिए नित्य-नई लड़ाइयां लड़नी होंगी. और हम स्वतंत्रता की सुगंध गंवा रहे हैं, क्योंकि हर विजय के बाद हम यह मानने की भूल कर बैठते हैं कि अब हम विराम ले सकते हैं, विश्राम कर सकते हैं और संघर्ष को आगे ले जाए बिना विजयोत्सव मना सकते हैं. स्वतंत्रता संग्राम का कभी अंत नहीं होता है और रणक्षेत्र कभी शांत नहीं होता है. हर ग्रामवासी एवं भारतीय का स्वतंत्रता की मुक्ति की इस दूसरी लड़ाई में हिस्सा लेना उसका गौरवपूर्ण अधिकार एवं पवित्रतम कर्तव्य है. -

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