22.7.13

जब एक महिला ने आजाद से छीन ली थी पिस्तौल तब..

जब एक महिला ने आजाद से छीन ली थी पिस्तौल तब..

Updated on: Tue, 23 Jul 2013 10:27 AM (IST)
chandrashekhar azad
जब एक महिला ने आजाद से छीन ली थी पिस्तौल तब..
नई दिल्ली। पंडित चंद्रशेखर आजाद का जन्म भावरा गांव [अलीराजपुर जिला] में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। उनके पूर्वज बदरका [वर्तमान उन्नाव जिला] से थे । आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी मध्यप्रदेश के अलीराज रियासत में नौकरी करते थे और फिर वे वहीं भावरा गांव में बस गए। चंद्रशेखर के माताजी का नाम जगरानी देवी था।
आजाद का प्रारंभिक जीवन आदिवासी इलाके में बीता था इसलिए वे बहुत कम समय निशानेबाजी कला में पारंगत हो गए थे। बालक चंद्रशेखर आजाद का मन अब देश को आजाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रांति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रांतिकारियों का गढ़ था। वे मंमथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क में आये और क्रांतिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रांतिकारियों का वह दल हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के नाम से जाना जाता था।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अत्यन्त सम्मानित और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी के रूप चंद्रशेखर आजाद को जाना जाता है। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे महान क्रांतिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले काकोरी कांड किया और फरार हो गये। इसके बाद बिस्मिल के साथ उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का वध करके लिया और दिल्ली पहुंच कर असेम्बली बम कांड को अंजाम दिया।
1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चंद्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे। तभी से उनके मन में एक आग धधक रही थी। जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन का फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पडी और तमाम अन्य छात्रों की भांति चंद्रशेखर भी सड़कों पर उतर आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ्तार हुए और उन्हें बेतों की सजा मिली।
असहयोग आंदोलन के दौरान जब चौरी चौरा की घटना के पश्चात बिना किसी से पूछे गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आजाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ [एच0 आर0 ए0] का गठन किया। चंद्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इस संगठन ने जब गांव के अमीर घरों में डकैतियां डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके तो यह तय किया गया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गांव में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आजाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आजाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रांतिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गांव ने हमला कर दिया। बिस्मिल ने मकान के अन्दर घुसकर उस औरत को कसकर चांटा मारा, पिस्तौल वापस छीनी और आजाद को डांटते हुए खींचकर बाहर लाये। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया। अपने पक्के उसूलों के कारण आजाद भारत माता की सेवा में 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद हो गए।

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