एक त्यौहार भाई-बहन के रिश्तों के नाम : रक्षाबंधन
पोस्टेड ओन: 13 Aug, 2011
रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्यौहार है तो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं. पूरे भारत में इस दिन शमां देखने लायक होता है और हो भी क्यूं ना, यही तो एक ऐसा विशेष दिन है जो भाई-बहनों के लिए बना है. यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है. बरसों से चला आ रहा यह त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है. रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं. हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है. राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है. राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है. विश्वकवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने इस पर्व पर बंग-भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था.
रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व
रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है. वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है. कथा इस प्रकार है- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी. वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया. उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया. लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई. नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बाधकर उसे अपना भाई बना लिया. बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी.
महाभारत में राखी
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है. जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी. शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी. यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था. रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है.
ऐतिहासिक महत्व
इतिहास में भी राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं. मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी. हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी. कहते हैं, सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था. पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था.
विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस पर्व पर बंग भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था. 1947 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया.
आज यह त्यौहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्यौहार पर गर्व है. लेकिन भारत जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं. आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्यूंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता इस दुनिया में आने से पहले ही मार देते हैं. यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं. यह त्यौहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं. अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन भी. भाई-बहनों के इस त्यौहार को जिंदा रखने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर कन्या-भ्रूण हत्या का विरोध करें और महिलाओं पर हो रहे शोषण का विरोध करें. अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि राह चलते वह जिस महिला या लड़की पर फब्तियां कस रहे हैं वह भी किसी की बहन होगी और जो वह दूसरों की बहन के साथ कर रहे हैं वह कोई उनकी बहन के साथ भी कर सकता है.
हम आशा करते
हैं कि रक्षाबंधन का यह त्यौहार हमेशा इसी हर्षोल्लास के साथ मनाए जाएगा और
देश की संस्कृति में यह त्यौहार इसी तरह नगीने की तरह चमकता रहेगा.
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