जुलाई
2010 में सरकार ने एक आरटीआई के अंतर्गत पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था
कि देश में एफसीआई के विभिन्न गोदामों में 1997 से 2007 के बीच 1.83 लाख टन
गेहूं, 6.33 लाख टन चावल और 2.2 लाख टन धान खराब हो गया था. जुलाई 2012
में एक अन्य आरटीआई के जवाब में एफसीआई ने कहा है कि 2008 से लेकर अब तक
देश में एफसीआई के किसी भी गोदाम में अनाज खराब नहीं हुआ है. यह जवाब
आश्चर्यजनक है. दो ही साल में अनाज के रखरखाव में ऐसा कौन-सा जादुई बदलाव आ
गया है, जिससे एफसीआई के गोदामों में ज़रा भी अनाज खराब नहीं हुआ? अगर ऐसा
कोई परिवर्तन हुआ है तो एफसीआई उसे लोगों के सामने लाने में हिचक क्यों रही
है? अगर एफसीआई इस बदलाव को लोगों के सामने रखेगी तो प्रदेशों के वेयरहाउस
कॉर्पोरेशन इससे सीख लेंगे और अनाज सड़ने से बचेगा.
2010 में संसद में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने स्वीकार किया था कि
खाद्यान्न के सड़ने की घटना एक शर्मनाक सच्चाई है. उन्होंने कहा था कि
जुलाई 2010 तक सरकारी गोदामों में 11,700 टन से अधिक अनाज सड़ा हुआ पाया गया
है, जिसकी क़ीमत लगभग 6.86 करोड़ रुपये है. उन्होंने कहा कि 2000-01 से लेकर
2009-10 तक कुल 7.36 लाख टन खाद्यान्न सरकारी गोदामों में खराब हुआ है.
अक्टूबर 2011 में एफसीआई के चेयरमैन सिराज हुसैन ने एक साक्षात्कार में कहा
था कि 1 अगस्त, 2010 को देश भर के एफसीआई गोदामों में 14000 टन अनाज खराब
हो गया था. इसी दौरान अनाज सड़ने के विषय पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने
केंद्र सरकार को फटकारते हुए कहा था कि सरकारी गोदामों में सड़ रहा लाखों टन
अनाज ग़रीबों को मुफ्त बांट दें. इसे सलाह नहीं आदेश मानें. हर साल देश में
हुए कुल खाद्यान्न उत्पादन का 10.5 प्रतिशत अनाज खराब हो जाता है. इसमें
से एक बड़ा हिस्सा खुले में अनाज भंडारण और बाक़ी सरकारी गोदामों में खराब
प्रबंधन और रखरखाव की वजह से खराब होता है. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च के
आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के 50 प्रतिशत भूखे लोग भारत में रहते हैं. 2011
के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को 67वां स्थान मिला है. देश में लोग
भूखे मर रहे हैं और सरकारी महकमे आकड़ों का खेल, खेल रहे हैं. केंद्रीय कृषि
मंत्री का बयान कहता है कि 2009 में अनाज सड़ने से सरकार को 3 करोड़ रुपये
और 2010 में 6 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है. हर साल देश में लगभग साठ लाख
टन अनाज सड़ जाता है या फिर चूहे खा जाते हैं. आरटीआई से मिली सूचना से तो
ऐसा ही लगता है कि एफसीआई गोदामों का ठेका चूहों ने ले रखा है. एफसीआई
गोदामों में रखा लाखों टन अनाज चूहे खा जाते हैं और उसे सड़ने से बचा लेते
हैं, जैसा कि इलाहाबाद के एफसीआई गोदाम में हुआ, जहां 50 हज़ार मीट्रिक टन
चावल और गेहूं गोदाम में कम पाया गया. कर्मचारियों ने यह कहा कि स्टॉक में
अनाज चूहों के खाए जाने की वजह से कम है. एफसीआई कर्मचारियों का यह जवाब भी
बचकाना था. अब आरटीआई के तहत दिया गया जवाब भी बचकाना है, जिसमें कहीं भी
अनाज न सड़ने की बात की जा रही है. इस जवाब से तो यही लगता है कि यह माननीय
उच्चतम न्यायालय के उस आदेश की अवहेलना से बचने की कोशिश है, जिसमें
न्यायालय ने एक भी दाना न सड़ने देने की बात कही थी. अगर अब वह अनाज के सड़ने
की बात स्वीकारती है तो उसे लोगों को अनाज मुफ्त बांटना होगा. शायद सरकार
ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहती है. इसी कारण एफसीआई ने ऐसा जवाब दिया है.
क्या सरकार इस तरह का झूठा जवाब दे सकती? एक तऱफ तो सरकार राइट टू फूड बिल
संसद में लाने में लगी हुई है, जिसमें ज़रूरत से ज़्यादा समय लग रहा है,
वहीं दूसरी तऱफ खाद्य संरक्षण की हक़ीक़त को लोगों से छिपाने की कोशिश कर
रही है.
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