आप खुद सोचिये की जब कसाब पर रोज 3.5 लाख रुपये खर्च हो रहे है तो क्या फांसी में 50 रूपए फांसी होगी
कसाब को फांसी देने का खर्च सिर्फ 50 रूपए!
मुंबई
: अजमल कसाब को सुरक्षित रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार अब तक करीब पचास
करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। लेकिन यदि कसाब को फांसी पर लटकाने की बात हो
तो ये काम महज 50 रुपये में ही हो जाएगा। नियम के मुताबिक किसी अपराधी को
फांसी देने के लिए सरकारी बजट में इतने ही रुपए खर्च करने का प्रावधान है।
यानी जिस कसाब को सेफ रखने के लिए राज्य सरकार ने 50 करोड़ रुपए खर्च कर
दिए, उसी कसाब को फांसी देने में मात्र 50 रुपए ही लगेंगे।
अगर एक अपराधी को मौत की सजा सुनाई जाती है तो जेल कर्मचारियों को सबसे पहले फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति की गर्दन के माप और वजन को मापने के लिए कहा जाता है। अपराधी की गर्दन के सही माप और वजन के बाद एक ऐसे कोण की माप की जाती है जिसके जरिये जब उसे फांसी दी जाए तो उसके बाएं कान के नीचे के जबड़े पर दबाव बने। फांसी देने से पहले जेल अधिकारी अपराधी के वजन की कोई चीज फांसी पर लटकाकर इसका परीक्षण करते हैं।
फांसी की सजा जेल अधीक्षक द्वारा अनुमति
प्राप्त लोग ही देख सकते हैं जिनकी संख्या एक दर्जन तक हो सकती हैं। अपराधी
के रिश्तेदार भी चाहें तो सजा देख सकते हैं। हालांकि कसाब के मामले में
ऐसा नहीं होने की संभावना है क्योंकि कसाब का कोई ज्ञात रिश्तेदार भारत में
नहीं है। फांसी की तारीख तय होने के बाद फांसी देने वाली रस्सियों को मापा
जाता है और इनके परीक्षण के बाद कुछ और कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा किया
जाता है।
जेल अधीक्षक कसाब को इस बात की सूचना दे
सकते हैं कि उसके पास सात दिनों का वक्त है, जिसमे वह लिखित दया याचिका
दायर कर सकता है। इसके पश्चात महाराष्ट्र के गवर्नर और राष्ट्रपति कोर्ट पर
यह बात निर्भर करेगी कि आगे की कार्यवाई क्या हो। महाराष्ट्र में पुणे के
यरवदा जेल में सुधाकर जोशी को अगस्त 1995 में एक हत्या के मामले में फांसी
की सजा दी गई थी। अगर दलीलों को ठुकरा दिया जाता है तो यह सजा दी जा सकती
है।
यरवदा जेल के महानिरीक्षक मीरन बोरवनकर के
मुताबिक़ फांसी देने वाले जल्लाद को किसी भी अपराधी को फांसी देने के लिए
अलग से कोई भी रकम नहीं दी जाती है। 96 देशों सहित भारत में भी मौत की सजा
1894 में बनाये गए क़ानून के द्वारा निष्पादित की जाती है। भारतीय संविधान
के कारागार अधिनियम में समय समय पर बदलाव और संशोधन किए गए हैं जिसके
द्वारा राज्य को इस बात का अधिकार है कि वह फांसी की सजा को किस तरीके से
अंजाम दे। महाराष्ट्र ने इस नियम के तहत 1971 से अब तक कई कारागार कैदियों
को मौत की सजा सुनाई।
कसाब पर रोज 3.5 लाख रुपये खर्च
नई
दिल्ली: मुंबई हमलों करवाने वाला पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब पर सरकार
रोज करीब 3.5 लाख रुपये खर्च कर रही है। इसमें कसाब का खाना, सुरक्षा, वकील
का खर्च शामिल हैं। इस हिसाब से पिछले 46 महीनों में कसाब पर कुल खर्च 48
करोड़ रुपये के आसपास बैठता है। हालांकि, कुछ सरकारी अधिकारियों की बातों
पर भरोसा करें तो यह रकम 65 करोड़ रुपये के आसपास है। गौरतलब है कि बुधवार
को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस चंद्रमौलि कुमार प्रसाद
की बेंच ने कसाब की मौत की सजा को सही ठहराया था।
कॉन्स्टेबल तुकाराम ओंबले की बहादुरी के
चलते 27 नवंबर 2008 को एक मात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकवादी अजमल कसाब देश पर
एक आर्थिक बोझ की तरह है। कसाब के लजीज भोजन के साथ उसकी सुरक्षा और
मुकदमे की सुनवाई पर होने वाला खर्च रोज लाखों में बैठ रहा है। ऑर्थर रोड
जेल में कसाब को जिस बैरक में रखा गया है उसके बुलेटप्रूफ पर 5.25 करोड़
रुपये खर्च किए गए हैं। 1.5 करोड़ रुपये तो सिर्फ कसाब की गाडिय़ों पर खर्च
हुए हैं। 11 करोड़ रुपये आईटीबीपी की सुरक्षा पर खर्च है।
इसके अलावा और भी कई तरह के खर्च कसाब के
ऊपर हैं। इन खर्चों को मिला दें तो यह रोज का करीब 3.5 लाख रुपये है। 46
महीनों में यह रकम करीब 48 करोड़ रुपये के आसपास बैठता है। गौरतलब है कि
पिछले साल विधानसभा में महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल ने करीब 20
करोड़ रुपये खर्च होने की बात कही थी। हालांकि, सरकारी सूत्रों पर भरोसा
किया जाए तो कसाब पर कुल खर्च 65 करोड़ रुपये बैठता है। सरकार की धीमी
न्यायिक प्रक्रिया को देखकर ऐसा लग रहा है कि कसाब के फांसी पर चढऩे तक यह
100 करोड़ को पार कर सकता है।
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