आस्था V/s विज्ञान: हमारे वजूद के पीछे 'गॉड पार्टिकल' या भगवान की इच्छा?
Source: dainikbhaskar.com | Last Updated 13:09(05/07/12)
सर्न के वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति का रहस्य सुलझाने के मकसद से 2008 से प्रयोग कर रहे थे। बुधवार को उन्होंने इसके नतीजे का ऐलान किया। वैज्ञानिकों की टीम के प्रवक्ता जोए इनकाडेला ने कहा कि 'हम हिग्स बोसॉन के करीब पहुंच गए हैं। हालांकि नया कण हिग्स बोसॉनही है, यह कहने में वक्त लगेगा।' लेकिन प्रयोग के दौरान जो कण मिले, वे उस जैसे ही हैं।
113 देशों के 10 हजार वैज्ञानिकों की 4 साल की मेहनत के बाद अब इन सवालों को सुलझाने में मदद मिलेगी कि 14 अरब साल पहले ब्रह्मांड कैसे बना? धरती कैसे अस्तित्व में आई? इंसान और छोटी से छोटी चीजें कैसे जन्मी? आकाशगंगा, तारे और ग्रह कैसे बने? वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड की पांच फीसदी जानकारी है। शेष हिस्सा डार्क मैटर कहा जाता है। इसके रहस्य से अब पर्दा उठेगा।
धर्मशास्त्रों की राय
लेकिन धर्मशास्त्रों की मान्यताओं में यकीन रखने वालों से विज्ञानियों का टकराव भी बढ़ सकता है। हालांकि इस टकराव का एक कमजोर पहलू यह माना जा सकता है कि धर्मशास्त्रों में सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ी कोई एक मान्यता नहीं है। आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने ट्वीट किया है, 'सबसे सूक्ष्म से भी छोटा और सबसे विशाल से भी बड़ा, हर चीज ब्रह्म से बना है। यही परिभाषा गॉर्ड पार्टिकल की व्याख्या करती है।'
शिवपुराण के अनुसार इस सृष्टि का निर्माण भगवान शिव की इच्छा मात्र से हुआ है। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम शिवलिंग की उत्त्पत्ति हुई और इसी के बाद भगवान विष्णु प्रकट हुए। भगवान विष्णु की नाभी से ब्रह्म देव उत्पन्न हुए। विष्णु और ब्रह्माजी के प्रकट होने के बाद शिवजी के निर्देशानुसार ब्रह्म देव द्वारा इस सृष्टि को रचा गया है। इसका संचालन भगवान विष्णु द्वारा किया जा रहा है।
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार सर्वप्रथम विराट पुरुष की उत्पत्ति बताई गई है। आदिपुरुष या विराट पुरुष द्वारा पिण्ड और ब्रह्माण्ड की रचना की गई। वह ब्रह्माण्डरूप अंडा एक हजार वर्षों तक निर्जीव अवस्था में जल में पड़ा रहा। फिर भगवान ने उसे जीवित कर दिया। उस अंडे को फोड़कर उसमें से विराट पुरुष निकला। विराट पुरुष जिसके आंखें, हाथ, पैर, मुख और सिर हजार की संख्या में हैं। इसी विराट पुरुष द्वारा इस सृष्टि की रचना की गई है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार मनु और शतरूपा द्वारा ही मानव प्रजाति की उत्पत्ति हुई हैं। मनु और शतरूपा को सृष्टि के सबसे पहले स्त्री-पुरुष माना जाता है। इनके द्वारा ही समस्त मानवों का जन्म माना जाता है।
ऐसी ही मान्यता ईसाई धर्ममें भी प्रचलित है। उनके अनुसार आदम और हौव्वा को सबसे पहले स्त्री-पुरुष माना जाता है। सृष्टि की रचना के साथ ही इसके विनाश की भी मान्यताएं प्रचलित हैं। श्रीमदभागवत के अनुसार ऐसा माना जाता है कि दो कल्पों के बाद सृष्टि का अंत होता है। दो कल्पों का अर्थ है कि दो हजार चर्तुयुग। चतुर्युग, यानि सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग। इन चारों युगों का क्रम अनवरत चलता है और जब एक हजार बार इन चार युगों का क्रम हो जाता है तब एक कल्प होता है। इसी प्रकार दूसरा कल्प पूरा होने पर प्रलय आता है यानि सृष्टि का विनाश हो जाता है। इसके बाद पुन: सृष्टि की उत्पत्ति होती है और यही क्रम अनवरत जारी रहता है।
आपकी बात
क्या वैज्ञानिक एक बार फिर आस्था को चुनौती दे रहे हैं? क्या विज्ञान ब्रह्मांड के अस्तित्व की खोज करने में सफल हो जाएगा? ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों के दावों पर कितना यकीन किया जा सकता है? देखा जाए तो प्रकृति के आगे इंसान या कहें कि विज्ञान अब भी बहुत बौना है क्योंकि तमाम तकनीक के बावजूद वह अभी तक कोई ऐसा यंत्र नहीं बना पाया है जिससे पता चल सके कि अमुक जगह पर अमुक वक्त पर भूकंप आएगा? वैज्ञानिकों की ताजा खोज के मद्देनजर ब्रह्मांड की उत्पत्ति या अंत को लेकर आप क्या सोचते हैं, अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें।
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