मंगल पर पहुंचा क्यूरियोसिटी, नासा में जश्न का माहौल
न्यूयार्क
First Published:06-08-12 11:29 AM
Last Updated:06-08-12 12:19 PM
मंगल पर जीवन की तलाश में निकला अमेरिकी स्पेस रिसर्च एजेंसी नासा का
क्यूरियोसिटी रोवर भारतीय समय के मुताबिक ठीक 11 बजकर 1 मिनट पर मंगल की
सतह पर उतर चुका है।
नासा के लिए आज का दिन बेहद अहम है। आज का दिन नासा की मेहनत और 130 अरब रुपयों का भविष्य तय करेगा।
26 नवंबर 2011 को अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने फ्लोरिडा के केप
कैनावेरल से मंगल ग्रह के लिए अपना सबसे महंगा, सबसे महत्वकांक्षी और सबसे
बड़ा रोबोटिक रोवर ‘क्यूरियोसिटी’ लॉन्च किया।
253 दिन तक बिना रुके, बिना थके करीब 21 हजार किलोमीटर प्रति घंटे यानी
आवाज की रफ्तार से भी 17 गुना ज्यादा स्पीड से ये अंतरिक्ष में उड़ता रहा।
इन 253 दिनों में क्यूरियोसिटी रोवर ने करीब 5.7 करोड़ किलोमीटर का सफर तय
किया है। क्यूरियोसिटी की लैंडिंग को लेकर नासा समेत पूरी दुनिया में
जबरदस्त क्यूरियोसिटी यानि कौतूहल था।
सबके दिल में सवाल था कि क्या यह सही सलामत मंगल ग्रह पर लैंड कर सकेगा?
क्या होगा नासा की 10 साल की मेहनत का? क्या होगा इस मिशन पर लगे 130 अरब
रुपए का?
नासा में भी धड़कनें बढ़ी हुई हैं। टीम क्यूरियोसिटी अपने यान पर लगातार
नजर जमाए है। इस मिशन की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि क्यूरियोसिटी
रोवर अपने तय वक्त पर, तय स्पीड से, तय कोण में अपनी तय जगह पर मंगल की सतह
पर उतरे। इससे मिले आंकड़ों से तय होगा कि क्या मंगल पर जीवन की कोई
संभावना है या नहीं।
6 पहियों वाले क्यूरियोसिटी का वजन 900 किलो है। ऊंचाई 3 मीटर, स्पीड औसतन
30 मीटर प्रति घंटा। यह रोवर मंगल पर 2 साल काम करेगा। इस दौरान कम से कम
19 किलोमीटर की दूरी तय करेगा।
यह रोवर नासा ने 26 नवंबर 2011 को केप कैनेवरल स्पेस स्टेशन से एटलस-5 नामक
रॉकेट से लॉन्च किया था। रोवर मंगल पर रेडियोआइसोटॉप जेनरेटर से मिलने
वाली बिजली से चलेगा। ईंधन के रूप में प्लूटोनियम-238 का इस्तेमाल होगा।
इस मिशन में मंगल के मौसम, वातावरण और भूगोल की जांच होगी। इनसे मिले आंकड़ों से तय होगा कि क्या मंगल पर जीवन की कोई संभावना है।
नासा साइंटिस्टों और इंजिनियरों में कई भारतीय मूल के हैं। यही नहीं, रोवर
में लगाए गए एक माइक्रोचिप पर 59,041 भारतीयों के नाम भी दर्ज हैं।
असल में नासा ने पूरी दुनिया से लोगों को मिशन में हिस्सेदारी करने के लिए
इनवाइट किया था। इस पर अमेरिका से सबसे ज्यादा 5,29,386, फिर ब्रिटेन से
77,329 नाम आए। तीसरे नंबर पर भारतीय रहे।
जून व जुलाई 2003 को नासा ने स्पिरिट और फिर ऑपरट्यूनिटी नामक मार्स रोवरों
से लदे दो रॉकेटों को मंगल की ओर रवाना किया था। स्पिरिट ने शुरुआती एक
वर्ष में ही गुसेव क्रेटर की पड़ताल की।
इस क्रेटर के बारे में माना जाता था कि यह गड्ढा वहां पानी की झील रहने के
कारण बना होगा, पर स्पिरिट ने जो आंकड़े भेजे हैं, उनसे वहां पानी की
मौजूदगी का कोई प्रमाण नहीं होने की पुष्टि हुई। ऑपरट्यूनिटी को चट्टानों
में हेमेटाइट नामक खनिज का पता चला, जिसे पानी की उपस्थिति का अच्छा प्रमाण
माना जाता है।
पर स्पिरिट और ऑपरट्यूनिटी, दोनों मिलकर साबित नहीं कर पाए कि मंगल कभी
आबाद था या वहां पानी वास्तव में था। 1960 से अब तक इंटरनैशनल लेवल पर 39
मार्स मिशन हो चुके हैं। इनमें से 17 को आंशिक या पूर्ण सफलता मिली है।
कामयाब होने वाल मिशनों में ज्यादातर अमेरिकी मिशन रहे हैं।
भारत सरकार की मंजूरी के बाद स्पेस एजेंसी इसरो नवंबर 2013 में एक मार्स
ऑर्बिटर लॉन्च करेगा। 450 करोड़ रुपये के इस मिशन में एक सैटलाइट मंगल की
सतह के 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर काटता रहेगा। इस तरह यह भविष्य के मंगल
अभियानों के लिए जरूरी आंकड़े, नक्शे और जानकारियां जुटाएगा।
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