कोयला एंट्री टैक्स : आखिर सरकार के हाथ क्यों बंधे हैं? |
बिहार के बंटवारे के बाद झारखंड स्थित टाटा स्टील लिमिटेड के अधीनस्थ इकाइयों द्वारा बिहार के विभिन्न फर्मों को कोयला भेजा जाता है. यह कोयला कारखाने वाले और ईंट बनाने वाले ज़्यादातर मंगाते हैं. इसमें काला खेल यह है कि बिहार सरकार को कोयले पर प्रवेश कर मात्रा के आधार पर नहीं मिल रहा है. यानी जितना कोयला आयात होता है उस अनुपात में राजस्व नहीं मिल रहा है जिससे सरकार को भारी आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ रहा है. कोयले का आयात चूंकि बिहार के ज़्यादातर फर्ज़ी फर्मों को किया जा रहा है इसलिए सरकार प्रवेश कर से वंचित हो रही है.वाणिज्य कर आयुक्त सह सचिव राजित पुनहानी ने छह सितंबर 2011 को फिर टाटा स्टील को पत्र लिखा. पत्र में यह अनुरोध किया गया था कि बिहार में निबंधित व्यवसायी जिनका नाम आप को भेजा गया है उन्हीं ईंट भट्ठादारों को कोयला आपूर्ति करने की कृपा करेंगे. जिनका नाम सूची में नहीं है वे वाणिज्य कर विभाग में निबंधित नहीं है और उनके द्वारा विभाग को कोई वैट की प्राप्ति नहीं होती है. टाटा स्टील से अनुरोध किया गया था कि कृपया राज्यहित में इसका अनुपालन सुनिश्चित करने की कृपा की जाए, लेकिन सरकार के इस पत्र का भी कोई खास असर नहीं हुआ. इस मामले में मोतिहारी के वकील हरिशंकर झा ने भारत सरकार के वित्त सचिव, कोयला सचिव और कोल कंट्रोलर का ध्यान भी आकृष्ट कराया था. अपने पत्र में उन्होंने कहा कि बिहार सरकार के अनुरोध के ठीक विपरीत टाटा स्टील के इकाइयों द्वारा मनमाने ढंग से बिहार के फर्ज़ी क्रेताओं के नाम टैलिंग्स/मिडलिंग का विक्रय होने से बिहार सरकार को भारी राजस्व का ऩुकसान हो रहा है. उन्होंने पत्र में आरोप लगाया कि बिहार को हो रहे इस नुक़सान के खेल में टाटा स्टील लिमिटेड कोयला मंत्रालय और कोल कंटोलर की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता है. अन्यथा एक निजी कंपनी द्वारा कैसे राज्य सरकार के निर्देशों की अवेहलना की जा सकती है. मौजूदा वाणिज्य कर अपर आयुक्त प्रह्लाद बैठा कहते हैं कि प्रवेश कर 2005 से लागू हुआ है. चेक पोस्टों पर इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है कि कोई भी ग़लत काम न हो. मामला अदालत में है और हम इसका इंतज़ार कर रहे हैं. सरकार भले ही इंतज़ार कर रही है, लेकिन कोयले पर प्रवेश कर न मिल पाने के कारण बिहार को जो नुक़सान हो रहा है इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा इस सवाल का जवाब देने को कोई तैयार नहीं है.
कोयले में मिलावट का गोरखधंधा
काले कोयले की नगरी कही जाने वाली धनबाद में कोल माफिया का हमेशा दबदबा रहा है. कोयले की काली कमाई को लेकर खूनी संघर्ष के रुप में इस शहर की पहचान सालों तक रही है, लेकिन अब स्थिति में बदलाव आ गया है. बदलते परिवेश में बीसीसीएल में कार्यरत कुछ अधिकारी ही देश को ऊर्जा प्रदान करने वाली इस कंपनी को चुना लगाने का काम कर रहे हैं. इसका खामियाजा बीसीसीएल को भुगतना पड़ रहा है. बीसीसीएल के पास बहुत से ऐसे खदान हैं जिनमें अच्छे किस्म का कोयला मिलता है. इस कोयले को पावर प्लांट के पास भेजा जाता है जिससे बिजली और इस्पात बनाने का काम होता है, लेकिन इन दिनों कोयले में पत्थर मिलाने का धंधा बड़ी तेजी से चल रहा है. अधिकारी प्रमोशन पाने के लिए कोयले का ओवर रिपोर्टिंग का खेल खेलते हैं और यही कारण है कि पावर प्लांटों को भेजे जाने वाले कोयले में पत्थर की गिरावट का खेल जारी है. ऐसा नहीं है कि इसके लिए कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी ने कई मामले पकड़े हैं जिसमें बीसीसीएल के अधिकारियों द्वारा कोयले में पत्थर मिलाने और ओवर रिपोर्टिंग के लिए कार्रवाई हुई और कई मामले भी दर्ज हैं. कुछ मामला न्यायालय में लंबित है और कुछ को सज़ा मिल चुकी है, लेकिन इस गोरखधंधे का खामियाजा पावर प्लांट और बीसीसीएल को भुगतना पड़ रहा है. इस मिलावटी कोयले के कारण एक तऱफ जहां ऊर्जा पावर प्लांट में उत्पादन में कमी हो रही है वहीं पावर प्लांट से होने वाली परेशानी से पिछले दिनों पीएमओ ने सीधे तौर पर हस्तक्षेप किया था. यह मामला कई दिनों से सुर्खियों में रहा. अगर बीसीसीएल से सिजुआ क्षेत्र संख्या 5 की बात करें तो लगभग 96 करोड़, 65 लाख, 20 हज़ार रुपये का नुक़सान उठाना पड़ा है. कोयले की मिलावट के कारण पावर प्लांटों से बीसीसीएल को अलग से भुगतान करना पड़ रहा है. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि ऐसी ही कहानी बीसीसीएल के 12 एरिया और दो ब्लॉक की है, आंकड़ों का यह भी कहना है कि बीसीसीएल का नमक खाने वाले अधिकारी ही दीमक की तरह इसे खा रहे हैं.
- नौशाद अहमद
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