हिंदुस्तान
पर हुकूमत करने वाले अनेकानेक राजा-महाराजाओं और नवाबों को लोग आज सैकड़ों
वर्षों बाद भी भूल नहीं पाए हैं. यह राजा-रजवाड़े भले ही आलीशान महलों में
रहते थे लेकिन इनका दिल जनता में बसता था. इनकी इसी खूबी ने इनका नाम
इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा दिया. महान मुग़ल सम्राट
अकबर ने तो अपनी सल्तनत के लोगों की खुशहाली के लिए दीन-ए-इलाही पंथ चलाया
था. इस पंथ में अकबर ने हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी धर्मों के अच्छे-अच्छे
विचारों को शामिल किया था. अवध के नबाब आसिफुद्दौला के बारे में तो यहां
तक कहा जाता था जिसको न दे मौला, उसको दे आसिफुद्दौला. अकबर और आसिफुद्दौला
जैसे तमाम बादशाहों ने जनता की भलाई के लिए समय-समय पर अपनी बड़ी-बड़ी
जमीनें और अन्य संपत्तियां आम मुसलमानों के हित के लिए व़क्फ (दान) की और
इन्हीं व़क्फ की संपत्तियों ने समय के साथ धर्म की आड़ लेकर कई लोगों के
मालामाल होने का रास्ता तैयार कर दिया. कभी गरीबों के लिए व़क्फ की गई
सम्पत्तियों पर आम ग़रीब मुसलमानों के लिए मदरसे मस्जिदें, कब्रिस्तान आदि
बने दिखाई देते थे. व़क्फ की इन संपत्तियों पर सभी मुसलमानों का बराबर का
हक होता था. लेकिन आज व़क्फ सम्पत्तियों को कुछ ताकतवर लोगों ने अपनी जागीर
बना लिया है. व़क्फ की संपत्तियों पर बड़े-बड़े मकान और अस्पताल बनकर खड़े हो
गए हैं.
पिछले दिनों व़क्फ संपत्तियों पर कब्जे का विवाद इतना बढ़ा कि लखनऊ के
प्रसिद्ध इमामबाड़े के बाहर शिया व़क्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी और शिया
धर्म गुरू मौलाना कल्बे जव्वाद के समर्थकों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई.
इसमें कई वाहन क्षतिग्रस्त हो गए. कई लोगों को चोटें भी आई. मामले ने इतना
तूल पकड़ा कि उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल बोर्ड ऑफ व़क्फ के चेयरमैन सैयद
वसीम रिज़वी को इस्तीफा देना पड़ गया. रिज़वी ने शिया धर्म गुरू मौलाना कल्बे
जव्वाद पर कबे्र्रं बेचने सहित कई गंभीर आरोप लगाए थे. धर्म गुरू कल्बे
जव्वाद अपने ऊपर लगे आरोपों से इतने दुखी हुए कि उन्होंने सरकार पर दबाव
बनाने के लिए उसी दिन (28 मई) अपने समर्थकों के साथ मुख्यमंत्री आवास की
तरफ कूच करने की घोषणा कर दी. उसी दिन विधानसभा का सत्र शुरू होना था. इस
खबर से प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए और उच्च स्तर पर चहलकदमी तेज़ हो गई. अंत
में जव्वाद साहब की दबाव की रणनीति कामयाब हो गई और रिज़वी को अपना पद छोड़ना
पड़ गया. इसके बाद कल्बे जव्वाद ने मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच का
कार्यक्रम स्थगित कर दिया.
इस मामले की शुरूआत कुछ दिनों पहले हुई थी जब व़क्फ बोर्ड के अध्यक्ष
वसीम रिज़वी ने मौलाना जव्वाद के ख़िलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश राज्य सरकार
से की थी. जिसके बाद मौलाना और बोर्ड के बीच का टकराव खुलकर सामने आ गया.
लेकिन इस जंग में बलि का बकरा वसीम रिज़वी ही बन गए.
उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल बोर्ड के अध्यक्ष रिज़वी ने मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव को अपना इस्तीफा सौंप दिया लेकिन इस्तीफे के साथ वह कई सवाल
उठाने से नहीं चूके. मुख्यमंत्री को भेजे गए अपने त्यागपत्र में रिज़वी ने
आरोप लगाया है कि लखनऊ में कब्रों की खरीद फरोख्त हो रही है. सबसे महंगी
कबे्रं इमामबाड़ा गुफरान मॉब में मौलाना कल्बे जव्वाद साहब बेच रहे हैं.
रिज़वी का कहना है कि उनके पास इस संबंध में कई शिकायतें आई थीं. जांच में
मामला सही पाया गया. इसके बाद व़क्फ बोर्ड ने जव्वाद साहब से स्पष्टीकरण
मांगा और सरकार से पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की थी.
उनका आरोप है कि जव्वाद साहब विपक्ष से मिलकर समाजवादी सरकार की छवि को
धूमिल कर रहे हैं. वह विपक्षी दलों के साथ सांठ-गांठ करके शहर की शांति भंग
करने पर अमादा हैं. रिजवी ने शिया धर्म गुरू के ख़िलाफ मोर्चा खोले हुए थे
तो जव्वाद साहब भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे. जव्वाद सभी मोर्चो पर रिज़वी
के ऊपर तब तक दबाव बनाते रहे जब तक रिज़वी से अखिलेश सरकार ने इस्तीफा नहीं
ले लिया. जव्वाद समर्थकों से जब इस संबंध में पूछा गया तो उनका कहना था कि
वसीम रिज़वी खुद जमीन हड़पने के खेल में लगे हुए हैं. वह ग़रीबों की करोड़ों
रूपये की ज़मीन डरा-धमकाकर हथिया चुके हैं.
बहरहाल,इस लड़ाई से इतना साफ हो गया कि धर्म के ठेकेदारों के लिए आज अपना
मकसद सर्वोपरि हो गया है. उन्होंने इस्लाम की तामील को पूरी तरह भुला दिया
है. व़क्फ की संपत्तियों के इस्तेमाल के लिए किसी भी तरह किया गया पैसे का
लेनदेन नाजायज है. देश भर में फैली व़क्फ संपत्तियों की देखभाल का ज़िम्मा
सुन्नी व़क्फ बोर्ड और शिया व़क्फ बोर्ड के कंधों पर है. व़क्फ बोर्ड ने
व़क्फ की जमीनों की देखभाल के लिए अलग-अलग मुतवल्ली नियुक्त किये हैं.
व़क्फ बोर्ड ने धर्म के जिन रहनुमाओं के हाथों में व़क्फ की संपत्तियों की
देखभाल और गरीबों के हित में इनके उपयोग की जिम्मेदारी सौंपी थी आज वह इस
संपत्ति को अपनी मिल्कियत समझ कर उनका मनमाना उपयोग कर रहे हैं. इन लोगों
की मेहरबानी के कारण कब्रिस्तान में शवों को दफनाने के लिए मरने वाले के
परिजनों को हजारों रूपये देकर कब्र खरीदनी पड़ती है. कब्र खरीदने के लिए
लोगों को मजबूर किया जाता है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुस्लिम
कब्रिस्तानों में खुले आम कब्रों की खरीद फरोख्त हो रही है. लोगों को अपने
परिजनों की लाश दफनाने के लिए घर के जेवर बेचने पड़ रहे हैं. ऐसे तो लखनऊ और
उसके आसपास के शहरों मे हर कब्रिस्तान का यही हाल है. कहीं यह सब चोरीछुपे
हो रहा है तो कहीं खुलेआम. व़क्फ से जुड़े लोग नाजायज तरीके से लाशें
दफनाने के लिए गरीबों से धन उगाह रहे हैं.
यह मामला तब गंभीर गया जब इसमें शिया धर्मगुरू का नाम आया. शिया समुदाय
का नेतृत्व करने वाले मौलाना कल्बे जव्वाद पर आरोप लगा है कि इमामबाड़ा,
तरकारी मंडी चौकी की गुफरान मॉब कब्रिस्तान में वह शवों को दफनाने की इजाजत
मरने वालों के परिजनों से पचास हजार रुपये लेने के बाद ही देते हैं. यह
मामला शिया वक्फ बोर्ड को लिखित शिकायत मिलने के बाद रोशनी में आया है.
शिकायत करने वालों ने आरोप लगाया है कि जब वह अपने परिजन की लाश लेकर
कब्रिस्तान पहुंचे तब वहां मौलाना की तरफ से नियुक्त मैनेजर ने उनसे पचास
हजार रूपये की मांग की और कहा कि यह मौलाना का हुक्म है कि जब तक पैसा अदा न
किया जाए लाश को नहीं दफनाने दिया जाए. इस तरह की कई शिकायतें जब शिया
व़क्फ बोर्ड के पास आयीं तो व़क्फ बोर्ड के चेयरमैन सैय्यद वसीम रिज़वी ने
इसकी जांच करवायी. व़क्फ बोर्ड द्वारा नियुक्त जांचकर्ता सैय्यद बाकर रजा
ने शिकायतकर्ताओं द्वारा दिये गये सबूतों के आधार पर जब जांच की तो तमाम
शिकायतें को सही पाया. उन्होंने बताया कि मौलाना कब्रों की खरीद फरोख्त के
कारोबार में लिप्त हैं. उन्होंने पिछले कई सालों में करोड़ों रुपये की कमाई
इस कारोबार से की है.
जव्वाद जैसी शख्सियत के ख़िलाफ जांच के संबंध में जब शिया व़क्फ बोर्ड के
अध्यक्ष से पूछा गया तो उनका कहना था कि क़ानून की नज़र में सब बराबर हैं.
किसी भी व्यक्ति को यह स्वतंत्रता नहीं है कि वह अपने पद और प्रभाव का
दुरुपयोग करते हुए क़ानून का उलंघन करे. शिया व़क्फ बोर्ड द्वारा करायी गई
जांच में गंभीर तथ्य सामने आये हैं. शिया व़क्फ बोर्ड ने अपनी जांच में
पाया है कि उत्तर प्रदेश में शिया कब्रिस्तानों में कब्रों की अवैध बिक्री
बरसों से हो रही है. शिया व़क्फ बोर्ड ने इस संबध में 20 मार्च 2012 को
बक़ायदा नोटिस जारी करके कब्रिस्तानों में कब्रों की बिक्री को अवैध घोषित
किया था. जिसके बाद कई कब्रिस्तानों में यह धंधा बंद हो गया है. लेकिन कुछ
जगहों पर कब्रों की बिक्री बदस्तूर जारी है.
शिकायतकर्ता सैय्यद अबाद मेंहदी कहते हैं मेरे सामने मेरी बहन की लाश
पड़ी थी. मैं उसकी लाश को दफनाने के लिए जगह मांग रहा था. जिस कब्रिस्तान को
गरीबों की लाश दफनाने के लिए व़क्फ किया गया है उसी कब्रिस्तान में मुझे
अपनी बहन की लाश दफनाने के लिए पचास हजार रूपये देने के लिए मजबूर किया
गया. मैंने किसी तरह उधार मांगकर रकम जुटायी ताकि मेरी बहन को दफनाया जा
सके. इसके बाद कब्रिस्तान के मैनेजर ने मुझे जो रसीद दी उस पर लिखा था कि
मैंने जो पचास हजार रूपये दिये हैं वह दान के रूप में दिये हैं. मेंहदी का
दर्द यहीं खत्म नहीं हुआ. वह कहते हैं कि कुछ महीने बाद ही मेरी दूसरी बहन
इंतकाल हो गया. हम फिर मैय्यत लेकर इमामबाड़ा गुफरान मॉब पहुंचे. हमसे फिर
वहां कब्र के लिए पचास हजार रूपये वसूले गए और रसीद दान दिये जाने की दी
गई. मैंने इस नाजायज काम की लिखित शिकायत शिया व़क्फ बोर्ड को सबूत के साथ
की.
कब्र बेचने के आरोपों को ग़लत साबित करने के लिए 26 मई को इमामबाड़ा
गुफरान मॉब के मैनेजर इजहार हुसैन नकवी ने प्रेस कॉफे्रंस की. मैनेजर का
कहना था कि उन्होंने कभी कोई कब्र नहीं बेची. इस पर वहां मौजूद और कब्र
खरीदने का दावा कर रहे पूर्व सैन्य अधिकारी एसए हुसैन उनसे भिड़ गए. सबूत के
तौर पर उन्होंने कब्र खरीदने की रसीद भी दिखाई. जिस पर तारीख 21 फरवरी
2012 दर्ज थी उस रसीद पर पचास हजार रुपये दान में दिए जाने की बात भी लिखी
थी. यह बात बढ़ते बढ़ते हाथापाई तक पहुंच गई. शिया व़क्फ बोर्ड में लिखित
शिकायत दर्ज कराने वाले एक और शख्स आबिद रजा कहते हैं कि मैं इस बात का
चश्मदीद गवाह हूं. अक्सर रात में कब्रिस्तान के मैनेजर (जो धर्मगुरू का
रिश्तेदार भी है) मजदूर बुलाकर पुरानी बगैर नाम की कब्रों की खुदाई करवाते
हैं. खुदाई में निकली हड्डियों को बोरे में भरवाकर पिछले गेट से ले जाते
हैं. इसके बाद ज़मीन को बराबर कर देते हैं. इन जगहों पर दोबारा कब्रें बना
दी जाती हैं.
पुराने लखनऊ के चौक स्थित कब्रिस्तान की सात हजार वर्ग फुट भूमि पर
नाजायज कब्जा करके कब्रों के ऊपर निजी अस्पताल खड़ा कर दिया गया है. इस
अस्पताल को कब्रों के ऊपर पिलर बनाकर खड़ा किया गया है. खम्भों को खड़ा करने
के लिए गड्ढे खोदने की वजह से कई कब्रें क्षतिग्रस्त हो गई हैं. कई कब्रों
के नामो निशान मिट गये हैं. कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जा कर बनाये गये इस
अस्पताल का उद्घाटन मौलाना कल्बे जव्वाद ने किया था. इसका सबूत आज भी
अस्पताल के दरवाजे पर चस्पा है. हैरानी की बात यह है कि जिस व़क्फ बोर्ड ने
एक प्रसिद्ध धर्मगुरू को इस कब्रिस्तान का मुतवल्ली बनाया. उन्होंने सामरा
अस्पताल के निर्माण और इसकी किरायेदारी के संबंध में कोई इजाजत शिया व़क्फ
बोर्ड से नहीं ली और अस्पताल का निर्माण होने दिया. कब्रिस्तान की जमीन
नाजायज तरीके से जाफरा साइंटिफिक एंड वेलफेयर के ट्रस्टी समर अब्बास को
लाखों रुपये की लीज पर दे दी गई. लीज अनुबंध के अनुसार सामरा अस्पताल का
किराया तीस हजार रूपये प्रतिमाह तय किया गया. अवैध तरीके से आने वाला यह
पैसा भी अब तक एक व्यक्ति विशेष की जेब में जा रहा है. वैसे सच्चाई यह है
कि भले ही कब्रों की बिक्री के नाम पर दोनों पक्ष एक-दूसरे को नीचा दिखाने
में लगे हों लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई यही है कि दोनों ही पक्ष यह जंग
अपनी साख बचाने के लिए लड़ रहे हैं. वैसे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा
सकता है कि कब्रों की खरीद-फरोख्त का धंधा दूसरे कर्बलाओं में भी चल रहा
है. इनमें लखनऊ के कर्बला मल्का जहां (ऐशबाग), कर्बला इमदाद हुसैन खॉ टिकैत
राय का तालाब और कर्बला इमामबाड़ा आगा बकर तालकटोरा मुख्य रूप से शामिल
हैं.
कल्बे जव्वाद ठाकरे बनना चाहते हैं-रिज़वी
शिया व़क्फ बोर्ड से इस्तीफा देने के बाद बोर्ड के कार्यवाहक अध्यक्ष
वसीम रिज़वी ने आरोप लगाया है कि मौलाना जव्वाद बाल ठाकरे बनना चाहते हैं.
जो भीड़ के बल पर कुछ भी करा लेने की क्षमता रखते हैं. मौलाना जव्वाद भी
सरकार को ठाकरे की कार्यशैली में दबाव में लेते हैं. रिजवी ने आरोप लगाया
कि मौलाना ने अपने भाषण में भारतीय संविधान को यह कहकर अपमानित किया है कि
वो भारतीय व़क्फ अधिनियम को नहीं मानते हैं क्योंकि उसे गैर शरई हुकूमतों
ने बनाया है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.