28.5.12

ka amire khan na dosaro ke shotah ka thak lia hi mager ka ho khud kar sata hi

 

 

स्वस्थ समाज का सपना

Updated on: Mon, 28 May 2012 10:11 AM (IST)
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स्वस्थ समाज का सपना
मैं सपने देखना पसंद करता हूं और यह उन कारणों में से एक है कि मैं सत्यमेव जयते शो कर पाया हूं। मेरा सपना है कि एक दिन हम ऐसे देश में रह रहे होंगे जहां चीजें बदली हुई होंगी। मेरा स्वप्न है कि एक दिन अमीर और गरीब एक ही तरह स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाएंगे। बहुत से लोगों को यह दृष्टिकोण पूरी तरह अव्यावहारिक लग सकता है, किंतु यह सपना देखने लायक है। और ऐसा कोई कारण नहीं है कि यह पूरा न हो सके। कोई अमीर हो या गरीब, किसी प्रिय को खोने का दुख, दोनों को बराबर होता है। अगर कोई बच्चा ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसका इलाज संभव है, किंतु हम पैसे के अभाव में उसका इलाज न करा पाने के कारण उसे अपनी आंखों के सामने मरता हुए देखने को मजबूर हैं तो इससे अधिक त्रासद कुछ नहीं हो सकता। सकल घरेलू उत्पाद का डेढ़ फीसदी से भी कम सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बरसों से काम करने वाले और हमारे शो में आए एक मेहमान डॉ. गुलाटी का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में जीडीपी का कम से कम छह फीसदी खर्च होना चाहिए। मैं न तो अर्थशास्त्री हूं और न ही डॉक्टर, फिर भी मेरी नजर में सही आंकड़ा आठ से दस प्रतिशत होना चाहिए। अगर समाज ही स्वस्थ नहीं होगा तो अधिक जीडीपी का क्या फायदा। आर्थिक समृद्धि तभी हासिल हो सकती है, जब हम स्वस्थ होंगे। स्वास्थ्य राच्य का विषय है और प्रत्येक राच्य केवल अप्रत्यक्ष कर ही इकट्ठा करता है। हमारे पैसे से अधिक अस्पताल क्यों नहीं खोले जाते और इससे भी महत्वपूर्ण यह कि इस पैसे को सार्वजनिक मेडिकल कॉलेज बनाने में खर्च क्यों नहीं किया जाता? देश को बड़ी संख्या में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की आवश्यकता है, किंतु केंद्र और राच्य सरकारें इसकी इच्छुक दिखाई नहीं देतीं। इसलिए छात्रों को मजबूरी में निजी कॉलेजों का रुख करना पड़ रहा है, जिनमें से अधिकांश 50 से 60 लाख रुपये प्रति छात्र अनधिकृत रूप से चंदे के रूप में वसूल कर रहे हैं। अधिकांश निजी मेडिकल कॉलेज व्यापार में बदल गए हैं। इनमें से बहुतों के पास ढंग के अस्पताल भी नहीं हैं, जो मेडिकल कॉलेज के लिए अनिवार्य शर्त है। मुझे हैरत होती है कि इन कॉलेजों से निकलने वाले डॉक्टर कितने समर्थ होंगे। हमें केंद्र व राच्य सरकारों पर दबाव डालना चाहिए कि वे अधिक से अधिक सरकारी अस्पताल खोलें जिनके साथ मेडिकल कॉलेज भी जुड़ा हो। निजी अस्पतालों से गुरेज नहीं है, किंतु हमें सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और इसे इतना मजबूत बनाना चाहिए कि निजी अस्पतालों को उनसे होड़ लेने में कड़ी मेहनत करनी पड़े और इस प्रकार हमें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। जब एक छात्र एमबीबीएस की परीक्षा में बैठता है और उससे डायबिटीज रोग में रोगी को दी जाने वाली दवा का नाम पूछा जाता है तो वह लिखता है-ग्लाइमपीराइड। यह एक साल्ट है, जो डायबिटीज दवा में अकसर दिया जाता है। जब यही छात्र एक डॉक्टर बन जाता है और डायबिटीज का कोई मरीज उसके पास आता है तो वह किसी ब्रांडेड कंपनी की दवा का नाम लिखता है। तो क्या यह डॉक्टर गलत दवा लिख रहा है। नहीं। यह ग्लाइमपेराइड साल्ट से बनी ब्रांडेड दवा होती है। नाम के अलावा इन दोनों दवाओं में क्या अंतर है? ब्रांडेड कंपनी की दस गोलियों की स्ट्रिप की कीमत 125 रुपये है, जबकि साल्ट ग्लाइमपेराइड से बनी 10 गोलियों की कीमत महज दो रुपये है। दोनों की गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं है। ब्रांड नेम के कारण हमें दस गोलियों के 123 रुपये अधिक देने पड़ते हैं। कुछ और उदाहरण देखिए-जुकाम एक आम बीमारी है। इसके उपचार के लिए बनी दवा में आम तौर पर सेटरीजाइन साल्ट का इस्तेमाल होता है। इस दवा के निर्माण, पैकेजिंग, ढुलाई आदि के बाद अच्छा-खासा मुनाफा कमाते हुए भी इसकी दस गोलियों की कीमत है एक रुपया बीस पैसा, किंतु इसी साल्ट की ब्रांडेड कंपनी की दवा की दस गोलियों की कीमत है 35 रुपये। मलेरिया के रोगी को लगने वाले तीन इंजेक्शनों की कीमत है 25 रुपये। हालांकि इस साल्ट से बने ब्रांडेड इंजेक्शन की कीमत है 300 से 400 रुपये। इसी प्रकार, हैजे की दवा के साल्ट का नाम डोमपेरिडॉन। और इसकी दस गोलियों की कीमत है महज सवा रुपया, जबकि इस साल्ट से बनी ब्रांडेड दवा 33 रुपये में बेची जाती है। इन हालात में गरीब और कुछ हद तक मध्यम वर्ग के लोग भी इन दवाओं को कैसे खरीद सकते हैं? इसका जवाब है जेनरिक दवाएं। इस संबंध में राजस्थान सरकार के प्रयास सराहनीय हैं। वह पूरे प्रदेश में जेनरिक दवाओं को बेचने के लिए दुकानों की स्थापना कर रही है। भारत में मोटे तौर पर करीब 25 फीसदी लोग आर्थिक तंगी के कारण अपनी बीमारियों का इलाज नहीं करा पाते। जरा सोचिए, जेनरिक दवाएं हर भारतीय के लिए कितना बड़ा बदलाव ला सकती हैं। अगर राजस्थान सरकार यह काम कर सकती है तो अन्य राच्यों की सरकारें क्यों नहीं कर सकतीं? आमिर खान: जय हिंद! सत्यमेव जयते!

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