30.5.12

शुक्राणु आपस में भेद और स्पर्धा भी करते हैं

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sperm-raceएक नई शोध से प्रजनन क्रिया के एक और नए पक्ष का खुलासा हुआ है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय की पोस्टडोक्टरल रीसर्चर हैदी फिशर के अभ्यास के अनुसार जीवसृष्टि के कुछ प्रकारों में वीर्य के शुक्राणु द्वारा आपस में स्पर्धा किए जाने की बात साबित हुई है.

फिशर ने पता लगाया है कि प्रोमिशियस [बहु पत्निक – एक से अधिक मादाएँ रखने वाले] प्रकार के जीवों [विशेष रूप से चूहों] में यह प्रक्रिया आम तौर पर पाई गई है. इस जाति के चूहों में विभिन्न नरों के शुक्राणु एक-दूसरे से भेद कर पाने में सक्षम होते हैं और यही नहीं अंडकोष तक पहले पहुँचने के लिए वे आपस में स्पर्धा भी करते हैं.

इस प्रकार के चूहों [डीयर माउस] की मादाएँ एक साथ कई नर चूहों के साथ सम्भोग करती है. सम्भोग की प्रक्रिया के दौरान और उसके बाद एक नर के शुक्राणु आपस में मिलकर समूह बना लेते हैं और किसी अन्य नर के शुक्राणुओं के समूह से पहले अंडकोष तक पहुँचने का प्रयास करने लगते हैं. वीर्य के विभिन्न समूहों के बीच एक तरह की स्पर्धा शुरू हो जाती है.

शुक्राणु द्वारा आपस में भेद करने की तकनीक इतनी विकसित है कि दो भाईयों के शुक्राणु भी आपस में भेद कर लेते हैं स्पर्धा शुरू हो जाती है.

लेकिन ऐसा केवल प्रोमिशियस प्रकार के जीवों में ही पाया जाता है. मोनोगेमस [एक पत्निक – केवल एक ही पत्नी रखने वाले] प्रकार के जीवों के शुक्राणु आपस में भेद नहीं करते हैं और ना ही एक दूसरे से स्पर्धा करते हैं. लेकिन प्रोमेशियस प्रकार के जीवों में यह प्रक्रिया आम तौर पर पाई गई है.

इस बारे में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के नेचुरल साइंस के प्रोफेसर होपी होस्ट्रा का मानना है कि – शुक्राणु के द्वारा आपस में भेद करना और स्पर्धा करने की प्रक्रिया हमारे अनुमान से कहीं अधिक जटील और विकसित है. और चूँकि 95% जीवसृष्टि प्रोमिशियस प्रकार की है इसलिए यह मान सकते हैं कि ना केवल चूहों बल्कि कई अन्य जीवों में भी यह प्रक्रिया पाई जाती होगी.

लेकिन यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि इन जीवों के शुक्राणु आपस मे भेद कैसे कर लेते हैं?

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