भारत में ई-कचरे का खतरा
आज भारत 100000 टन रेफ्रिजरेटर का कचरा, 275000 टन टीवी का कचरा, 56300 टन कम्यूटर का कचरा, 4700 टन प्रिंटर का कचरा और 1700 टन मोबाइल फोन का कचरा प्रति वर्ष तैयार होता है. यदि इसमें बाहरी देशों से मंगवाए जाने वाले कानूनी और गैरकानूनी कचरे को भी जोड़ लिया जाए तो स्थिति और भी विकट स्वरूप ले लेती है.
मेल टुडे की एक खबर के अनुसार, सन 2020 तक मात्र कम्प्यूटरों का कचरा ही 500% की दर से बढेगा. टीवी और रेफ्रिजरेटर का कचरा भी दुगनी या तिगुनी रफ्तार से बढेगा और मोबाइल फोन का कचरा करीब 18 गुना अधिक हो जाएगा.
भारत में कचरे के रिसाइकलिंग की कोई सटीक प्रणाली लागू नहीं की गई है. अधिकतर ई-कचरा अनियोजित तरीके से होता है और यह कार्य स्थानीय कबाड़ी करते हैं. रिसाइकलिंग के लिए बड़े और सुनियोजित कारखाने स्थापित नहीं किए गए हैं. स्थानीय कबाड़ी ई-कचरे में से बहुमूल्य धातु प्राप्त कर करते हैं. लेकिन इसकी दर काफी कम होती है और अधिकतर कचरा युहीं छोड़ दिया जाता है.
मोबाइल फोन और कम्प्यूटर में 3% सोना और चाँदी, 13% पेलेडियम और 15% कोबाल्ट होता है. आधुनिक उपकरणों में 60 से अधिक मूल्यवान या अनावश्यक धातुएँ होती है. इन उपकरणों की यदि आधुनिक प्रणाली से रिसाइकलिंग की जाए तो ये धातुएँ फिर से प्राप्त हो जाती है और साथ ही साथ पर्यावरण का संतुलन भी बना रहता है.
लेकिन भारत, ब्राज़ील, मैक्सिको जैसे देशों में इस ओर अभी तक उतना ध्यान नहीं दिया गया है जितनी जरूरत है.
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