वृन्दावन में होता है विधवाओं की लाशों से खिलवाड़
राज्य के अधिकारी बिना अदालत के निर्देश के तो काम करते नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
जीवन
के अंतिम पहर में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए देशभर से आकर वृंदावन
में बसी विधवाओं की लाशों की दुर्गति पर सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को
कड़ी नाराजगी जताई है। उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लेते हुए अदालत ने
कहा कि राज्य के अधिकारी तो अदालत के निर्देश के बिना कुछ करना ही नहीं चाहते।
राष्ट्रीय न्यायिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Service Authority) की
जनहित याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने केंद्र व प्रदेश सरकार को अगले बुधवार
तक जवाब दाखिल करने को कहा है।
एनएलएसए ने अपनी जिला शाखा डीएलएसए (Delhi
Legal Service Authority) की ओर से इस मसले पर एक सर्वेक्षण किए जाने के
बाद शीर्षस्थ अदालत का दरवाजा खटखटाया। साथ ही डीएलएसए की रिपोर्ट के आधार
पर ईसीपीएफ एनजीओ के अधिवक्ता रविंदर बाना ने एक आवेदन दायर किया।
रिपोर्ट के अनुसार सरकारी
रैनबसेरों में रहने वाली विधवाओं और वृद्ध महिलाओं की लाश को काटकर बोरे
में भरकर फेंक दिया जाता है। जबकि यह महिलाएं जीवित रहते सफाई कर्मियों के
पास अपने दाह संस्कार का खर्च जमा कर चुकी होती हैं। इस रिपोर्ट में कई उदाहरण भी पेश किए गए हैं जो रोंगटे खड़े करने वाले हैं।
जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष एनएलएसए की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा कि जिंदा रहते ही नहीं देशभर से आकर वृंदावन में रहने वाली विधवाओं की लाश को भी उचित दाह संस्कार नहीं मिल पाता।
इस पर पीठ ने पूछा कि क्या सिर्फ वृंदावन में ही ऐसी स्थिति हैं या देश
में अन्य जगहों में भी विधवाओं की यही दुर्दशा है। जवाब में अधिवक्ता ने
कहा कि देश में कई धार्मिक स्थल हैं, जहां पर विधवाएं दुख झेल रही हैं। बनारस, पुरी सहित कई ऐसे शहर हैं, जहां पर विधवाएं पूरा दिन महज एक पहर के भोजन के लिए भजन गाती हैं।
अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि सरकार की ओर से 400 रुपये प्रति माह विधवा पेंशन की व्यवस्था है। लेकिन यह पेंशन भ्रष्टाचार की वजह से पूरी पहुंच ही नहीं पाती। पीठ ने कहा कि समुचित व्यवस्था के लिए सही आंकड़े चाहिए होंगे। जवाब में अधिवक्ता ने कहा कि यह आंकड़े कुछ एनजीओ ने इकट्ठा किए हैं।
पीठ ने कहा कि इस पर सरकारी आंकड़े एकत्र
किए जाने की जरूरत है और केंद्र को नोटिस जारी करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार
के अधिवक्ता से कहा कि राज्य के अधिकारी बिना अदालत के निर्देश के तो काम करते नहीं है। ऐसे में राज्य की ओर से भी अगली सुनवाई तक जवाब दाखिल कर दिया जाना चाहिए।
सर्वोच्च अदालत ने नवंबर, 2008 में इस
मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग को व्यापक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था
और बाद में केंद्र व राज्य सरकार को विधवाओं को दुर्दशा से उबारने के लिए
कदम उठाने को कहा था। हाल ही में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने
इस मामले में शीर्षस्थ अदालत से कहा था कि वृंदावन की विधवाओं के लिए
स्वाधर योजना के तहत यूपी महिला कल्याण निगम को 14 करोड़ 25 लाख की धनराशि
जारी कर दी गई है। इस राशि से इन महिलाओं के लिए शरणगृह बनाए जाएंगे व अन्य
जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी।
स्रोत : अमर उजाला
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