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वसंत में चिकनी चमेली




मनु पंवार
Story Update : Wednesday, February 08, 2012    9:25 PM
अहा! वसंत आ गया है। लेकिन इस बार वसंत चुनावी सीजन में आया है। आखिर यह ऋतुओं का राजा जो ठहरा। उसको भला यह बताने की जरूरत थोड़े ही है कि वह आ रहा है। इस बार दिल्ली में बैठे चुनाव आयोग ने भी गजब का मुहूर्त निकाला। इसका असर यह होगा कि फागुन में रंग बरसने से पहले ही कई चेहरे लाल-पीले हो जाएंगे। चुनाव के बाद कई दलों का रंग उतर जाएगा, तो कइयों पर सत्ता का रंग चढ़ेगा।

वसंत ऋतु में मन बौरा जाता है। इसीलिए इस बार वसंत में चिकनी चमेली छिपके अकेली पव्वा चढ़ाके आई है। पिछले वसंत में मुन्नी बदनाम हो गई थी। यह बात अलग है कि उसके बाद शीला की जवानी से लेकर जलेबी बाई की मादक अदाओं पर पगलाए लोगों ने आहें भरीं। मुन्नी को बाद में किसी ने नहीं पूछा। लेकिन शीला की जवानी ने गलत ऋतु में उफान मारा। वह वसंत में उफनती, तो मुन्नी की तरह बदनाम हो जाती।

लेकिन सवाल यह है कि चिकनी चमेली को इस वसंत में छिपकर पव्वा चढ़ाकर आने की जरूरत आखिर क्या थी? सरकार ने फिलहाल शराबबंदी जैसी किसी योजना का ऐलान तो किया नहीं है। शायद चिकनी चमेली को चुनाव आचार संहिता का डर सता रहा होगा। यदि पव्वा ले जाते हुए पकड़ी जाती, तो खबर बन जाती। सुना है कि इस बार पुलिस और आबकारी वाले सभी पर निगाह रखे हुए हैं। इसलिए हरेक के दिल में धुकधुकी है।

बहरहाल वसंत आ गया है। शीतकाल में जो प्रेम कहानियां सर्दी के मारे रजाइयों और कंबलों के भीतर सिकुड़ी हुई थीं, वे अब अंगड़ाइयां लेने लगी हैं। मौसम बदल रहा है। बाजारों में गरम कपड़ों पर भारी छूट की सेल लगी है। पहाड़ों और गांव-देहातों में सरसों के खिले फूल वसंत की दस्तक देते होंगे। महानगरों में तो इस सीजन में दुकानों और शोरूमों में लटक रही सेल की तख्तियों से ही वसंत की आहट महसूस हो जाती है।

प्रेम की ऋतु भी दरअसल वसंत पर काफी हद तक डिपेंड है। नए जमाने की प्रेम कथाएं इस सीजन में ज्यादा बौरा जाती हैं। दिलों में रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं। संत वैलेंटाइन की चॉइस के भी क्या कहने। उन्होंने भी इसी सीजन में प्रेम के इजहार का दिन मुकर्रर कर दिया। नवोदित प्रेमियों के दिलों में गुदगुदी हो रही है। लेकिन नेताओं के दिलों में धुकधुकी हो रही है। यह उनकी परीक्षा का समय जो है। वसंत में बौराए वोटरों ने न जाने ईवीएम का कौन-सा बटन दबा दिया हो। वोटरों के लिए भले ही यह बौराने का मौसम हो, लेकिन नेता तो लुट ही जाएंगे।

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