2.6.12

‘आयोडीन युक्त’ नमक- सच्चाई क्या है?

'आयोडीन युक्त' नमकजिनका बचपन कस्बों या बड़े गाँवों में बीता है, उन्हें याद होगा कि पहले किराने की दूकानों में नमक की बोरियों को दरवाजे के बाहर ही रखा जाता था- रात में जब दूकान के दरवाजे बन्द होते थे, तब ये बोरियाँ बाहर ही रखी रहती थीं। यह सबसे सस्ता भी हुआ करता था।
बाद के दिनों में बड़े एवं मँझोले व्यवसायिक घरानों की (गिद्ध)दृष्टि इस चीज पर पड़ी होगी- अरे, इसे तो गरीब-से-गरीब परिवार भी खरीदता है, क्यों न इस व्यवसाय से कमाई की जाय। और एक षड्यंत्र के तहत “आयोडीन युक्त” नमक का हौव्वा खड़ा किया गया तथा साधारण नमक की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाते हुए इसे बाजार से हटा ही दिया गया। सरकार ने व्यवसायिक घरानों का भरपूर साथ दिया- इसका अफसोस नहीं है (सरकार का तो यह काम ही है); मगर हमारे वैज्ञानिक समुदाय ने भी इस षड्यंत्र में व्यवसायिक घरानों का साथ दिया- यह अफसोस की बात है।
मान लिया कि “आयोडीन युक्त” नमक जरूरी है, मगर इस व्यवसाय को कुटीर एवं लघु उद्योगों की ही श्रेणी में क्यों नहीं रखा गया? क्यों “टाटा” को भी नमक बेचने की अनुमति दी गयी, जो “ट्रक” भी बेचता है? नमक में “आयोडीन” मिलाकर उसे प्लास्टिक की थैलियों में पैक करने में क्या बहुत ही हाई-फाई तकनीक की जरुरत होती है?
रेडियो पर दिनभर सरकारी विज्ञापन (पी.एस.ए.) आता है कि खाने में आयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल करने से बच्चा शारीरिक व मानसिक रुप से तन्दुरुस्त पैदा होता है। और लोग इसे किस रुप में देखते हैं, पता नहीं; मगर मैं इसे इस रुप में देखता हूँ कि सरकार गरीब जनता को मूर्ख बना रही है- वह कहती है, बस “आयोडीन युक्त” नमक का इस्तेमाल करो, बच्चा स्वस्थ एवं मेधावी बनेगा- “पौष्टिक आहार” की कोई जरुरत ही नहीं है! इस विज्ञापन का उपयोग सरकार गरीबों पर “अफीम” के रुप में कर रही है। अब सरकार गरीब गर्भवती महिलाओं को दूध-फल तो दे नहीं सकती, सो उन्हें बहला रही है। जबकि यह तथ्य है कि गर्भावस्था में चूँकि बच्चा माँ के शरीर से ही अपना भोजन ग्रहण करता है, इसलिए माँ के लिए “पौष्टिक आहार” जरूरी है।
विज्ञापन यह बताना भी नहीं भूलता कि “सूई की नोंक बराबर” आयोडीन की हमें आवश्यकता होती है। क्या आयोडीन की इतनी नगण्य मात्रा “साधारण नमक” में नहीं होती? फिर प्राचीनकाल से लेकर बीसवीं सदी तक इस देश में स्वस्थ एवं मेधावी लोग कैसे पैदा हो गये? कौन जानता है कि “आयोडीन युक्त” नमक की थैलियों में भरे गये नमक में “अलग से” “आयोडीन” मिलाया ही जाता है? क्या इन थैलियों में “साधारण नमक” ही नहीं होता? दिल्ली-मुम्बई में जो “मिनरल वाटर” बिकता है, क्या उनमें सादा (या फिल्टर किया हुआ) पानी नहीं होता? कौन मिलाता है उनमें “मिनरल”?
कोई कुछ भी कहे, मेरा दिल तो यही कहता है कि “आयोडीन युक्त” नमक की “अनिवार्यता” की बात एक “हौव्वा” है, एक षड्यंत्र है; कुछ व्यवसायिक घराने इसकी आड़ में जबर्दस्त कमाई कर रहे हैं; सरकार कुछ हिस्सा लेकर उनके लिए प्रचार कर रही है; और जाने-अनजाने में हमारा वैज्ञानिक समुदाय भी इस षड्यंत्र में शामिल है!
(कभी-न-कभी इस षड्यंत्र का पर्दाफाश होगा- यह भी मैं जानता हूँ!)

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