21.7.12

खुश होने का मौसम

Updated on: Tue, 17 Jul 2012 02:36 PM (IST)
थोड़ी देर से सक्रिय हुए मानसून की बारिश भले ही अभी कमजोर है, किन्तु इसने किसानों की उम्मीद जगा दी है और इधर तमाम नागरिक समस्याओं के बावजूद शहरी जिंदगी को खुश होने का एक बहाना मिल गया है। बारिश की उम्मीद में 6,00000 हेक्टेयर में धान की रोपनी हुई है। इसका रकबा बढ़ रहा है। मक्का की बुआई भी लक्ष्य से ज्यादा हुई है। रविवार की वर्षा से खरीफ की फसल को लेकर किसानों की आखों में चमक है। आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया है कि कटिहार,अररिया, किशनगंज,गया व मधुबनी जिला की स्थिति सामान्य है। औसत की श्रेणी में बाका,भागलपुर,लखीसराय व मुंगेर जिले हैं, जबकि गोपालगंज, सारण व औरंगाबाद में सुधार हो रहा है। खेतों में हरियाली आ रही है। बारिश से पहले की तपिश का दौर कुछ लंबा चला था। पानी के लिए व्याकुलता से भरे उसी माहौल में पर्यावरण और वृक्ष-विहीन विकास पर जो बहस चली थी, उसका असर है कि पौधरोपण का महत्व अब थोड़ी गंभीरता से समझा जा रहा है। सरकार ने शहरी वृक्षारोपण योजना को तरजीह दी। चौड़ी सड़कों और फ्लाइओवरों के लिए शहरी क्षेत्र के पेड़ों की बलि दी गई। अब इसकी भरपाई का एक प्रयास है शहरी वृक्षारोपण योजना। इसमें आम लोगों को भी अपनी हिस्सेदारी निभानी चाहिए।
दरख्त चाहे सरकारी आरे से कटे या किसी निजी इमारत-अपार्टमेंट बनाने वाले की कुल्हाड़ी से, नुकसान शहरी पर्यावरण का ही हुआ है। सोमवार को प्रारंभ हुई इस योजना के तहत राजधानी में 7300 पौधे लगाये जाएंगे। जिन्हें डेढ़-दो दशक पहले राजधानी के वीरचंद पटेल पथ से गुजरने का मौका मिला हो और जिनकी स्मृति अच्छी हो, वे बता सकते हैं कि उस समय तक यह रास्ता कितना हरा-भरा था। घने पेड़ों से इसकी पहचान जुड़ी थी, लेकिन अब इसके विकसित रूप में सड़क फोरलेन है, रंगे-पुते डिवाइडर हैं, हाइमास्ट लाइट की श्रृंखला है, हाल में लगे झाड़ीदार पौधों की एक दुबली-सी कतार है, लेकिन दशकों में पनपे कई विशाल वृक्ष गायब हैं या उनके ठूंठ शेष हैं। ऊंचे घने पेड़ गिनती के रह गए हैं। शहरी पौधरोपण योजना की शुरुआत इसी वीरचंद पटेल पथ से हुई। यह मौसम हरियाली की क्षतिपूर्ति के चौतरफा प्रयास का है, उत्सव का भी। शहर में लोगों ने रविवार को बारिश में घूमने का आनंद उठाया। दिनभर फुहारें पड़ती रहीं, इसके बाद भी घूमने के लिए संजय गाधी जैविक उद्यान पहुंचे। इनमें से कुछ लोग कहीं पौधे भी लगा आते, तो कितना अच्छा होता?

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