सरदार पटेल की मेहनत बेकार जायेगी
भारत की स्वतंत्रता के पहले भारत में लगभग 565 छोटी-छोटी रियासतें/सूबे अस्तित्व में थे, जिसके अपने फायदे कम नुकसान ज्यादा थे। आजादी के समय भी छोटी-छोटी रियासतों एवं सूबों ने अंग्रेज के खिलाफ अपने-अपने तरह से खिलाफत की तो कुछ ने साथ दिया। स्वतंत्रता के पश्चात् सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने फौलादी इरादों से 1948 में भारत में निजाम की रियासत का अंत कर दिया। इस वक्त राज्यों की कुल संख्या 14 थी। सन् 1950 में भाषाई आधार पर राज्यों का गठन किया गया। कन्नड्, मराठी एवं मलयाली के विरोध के फलस्वरूप सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ। सभी राज्य प्राकृतिक तौर पर अपनी-अपनी तरह की संपदा से सम्पन्न थे, उसके बावजूद भी राजनीति के चलते समय-समय पर नदी, जल को लेकर कर्नाटक एवं तमिलनाडु में टकराहट होती रही है, फिर भी समस्या काबू में थी। लेकिन, जब से राजनीति में राजनेताओं के स्वार्थों के टकराहट एवं महत्वाकांक्षा बढ़ी है तब से नए एवं छोटे राज्यों के गठन का तर्क देने में जुट गए और बड़े राज्यों के नुकसान अपने हितों को साधते हुए गिनाने लगे। मसलन क्षेत्र बड़ा होने से शासन को दूर-दराज के क्षेत्रों की प्रगति पर अच्छे से ध्यान देना संभव नहीं होता है, इसके लिए बड़े-बड़े राज्यों को छोटे-छोटे राज्यों में बांटा जाए। इस बात को लेकर राजनेताओं ने जनता की बलि चढाकर अलग-अलग आंदोलन चलाए और अंत में बिल्ली के भाग से छींका टूटा अर्थात् सन् 2000 में म.प्र., उ.प्र. एवं बिहार को तोड क्रमशः 1 नवंबर को छत्तीसगढ़,9 नवंबर को उत्तरांचल एवं 15 नवंबर को झारखण्ड राज्यों का निर्माण कराया। हमारे तथाकथित नेताओं का स्वार्थ यहीं तक नहीं रूका उनकी महत्वाकांक्षाओं को भी पर लगे और अब आंध्र में तेलंगाना की मांग हठयोग पर कुत्सित प्रयास किया गया। इसी से उत्साहित नेता बिरादरी के अन्य महत्वाकांक्षी उप्र. मप्र., बिहार, महाराष्ट्र में पुनः पुनर्गठन के तहत् छोटे-छोटे राज्यों के बनाने की मांग और बलवती होती जा रही है। इससे कहीं न कहीं हम पटेल के सपनों को न केवल तोड़ रहे है बल्कि अपने स्वार्थ के लिए विभाजन कर ताने-बाने को भी बिखरा रहे हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब हमारे नेता जाति, धर्म, भाषा (पहले ही बन चुके हैं) आधारित राज्यों की कहीं मांग न करने लग जाएं और इस बाबत् वे ढेरों तर्क इसके संबंध में उनकी भलाई एवं रहनुमा बनने के लिए दें। वक्त आ गया है कि हमें राज्यों के पुनः विघटन को हर कीमत पर फौलादी इरादों के साथ फिर से किसी को पटेल बन रोकना होगा।
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