गॉड पार्टिकल मिला, उठेगा दुनिया की उत्पत्ति से पर्दा
Jul 03, 2012 at 11:22am IST | Updated Jul 03, 2012 at 02:00pm IST
नई दिल्ली। द यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन
ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च यानी सीईआरएन ने गॉड पार्टिकल का पता लगाने का दावा
किया है। सर्न ने कहा है कि उसने पांच वैज्ञानकों को इसी सिलसिले में
जिनेवा में बुलावा भेजा है। इससे इस बात की अटकलें लगने लगीं हैं कि गॉड
पार्टिकल खोजा जा चुका है। स्विट्जरलैंड में होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस
में जिन लोगों को आमंत्रित किया गया है उनमें एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के
फिजिक्स प्रोफेसर पीटर हिग्स भी शामिल हैं, इनके नाम पर ही इस पार्टिकल का
नाम हिग्स बोसॉन रखा गया है।
महामशीन
में महाटक्कर के साथ ही एक नए वैज्ञानिक युग की शुरुआत हो गई। महामशीन के
अंदर जैसे ही दो दिशाओं से प्रोटॉन की टक्कर हुई तो दुनिया भर के हजारों
वैज्ञानिकों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पिछले दो साल से जो हासिल करने का
इंतजार कर रहे थे वो उन्हें मिल गया। उन्हें मिल गया ईश्वर का कण यानि गॉड
पार्टिकल। वो सूक्ष्म अंश बताएगा कि ब्रह्मांड की उत्पति कैसे हुई? ये धरती
कैसे अस्तित्व में आई और यहां रहने वाले इंसान पेड़ पौधे और छोटी से छोटी
चीज का जन्म कैसे हुआ? प्रयोग के कंट्रोल रूम यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर
न्यूक्लियर रिसर्च यानी CERN के लिए ये एक ऐतिहासिक लम्हा था।
आखिर
वैज्ञानिकों को ये ईश्वरीय कण मिला कैसे? इस महामशीन में प्रकाश की रफ्तार
से प्रोटॉन की टक्कर करवाई गई? ये टक्कर पिछली बार से तीन गुना ज्यादा तेज
थी। 7 करोड़ खरब इलेक्ट्रॉनिक वोल्ट के टकराव से शुरू हुई। इस दौरान
प्रोटॉन ने 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में एक सेकेंड में 11 हजार से भी ज्यादा
चक्कर काटे और उसके बाद जो टक्कर हुई तब जाकर वैज्ञानिकों को गॉड पार्टिकल
हासिल हुआ।
अब
वैज्ञानिक इस राज पर से पर्दा उठा पाएंगे कि 14 खरब साल पहले ब्रह्मांड
कैसे बना? उस पहले पल के बाद क्या हुआ? आकाश गंगा, तारे और ग्रह कैसे बने?
हम जिस पदार्थ से बने हैं, क्या उसके सिवाय भी ब्रह्मांड में कुछ और है?
हम
पूरे ब्राह्मंड में मौजूद 4 फीसदी चीजों के बारे में ही जानते हैं। और जो
कुछ भी जानकारी हमारे पास है वो भी आधी अधूरी सी। आखिर एक चीटीं से लेकर
ग्रह तक का निर्माण कैसे हुआ? वो कौन सी चीज थी जिसने पदार्थ को रुप दिया?
क्या है डार्क मैडर और डार्क एनर्जी?
यही
नहीं ऐसे पदार्थ जिनसे 96 फीसदी ब्राह्मांड का निर्माण हुआ है। जिनके बारे
में हम नहीं जानते। जैसे गुरुत्वाकर्षण कैसे काम करता है? ब्राह्मांड कैसे
फैलता है? क्या है वो डार्क मैटर या डार्क एनर्जी जिसे हम नहीं जानते हैं?
उसका जवाब इस महाप्रयोग से मिल सकता है। इसके अलावा वैज्ञानिकों को
डायमेंशन यानी आयाम से जुड़े सवालों के जवाब भी खोजने हैं।
जेनेवा
और फ्रांस की सीमा पर जिस जगह ये प्रयोगशाला लगाई गई है वहां पिछले दो साल
से यही चर्चा चल रही थी कि ये प्रयोग कामयाब होगा भी या नहीं लेकिन अब
मिले गॉड पार्टिकल से उनकी उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं।
मानव
जाति के इतिहास में ऐसा वैज्ञानिक प्रयोग पहली बार हुआ है। इस प्रयोग से
तुरंत किसी नतीजे पर वैज्ञानिक नहीं पहुंचना चाहते। महाप्रयोग से हासिल
होने वाले आंकड़ों के अध्ययन और जांच पड़ताल में डेढ़ से दो साल तक का वक्त
लग सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर एलएचसी यानी महामशीन है
क्या?
ब्रह्मांड
के सभी अनुसलझे रहस्यों की एक ही कुंजी है। इसी कुंजी पर टिकी है दुनिया
भर के लाखों वैज्ञानिकों की नजर। इस कुंजी का नाम है लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर
यानी एलएचसी। इसको बनाने में 14 साल लगे हैं। इसमें उपकरणों, सुपर
कंप्यूटरों और तारों का जाल बिछा हुआ है। इस मशीन के अंदर ही वैज्ञानिक
कणों की टक्कर कराते हैं। मशीन के अंदर ये कण तकरीबन 60 करोड़ बार एक दूसरे
से टकराएंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी ही टक्कर ब्रह्मांड के
निर्माण के वक्त हुई थी। ये टक्कर प्रकाश की रफ्तार से होती है।
लगातार
टक्करों से छोटे-छोटे विस्फोट होते हैं और फिर ये विस्फोट महा विस्फोट में
बदल जाते हैं। ये सबकुछ होता है सिर्फ सेकेंड के सौवें हिस्से में। ये
मशीन काम करती है 27 किलोमीटर लंबी गोलाकार सुरंग में जो कि दुनिया के
बेहतरीन 15 हजार वैज्ञानिकों की अत्याधुनिक प्रयोगशाला है। दुनिया के 13
देशों के वैज्ञानिक इस रिसर्च में जुड़े हैं।
10
सितंबर 2008 को इस प्रयोग की शुरुआत हुई थी। तब से लेकर अब तक कई
मुश्किलें आई, कई तकनीकी रुकावटें आईं लेकिन वैज्ञानिकों का हौसला नहीं
टूटा, वो प्रयोग में जुटे रहे, उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य जो खोलना
है। और आज वो उस मुकाम पर पहुंच गए हैं जहां से वो दुनिया के सबसे बड़े
रहस्य से पर्दा हटा सकते हैं।
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