20.8.12

कौन हैं निर्मल बाबा

-विजय पाठक-
सफरनामा
- मेदिनीनगर के चैनपुर स्थित कंकारी में ईंट भट्ठा शुरू किया. पर व्यवसाय नहीं चला
- गढ़वा में कपड़ा का बिजनेस किया. पर इसमें भी नाकाम रहे
- बहरागोड़ा इलाके में माइनिंग का ठेका भी लिया
रांची : बाबा जी, मुझे गाड़ी दिला दीजिए.. बाबा जी मैंने जो विश मांगी है, वह भी पूरी कर दीजिए.. बाबा जी मेरा वर्क टार्गेट पूरा करने का आशीर्वाद दें.. बाबा जी मेरी परीक्षा चल रही है, अच्छे मार्क्स दिला दें.. मुझे अच्छा घर दिला दें.. अच्छी नौकरी दिला दें.. रितू से शादी करा दें.. देश के 36 चैनलों पर सिर्फ एक व्यक्ति से यह इच्छा पूरी करने को कहा जा रहा है. और जिस व्यक्ति से यह सब कहा जा रहा है, वह हैं निर्मल बाबा.
निर्मलजीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा के इंटरनेट पर तीस लाख से भी अधिक लिंक्स हैं, पर उनका कहीं कोई विवरण उपलब्ध नहीं है. प्रभात खबर ने निर्मल बाबा के बारे में कई जानकारियां हासिल की, पर निर्मलजीत से निर्मल बाबा कैसे बने, यह आज भी रहस्य है.
जानिये बाबा को
निर्मल बाबा दो भाई हैं. बड़े भाई मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं. निर्मल बाबा छोटे हैं. पटियाला के सामना गांव के रहनेवाले. 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का परिवार भारत आ गया था. बाबा शादी-शुदा हैं. एक पुत्र और एक पुत्री हैं उनकी.
मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी हुई. चतरा के सांसद और झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के छोटे साले हैं ये. बकौल श्री नामधारी, 1964 में जब उनकी शादी हुई, तो निर्मल 13-14 वर्ष के थे.
1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये और 81-82 तक वह यहां रहे. रांची में भी उनका मकान था. पर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगे के बाद उन्होंने रांची का मकान बेच दिया और चले गये. रांची के पिस्का मोड़ स्थित पेट्रोल पंप के पास उनका मकान था.
झारखंड से रिश्ता
निर्मल बाबा का झारखंड से पुराना रिश्ता रहा है. खास कर पलामू प्रमंडल से. 1981-82 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) में रह कर व्यवसाय करते थे. चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था.
उन्हें जाननेवाले कहते हैं : निर्मल का व्यवसाय ठीक नहीं चलता था. तब उनके ससुरालवाले मेदिनीनगर में ही रहते थे. हालांकि अभी उनकी ससुराल का कोई भी सदस्य मेदिनीनगर में नहीं रहता. उनके (निर्मल बाबा के) साले गुरमीत सिंह अरोड़ा उर्फ बबलू का लाईम स्टोन और ट्रांसपोर्ट का कारोबार हुआ करता था.
बबलू के मित्र सुमन जी कहते हैं : चूंकि बबलू से मित्रता थी, इसलिए निर्मल जी को जानने का मौका मिला था. वह व्यवसाय कर रहे थे. कुछ दिनों तक गढ़वा में रह कर भी उन्होंने व्यवसाय किया था. वहां कपड़ा का बिजनेस किया. पर उसमें भी नाकाम रहे. बहरागोड़ा इलाके में कुछ दिनों तक माइनिंग का ठेका भी लिया. कहते हैं..बहरागोड़ा में ही बाबा को आत्मज्ञान मिला.
इसके बाद से ही वह अध्यात्म की ओर मुड़ गये. वैसे मेदिनीनगर से जाने के बाद कम लोगों से ही उनकी मुलाकात हुई है. जब उनके बारे में लोगों ने जाना, तब यह चर्चा हो रही है. उन्हें जाननेवाले लोग कहते हैं कि यह चमत्कार कैसे हुआ, उनलोगों को कुछ भी पता नहीं.
- हां, निर्मल बाबा मेरे साले हैं : नामधारी
* निर्मल बाबा आपके रिश्तेदार हैं?
हां यह सही है, काफी लोग पूछते हैं, इसके बारे में. मैं स्पष्ट कर दूं कि वह मेरे साले हैं.
कुछ बतायें, उनके बारे में.
1964 में जब मेरी शादी हुई थी, तो उस वक्त निर्मल 13-14 साल के थे. पहले ही पिता की हत्या हो गयी थी. इसलिए उनकी मां (मेरी सास) ने कहा था कि इसे उधर ही ले जाकर कुछ व्यवसाय करायें. 1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये. 1981-82 तक रहे, उसके बाद रांची में 1984 तक रहे. उसी वर्ष रांची का मकान बेच कर दिल्ली लौट गये.
1998-99 में बहरागोड़ा में माइंस की ठेकेदारी ली थी. इसी क्रम में उन्हें कोई आत्मज्ञान प्राप्त हुआ. इसके बाद वह अध्यात्म की तरफ मुड़ गये. बस इतना ही जानता हूं,उनके बारे में. क्या आइडिया है, निर्मल बाबा के बारे में
देखिए उनके लाखों श्रद्धालु हैं. लोग उनमें आस्था रखते हैं. वैसे कई मुद्दों पर मेरी मतभिन्नता है उनके साथ.
* किस मुद्दे पर है मतभिन्नता
देखिए, मैं कहता हूं कि ईश्वरीय कृपा से यदि कोई शक्ति मिली है, तो उसका उपयोग जनकल्याण में होना चाहिए. बात अगर निर्मल बाबा की ही करें, तो आज जिस मुकाम पर वह हैं, वह अगर जंगल में भी रहें, तो श्रद्धालु पहुंचेंगे. तो फिर प्रचार क्यों? पैसा देकर ख्याति बटोर कर क्या करना है? जनकल्याण में अधिक लोगों का भला हो.
गुरुनानक के शब्दों में कहें, तो करामात, कहर का दूसरा नाम है. यह दुनिया दुखों का सागर है. यदि आज आप करामात दिखा रहे हैं. तो स्वाभाविक है कि लोगों की अपेक्षा बढ़ेगी, लंबे समय तक किसी की अपेक्षा के अनुरूप काम करना संभव नहीं है. मेरी नजर में यह काम शेर पर सवारी करने जैसा है.

एक एकाउंट में 109 करोड़

- कौन हैं निर्मल बाबा-3 -
निर्मल दरबार के नाम से यह राशि सिर्फ जनवरी से अप्रैल पहले हफ्ते तक जमा हुई
रांची : निर्मल जीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा की आय के दो स्त्रोत हैं. पहला निर्मल दरबार के समागम में भाग लेने के लिए निबंधन शुल्क और दूसरा दसवंद. निबंधन शुल्क दो हजार रुपये प्रति व्यक्ति (दो वर्ष से ऊपर के भक्त का भी पूरा पैसा) लगता है.
जबकि दसवंद (इसकी राशि पूर्णिमा के पहले जमा करनी होती है) है अपनी आय का 10वां हिस्सा. बाबा और निर्मल दरबार के तीन बैंकों में खाते हैं. ये खाते हैं पंजाब नेशनल बैंक, आइसीआइसीआइ और यश बैंक में.
प्रभात खबर को इन बैंकों में से दो प्रमुख बैंक के खाते का हिसाब हाथ लगा है. इस खाते को देखें, तो इसमें सिर्फ इस वर्ष (जनवरी 2012 से अप्रैल 2012 के पहले हफ्ते तक) 109 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. रोज लगभग 1.11 करोड़. न सिर्फ झारखंड-बिहार-बंगाल से, बल्कि पूरे देश में इस खाते में पैसे डाले गये हैं.
एक निजी बैंक के खाते में 12 अप्रैल 2012 को 14.93 करोड़ रुपये (कुल 14,93,50, 913.89 रुपये) जमा हुए हैं. वह भी सुबह 9.30 बजे से एक बजे तक. शाम तक इस खाते में करीब 16 करोड़ जमा किये गये. इस बैंक खाते का पता है निर्मल दरबार, ई 66, हंसराज गुप्ता मार्ग, ग्रेटर कैलाश, पार्ट वन, दिल्ली 110048.
25 करोड़ फिक्स्ड डिपोजिट
एक प्रमुख बैंक में बाबा के नाम 25 करोड़ रुपये का फिक्स्ड डिपोजिटभी है. इन खातों में से किसी नीलम कपूर के नाम से ड्राफ्ट बनवाये गये हैं. इसके अलावा कुछ दूसरी कंपनियों के नाम से भी ड्राफ्ट बनाये गये हैं. जानकारी के मुताबिक निर्मल बाबा खुद दो तरह के खातों का संचालन करते हैं.
एक बैंकखाता अपने नाम (निर्मलजीत सिंह नरूला) और दूसरा खाता निर्मल दरबार के नाम से हैं. निर्मल दरबार के खातों में भक्तों द्वारा रुपया जमा कराये जाने के बाद बाबा उसे अपने खाते में ट्रांसफर कर देते हैं.
सुषमा नरूला नोमिनी हैं
खातो में सुषमा नरूला का नाम नोमिनी के रूप में दर्ज है. वह निर्मल बाबा की पत्नी हैं. निर्मल दरबार के खाते में जमा कराये गये 109 करोड़ रुपये में से 14.87 रुपये के ड्राफ्ट बनवाये गये. यह ड्राफ्ट डीएलएफ-जीके रेजीडेंसी के नाम से था. डीएलएफ-जीके रेजीडेंसी गुड़गांव में स्थित है और यहां के मकान काफी महंगे बिकते हैं.
बाबा ने अपने इसी बैंक में जमा रुपयों में से मार्च के प्रथम सप्ताह में 53 करोड़ रुपये एक निजी बैंक में ट्रांसफर कर दिये. मार्च में ही नीलम कपूर के नाम से 1.60 करोड़ रुपये ट्रांसफर किये गये. बाबा के खाते से अगस्त 2011 में कंपिटेंट होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम 17.89 करोड़ रुपये का ड्राफ्ट बनाया गया. इसके अलावा एस सालू कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के नाम भी 80 लाख रुपये ट्रांसफर किये गये.
एक दूसरे बैंक में हर दिन एक करोड़
एक दूसरे प्रमुख निजी बैंक में 12 अप्रैल की शाम तक 16 करोड़ रुपये जमा कराये गये. इस बैंक में देश भर में औसतन रोज सात सौ इंट्री होती है और 80 फीसदी से ज्यादा राशि नकद जमा की जाती है. इस खाते से पिछले चार दिनों से न तो किसी राशि की निकासी हुई है और न ही दूसरे खाते में ट्रांसफर.
जमशेदपुर से गये 3.89 करोड़
निर्मल बाबा के एक प्रमुख बैंक के एकाउंट नंबर पर जमशेदपुर से एक साल में गये हैं 3.89 करोड़. हर दिन 30 से 40 लोग उनके एकाउंट में रुपये डालने के लिए आते हैं. कोई एक हजार रुपये डालता है, तो कोई 10 हजार. तो कोई पचास हजार रुपये तक डाल चुका है. बैंक ड्राफ्ट के जरिये भी लोग अपना दसवंद सीधे निर्मल बाबा को भेज रहे हैं.
बाबा का खर्च कितना
निर्मल बाबा के समागम पर मामूली ही खर्च होते हैं. समागम काफी कम देर के लिए होता है. इस कारण इनडोर हाल या स्टेडियम के लिए काफी कम पैसे देने पड़ते हैं. सिर्फ आडियो-विजुअल और सुरक्षा पर ही राशि खर्च होती है. न्यूज चैनलों पर विज्ञापन का निर्मल बाबा का खर्च कुछ अधिक है.
यह राशि चैनल की हैसियत के हिसाब से तय होती है. यह राशि 25 हजार से 5.5 लाख रुपये प्रति एपिसोड तक होती है. बाबा के चैनलों पर जितने भी कार्यक्रमहोते हैं, पेड होते हैं. यानी निर्मल बाबा इसके लिए चैनलों को पैसे देते हैं.
बाबा के कैसे-कैसे भक्त
समागम में भाग लेने के लिए सिर्फ आम लोग नहीं जाते, बड़े-बड़े अधिकारी, राजनेता, साफ्टवेयर इंजीनियर भी वहां पहुंचते हैं. एक समागम में आयकर विभाग के एक अधिकारी से बाबा ने अजीब सवाल किये. उनसे पूछा : आपने भुट्टा कब खाया.
भक्त ने कहा, 10 दिन पहले. बाबा ने पूछा, भुट्टा बेचनेवाले से कुछ विवाद हुआ था क्या, उक्त अधिकारी ने कहा, नहीं. फिर कहा : बाबा मैं परेशान हूं, कोई कृपा नहीं हो रही है, तो बाबा ने कहा : कुछ भुट्टा लेकर गरीबों में बांट दो. तुम्हारे सारे काम बन जायेंगे.

भक्तों के पैसे से खरीदा 30 करोड़ का होटल

- कौन हैं निर्मल बाबा-5
रांची: निर्मल जीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा ने भक्तों के पैसे से नयी दिल्ली के गेट्रर कैलाश में 30 करोड़ का होटल खरीदा है. भक्तों से समागम और दशवंद के नाम पर लिये गये पैसे से इसकी डील की है. इस होटल का नाम है, निर्मल बुटिक और होटल. वर्तमान में इसका मार्केट वैल्यू करीब 35 करोड़ है. समाचार चैनल स्टार न्यूज से बातचीत में इस होटल के पूर्व मालिक अश्विनी कपूर ने बताया कि निर्मल बाबा होटलों की एक श्रृंखला शुरू करना चाहते थे. इसी क्रम में सितंबर 2011 के पहले सप्ताह में इस होटल की डील की. पूर्व में इसका नाम अक्षरा होटल था. अश्विनी कपूर कंपिटेंट होल्डिंग के प्रमुख हैं.
ब्रोकर ने करायी डील
समाचार चैनल के इस खुलासे के दौरान अश्विनी कपूर कहते हैं, होटल की डिलिंग के दौरान निर्मल बाबा ने मुझसे करीब पांच बार मुलाकात की थी. खुद की निगरानी में टेकओवर का काम निबटाया.
     
डिलिंग ब्रोकर के माध्यम से हुई थी. सारे भुगतान चेक से किये गये थे. निर्मल बाबा ने होटल के लिए निर्मल जीत सिंह नरूला के नाम के बैंक खाते (15460001 02129694) से भुगतान किया था. कुल तीन चेक दिये थे.      
पहली बार 11 लाख रुपये का चेक दिया था. दूसरी बार पांच करोड़ का. पेपर क्लीयर करते समय शेष राशि का भुगतान किया था. 5 अगस्त को पहली बार मिले अश्विनी कपूर बताते हैं, निर्मल बाबा के साथ डील सिर्फ होटल की नहीं हुई थी. उन्होंने होटल के सारे सामान भी खरीदे थे. पांच अगस्त को उन्होंने पहली बार मुझसे मुलाकात की. इसके महीने भर के अंदर सारी औपचारिकताएं पूरी कर उन्हें पेपर सौंप दिया गया था. मुझे भी भुगतान मिल गया था. बाबा ने मेरे कुछ स्टॉफ भी रख लिये थे.
स्टार न्यूज का खुलासा

* निर्मल बुटिक व होटल ग्रेटर कैलाश में है
* वर्तमान मार्केट वैल्यू करीब 35 करोड़
* तीन चेक से किया था भुगतान निर्मल जीत सिंह नरूला के खाते से जारी किये गये थे तीनों चेक
* होटलों की श्रृंखला खोलना चाहते थे
कड़ी सुरक्षा में रहते हैं बाबा
नयी दिल्ली: निर्मल बाबा के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित समागम में भाग लेनेवाली एक भक्त ने बताया कि बाबा सुरक्षाकर्मियों के साथ एक लंबी कार में आते हैं. पीछे की सीट पर बाबा और आगे वाहन चालक के साथ एक सुरक्षाकर्मी होता है. उनकी गाड़ी के आगे और पीछे दो अन्य वाहनों में भी सुरक्षाकर्मी चलते हैं. कार से उतरने के बाद काले कपड़ों में तैनात कई सुरक्षाकर्मियों के घेरे में बाबा अपने सिंहासन तक पहुंचते हैं. उनके आते ही वहां मौजूद भक्त अपनी जगह पर खड़े होकर भजन गाने लगते हैं.
मीडिया में खबरें आने के बाद भी निजी खाते में जमा हुए करोड़ों
सोशल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबरें आने के बाद भी निर्मल बाबा के निजी खाते में करोड़ों रुपये आये. उपलब्ध दस्तावेज के मुताबिक , नौ अप्रैल को निर्मल दरबार के खाते से निर्मलजीत सिंह नरूला नाम के खाते में 2.20 करोड़ रुपये ट्रांसफर किये गये. उसी दिन और 92 लाख रुपये ट्रांसफर किये गये. पर यह राशि कहां से आयी, इसका ब्योरा दस्तावेज में नहीं है.  10 अप्रैल को 1.35 करोड़ रुपये खाते में डाले गये. 11 अप्रैल को भी 1.07 करोड़ रुपये खाते में डाले गये. पर इसमें से 60 लाख रुपये कहां से आये, इसका जिक्र नहीं है. 12 अप्रैल को इसमें कमी आयी. उस दिन 89 लाख रुपये खाते में ट्रांसफर हुए.  13 अप्रैल को मात्र 63 लाख रुपये निजी खाते में डाले गये.
प्रभात खबर के फोटोग्राफर से मारपीट शुक्रवार को प्रभात खबर के फोटो पत्रकार ने जब बाबा के निर्मल बुटिक और होटल की तसवीर ली थी, तो बाउंसर सरीखे सुरक्षाकर्मियों ने घेर लिया था. मारपीट भी की. साथ ही खींची गयी तसवीरों को हटाने के लिए मजबूर किया. 
छवि बिगाड़ने की कोशिश : बाबा
शुक्रवार को समाचार चैनल आज तक पर साक्षात्कार देने के बाद निर्मल बाबा शनिवार को एक बार फिर सामने आये. ट्विटर पर उन्होंने लिखा है, कुछ लोग हमारी छवि बिगाड़ रहे हैं. स्वार्थी तत्व मेरी प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहे हैं. उन्होंने अपने भक्तों से कहा : आपलोग शांति बनाये रखें. अधिक से अधिक संख्या में  टीवी चैनलों को फोन कर अपने अनुभवों के बारे में बतायें. न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन से शिकायत करें.



मकान भाड़ा दिये बिना भागे बाबा

|| कौन हैं निर्मल बाबा-6 ||
- 1998 से 1999 तक रहे थे बहरागोड़ा में, पांच माह का किराया अब भी है बाकी -
अब करोड़ों के मालिक
बहरागोड़ा : निर्मल जीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा करीब एक साल तक पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा में रहे थे. यहां ज्योति पहाड़ी पर कायनाइट पत्थर का खनन करवाते थे. बहरागोड़ा में उन्होंने नागेंद्र नाथ राय के मकान में दो कमरे किराये पर लिया था.
पर करीब एक साल रहने के बाद 1999 में वह कमरों में ताले लगा कर अचानक गायब हो गये. फिर कभी नहीं लौटे. उन्होंने पांच माह का मकान भाड़ा भी नहीं
चुकाया था.
ताला लगा कर गायब हो गये
मकान मालिक नागेंद्र नाथ राय बताते हैं : निर्मल बाबा ने 1998 में दो कमरा भाड़े पर लिया था. उस समय उन्हें सब निर्मल जीत सिंह के रूप में ही जानते थे. उनके साथ उनका एक सहयोगी भी रहता था. दोनों कमरों का भाड़ा तीन सौ रुपये निर्धारित किया गया था.
शुरुआत में निर्मल बाबा तय किराया चुकाते रहे. फिर कुछ आर्थिक परेशानी बता बाद में भाड़ा देने को कहा. उन्होंने पांच माह तक किराया नहीं चुकाया. इसके बाद 1999 में निर्मल बाबा और उनके सहयोगी दोनों कमरों में ताले लगा कर अचानक गायब हो गये.
ताले तोड़वाये गये : नागेंद्र नाथ राय ने बताया : हमने काफी दिनों तक उनका इंतजार किया. वह नहीं लौटे, तो दोनों कमरों के ताले तोड़वाये गये. कमरों में एक खटिया, दो जोड़ी चप्पल, एक लोटा और कुछ अन्य सामान थे. खटिया आज भी हमारे घर के कबाड़खाने में पड़ी है.
हमने सोचा कि वह लौटेंगे, तो खटिया सहित अन्य सामान ले जायेंगे. पर वह नहीं आये. पूजा भी करते थे : मकान मालिक नागेंद्र नाथ राय ने बताया कि बकाया भाड़े के लिए निर्मल बाबा को कई पत्र भी लिखे गये. मगर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
नागेंद्र राय की पत्नी सुप्रभा राय निर्मल बाबा का नाम सुनते ही हंस पड़ती हैं. कहती हैं, तब निर्मल बाबा नामक व्यक्ति यहां भी पूजा किया करता था. खटिया को धोती से घेर कर उसी पर पूजा करता और प्रसाद भी बांटता.
- बहरागोड़ा में नागेंद्र राय के मकान में रहते थे निर्मल बाबा
- दो कमरे लिये थे
- सहयोगी के साथ आये थे
- मकान मालिक ने किराये के लिए कई बार लिखा पत्र, पर नहीं दिया जवाब

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