24.8.12

विलासराव देशमुख: पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा

विलासराव देशमुख: पीछे मुड़कर कभी नहीं देखाबिमल कुमार

विलासराव देशमुख एक ऐसे विलक्षण राजनेता थे, जिन्होंने अपने जीवन के तमाम क्षेत्रों में चुनौतियों को अवसर में तब्दील किया। वह कभी चुनौतियों से घबराए नहीं और हमेशा उसका डटकर मुकाबला किया। देशमुख ने अपने गृह जिला लातूर से राजनीतिक पटल पर अपनी शुरुआत की।विलासराव सबसे पहले गांव के सरपंच बने। वहां से राजनीतिक जीवन में प्रवेश के बाद वह महाराष्‍ट्र के मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचे और फिर बाद में केंद्रीय मंत्री बने। वकील देशमुख 29 वर्ष की उम्र में ही 1974 में सबसे युवा सरपंच बने। उन्होंने कांग्रेस के एक आम कार्यकर्ता के तौर पर अपनी शुरुआत की थी और राजनीतिक जीवन के हर पायदान पर अपनी अमिट छाप छोड़ी थी।

देशमुख ऊंचे कद के नेता थे और हमेशा से जमीन से जुड़े रहे। 67 साल की उम्र में चेन्नई के एक अस्पताल में मंगलवार को उनका निधन हो गया। उनके निधन से महाराष्ट्र सहित देश भर में शोक की लहर दौड़ गई। राजनीति के रास्ते में उन्हें भले ही तमाम रोड़ों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।

देशमुख दो बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और फिर यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली। मराठा समुदाय से जुड़े देशमुख ने पुणे से कानून में स्नातक किया और अपने राजनीतिक जीवन में खुद को एक योद्धा साबित किया। सरपंच बनने के बाद वह ओस्मानाबाद जिला परिषद् के सदस्य रहे और लातूर तालुका पंचायत समिति के उपाध्यक्ष भी बने। 1980 में देशमुख पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद साल 1985 और 1990 में भी विधायक चुने गए।

महाराष्‍ट्र में 1982 से 1995 के बीच वह राजस्व, सहकारिता, कृषि, गृह, उद्योग और शिक्षा मंत्री भी बने। देशमुख पहली बार 1999 में मुख्यमंत्री बने। सीएम की कुर्सी पर वह जनवरी 2003 तक रहे और फिर इसके बाद राज्य कांग्रेस में गुटबाजी और अंतर्कलह के चलते उन्‍होंने कुर्सी छोड़ दी।

देशमुख ने 2004 के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की और उसी साल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। साल 2008 में मुंबई में आतंकी हमले के बाद देशमुख ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह राज्यसभा से निर्वाचित होकर राष्‍ट्रीय राजधानी पहुंच गए। केंद्र में उन्‍होंने ग्रामीण विकास मंत्री का पदभार भी संभाला। इसके बाद उन्हें विज्ञान और तकनीक एवं भूविज्ञान मंत्री भी बनाया गया।

अधिकांश नेताओं की तरह वह भी विवादों से दूर नहीं रह सके। सुभाष घई को फिल्म संस्थान के लिए जमीन आवंटन मामले में पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगा। देशमुख पर अपने परिवार द्वारा संचालित ट्रस्ट को भूमि आवंटन का आरोप भी लगा। आदर्श घोटाले में देशमुख भले ही आरोपी न बनाए गए लेकिन मुख्यमंत्री रहते विवादास्पद परियोजना को विभिन्न तरह की मंजूरियां देने के कारण वह जांच के दायरे में थे। देशमुख के साथ राजनीतिक विवाद, भूमि घोटाले और पद के दुरुपयोग के आरोप जुड़े। हालांकि इन सबके बावजूद कई दलों के नेताओं ने उन्हें विश्वस्त सहयोगी एवं कुशल प्रशासक बताया। केंद्रीय मंत्री बनने से पूर्व उन्होंने महाराष्‍ट्र में दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली।

देशमुख जब पुणे यूनिवर्सिटी में स्‍नातक कर रहे थे तो उनके मन में अभिनेता बनने की महत्वाकांक्षा भी पनपी। हालांकि वह बॉलीवुड में तो नहीं जा सके मगर राजनीति में एक सितारे के रूप में उभरे। कॉलेज के दिनों में वह अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के संवाद की नकल किया करते थे। महाराष्‍ट्र की राजनीति में देशमुख और शरद पवार के बीच नफरत भरा रिश्ता किसी से छुपा नहीं था। 1995 का विधानसभा चुनाव छोड़ दें तो देशमुख 1980 से लगातार सभी चुनावों में विजयी रहे। उनके मंत्री बनने का सिलसिला 1982 में शुरू हुआ और वे सभी महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। 1995 में अपनी हार के बावजूद देशमुख ने 1999 में राज्य में सर्वाधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज कराकर जोरदार वापसी की।

देशमुख के मन में कला, संगीत, सिनेमा आदि के प्रति गहरा लगाव था, जो अंतिम समय तक उनके साथ जुड़ा रहा। उनके बेटे रितेश देशमुख ने फिल्म अभिनेता बनकर उनकी हसरत को पूरा किया। देशमुख की दिवंगत माधवराव सिंधिया से उनकी अच्छी दोस्‍ती थी और वह सिंधिया को अपना सलाहकार मानते थे। सहकारिता आंदोलन, शिक्षा को बढ़ावा, ग्रामीण इलाकों में बेहतर प्रशासन आदि कारणों से उनके योगदान को हमेशा सराहा जाता रहा। महाराष्ट्र को नंबर वन राज्य बनाने का सपना संजोए देशमुख आखिर दुनिया को अलविदा कह गए।

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