पढ़ें: सुनीता की जुबानी, एस्ट्रोनॉट बनने की कहानी
Jul 15, 2012 at 08:10am IST | Updated Jul 15, 2012 at 08:35am IST
नई दिल्ली। भारतीय पिता और
स्लोवेनियाई मां की संतान सुनीता का बचपन एक मध्यमवर्गीय परिवार जैसा ही
था। यह जानकर हैरानी होगी सुनीता का सपना एस्ट्रोनॉट बनने का नहीं बल्कि
जानवरों का डॉक्टर बनने का था।
सुनीता
कहती हैं, मेरा एस्ट्रोनॉट बनना किस्मत का खेल है। कुछ लोग बचपन से ही
एस्ट्रोनॉट बनने का सपना देखते हैं। लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि ये मुमकिन
है। मैं एक ऐसे परिवार में पली-बढ़ी, जहां मेरे पिता भारत से आए थे और मेरी
मां एक अस्पताल में एक्सरे टेक्नीशियन थीं। हांलांकि मैं हमेशा स्टार
ट्रेक देखा करती थी। हमारे घर में अंतरिक्ष की तो बात भी नहीं होती थी।
मुझे मेडिसिन में रुचि थी। मुझे जानवरों से लगाव था और मैं वेटनरी डॉक्टर
बनना चाहती थी।
लेकिन
सुनीता की किस्मत में जानवरों का इलाज करना नहीं बल्कि ब्रह्मांड की अनंत
गहराइयों में जाना और उनके राज खोलना लिखा था। आखिरकार अपने भाई के कहने पर
उन्होंने नेवल एकेडमी में दाखिला लिया और यहीं से शुरू हो सुनीता के करियर
का नया दौर।
नेवल
एकेडमी में ट्रेनिंग के बाद सुनीता हेलीकॉप्टर पायलट बन गईं। ये 1993 की
बात है, इसी दौरान सुनीता जॉनसन स्पेस सेंटर घूमने के लिए पहुंचीं। यहां
उनकी मुलाकात जॉन यंग से हुई। जॉन यंग 1972 में अपोलो 16 मिशन में चांद पर
जा चुके थे।
बातचीत
के दौरान उन्होंने सुनीता को चांद पर पहुंचने और चांद की धरती पर पैर रखने
की रोमांचक दास्तान सुनाई। चांद पर उतरने और बाहर सैर की बातें सुनीता को
हेलीकॉप्टर उड़ानें जैसी ही लगीं।
बकौल
सुनीता, जॉन ने मुझे वर्टिकल लैंडिंग सिस्टम के जरिए चांद की सतह पर
लैंडिंग के बारे में बताया। मुझे लगा कि ये हेलीकॉप्टर जैसा ही है। तब
मैंने सोचा कि अगर मैं मास्टर डिग्री हासिल कर लूं तो मैं भी एस्ट्रोनॉट बन
सकती हूं
ये
उस वक्त की बात है जब सुनीता की उम्र करीब 35 साल थी। यंग से मुलाकात के
बात सुनीता एस्ट्रोनॉट बनने और अंतरिक्ष यात्रा के मुद्दे पर गंभीर हो गईं
और 1998 में नासा के लिए उनका सेलेक्शन हो गया।
इसके
बाद सुनीता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनका सपना पूरा होने के करीब पहुंच
गया था। सुनीता ने नासा में एस्ट्रोनॉट कैंडिडेट ट्रेनिंग शुरू कर दी और
आखिरकार 8 साल बाद आया वो पल जब सुनीता का ख्वाब हकीकत बन गया।
नासा के स्पेस शटल डिस्कवरी से सुनीता पहली बार 9 दिसंबर 2006 को अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गई। सुनीता का सपना सच हो चुका था।
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