बँटवारे का सच
आजादी के समय प्रधानमंत्री पद के लिये मतदान हुये जिसमें 16 बड़े राज्यों के लोगों..
ने वोट डाले थे। जिसमें 16 में से 13 वोट सरदार वल्लभ भाई पटेल के लिये, 2
लाल बहादुर शास्त्री के लिये और 01 वोट मौलाना अबुल कलाम आजाद के लिये
था। नेहरू के लिये एक भी वोट नही पढ़ा था। नेहरू को कोई भी हिन्दुस्तानी
प्रधानमंत्री नही बनाना चाहता था। जब नेहरू को पता चला तो वे गांधी के पास जाकर
रोए-गिड़गिड़ाए, इसके बाद गांधी ने सरदार पटेल को जाकर समझाया और पटेल तो
गांधी के भक्त थे सो नेहरू के लिये प्रधानमंत्री की गद्दी छोड़ दी। जिसका
परिणाम आज तक हिन्दुस्तानी भुगत रहा है। ये सब बातें गांधी ने स्वयं ही
अपने एक किताब में लिख रखी है। किताब का नाम है \'\'द हिडेन साइड ऑफ
गांधी\'\'
By: Anurag Rai
विभाजन के वक्त ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान
जिन्हें सीमान्त गांधी भी कहते हैं वे बहुत दुखी थे. वे महात्मा गाँधी के
पास गए और कहा- बापू आपने कहा था कि हिन्दुस्तान का बंटवारा मेरी लाश पर
होगा. फिर कैसे हो गया ये सब. गाँधी जी के एक ही जबाब से अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान
साहब और तमाम असंतुष्ट मौन हो गए. गाँधी जी ने जबाब दिया कि हिन्दुस्तान
के ६०० (छः सौ) टुकड़े हो जाते उससे तो दो भागों में बटवारा बेहतर है. यह
एक सच्चाई है, माउंटबेटन योजना के
अंतर्गत भारत व पकिस्तान के प्रावधानों के अतिरिक्त सभी ६०० से भी अधिक
रियासतों को स्वतन्त्र का विकल्प मिला था. यह एक संवैधानिक फैशला था. कुछ
रियासतें स्वतन्त्र रहने के लिए पश्चिमी व एशियाई मुल्कों से संपर्क
स्थापित कर चुकी थी. और ब्रिटिश भारतीय सरकार यानि ब्रितानी हुकूमत ने
सत्ता का हस्तांतरण विभाजन के बाद ही किया. इस लिए इसके लिए काफी हद तक
ब्रितानी हुकूमत और मुस्लिम लीग जिम्मेदार है. पंडित नेहरू को प्रधान
मंत्री बनाए जाने को लेकर कांग्रेस के अंदर विरोध हुआ था लेकिन महात्मा
गाँधी के प्रयासों से कांग्रेस के अंदर समन्वय स्थापित हो सका था.
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