आखिर कब तक द्रोपदी का चीर हरण?
Sunday, July 15, 2012, 18:11
गुवाहाटी में भीड़ भरी सड़क पर कुछ मनचलों द्वारा एक छात्रा को निर्वस्त्र करने कोशिश की गई। मानवता को शर्मसार करने वाली इस घिनौनी करतूत की ओर आमजन से लेकर नेताओं, बुद्धिजीवियों, महिला आयोग और पुलिस महकमा का ध्यान तब गया जब मीडिया ने इस घटना की शर्मसार करने वाली तस्वीर दिखाई। एक सुर में सबने इस घटना की निंदा की और आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की।
गुवाहाटी छेड़छाड़ मामला न तो पहली घटना है न ही आखिरी। यह बदस्तूर जारी है। जब गुवाहाटी में छात्रा से छेड़छाड़ का मामला देश की सुर्खियां बना हुआ था उस समय भी देश के कई इलाकों में किशोरियों, युवतियों और महिलाओं की इज्जत को तार-तार किया जा रहा था। सहारनपुर में दो छात्राओं को अगवा कर गैंग रेप किया गया। लखनऊ के थाने में महिला से रेप किया गया। पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में स्कूल की छात्रा के कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई। यूपी के बागपत में पंचायत द्वारा 40 साल से कम उम्र की महिलाओं को बाजार न जाने का तालिबानी फरमान सुनाया गया। दिल्ली में एक महिला ने नगर निगम के सफाईकर्मियों पर छेड़छाड़ के आरोप लगाए। असम में ही सेना के जवानों द्वारा युवती से छेड़छाड़ का मामला सामने आया।
सवाल यह उठता है विज्ञान और तकनीकी युग में जी रहा समाज किशोरियों, युवतियों और महिलाओं के प्रति अमानवीय सोच में आखिर कब बदलाव लाएगा? मानव समाज स्त्री और पुरुष से मिलकर बना है यानी समाज की अभिन्न अंग हैं स्त्रियां। जितना ध्यान पुरुषों का रखा जाता है उतना ही स्त्रियों का रखा जाना चाहिए। हर क्षेत्र में स्त्रियों को समान अधिकार दिया जाना चाहिए।
जरा सोचिए, पुरुषों का वजूद महिलाओं के बिना नहीं हो सकता है। महिलाएं बच्चे को नौ महीने तक अपने पेट में रखकर पालन-पोषण करती हैं चाहे बेटा हो या बेटी किसी तरह का भेदभाव नहीं करतीं। नौ महीने तक बच्चे को पेट में लालन-पालन के बाद जन्म देती है। जन्म देने के बाद उसे अपने पैर पर चलना सिखाती है, पढ़ना सिखाती है। अच्छे संस्कार देती है। उसे योग्य इंसान बनाती है। कोई भी मां अपने बच्चे को गलत रास्ते पर चलने की शिक्षा नहीं देती है। तो फिर उन जननी के साथ घिनौनी हरकत क्यों?
आज महिलाएं पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। इतिहास उठाकर देखा जाए तो रजिया सुल्तान, इंदिरा गांधी समेत कई बड़ी हस्तियों ने देश की बागडोर को संभाला और देश व समाज को एक नई दिशा दी। इसी तरह विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स ने पुरुषों को चुनौती दी। खेल के क्षेत्र में सानिया मिर्जा, सानिया नेहवाल समेत कई लड़कियां आज पुरुष एथलीटों की बराबरी कर रही हैं। हाल की राजनीति में सोनियां गांधी देश की सबसे ताकतवर राजनीतिज्ञ हैं, इनके अलावे ममता बनर्जी, जयललिता, मायावती, सुषमा स्वराज और बृंदा करात किसी पुरुष नेताओं से कमतर नजर नहीं आतीं।
कहने का मतलब यह है कि समाज निर्माण में जब महिलाओं का योगदान पुरुषों के मुकाबले किसी स्तर पर कम नहीं है तो फिर उसे पुरुषों की तरह जीने का अधिकार क्यों नहीं? उसे राह चलते क्यों हवस का शिकार बनाया जाता है? स्कूल-कॉलेज जाती हुई छात्राएं, बस-ट्रेन में सफर करती हुई युवती महिलाओं और बाजार जाती स्त्रियों के साथ छेड़छाड़ आखिर क्यों? क्या लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं।
सरकार ने महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार को रोकने के लिए कानून बनाए हैं पर यह कानून इसे रोकने में नाकाफी साबित हो रहा है। मनचले और बददिमाग लोगों को सबक सिखाने के लिए पुलिस भी ठोस कदम नहीं उठाती है जिससे इस तरह के अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है। अगर इस तरह के मामलों में आरोपी को पुलिस पकड़ती भी है तो मामले को रफा-दफा करना ही बेहतर समझती है। इससे आरोपी आसानी से बरी हो जाता है।
यौन शोषण और छेड़छाड़ जैसी घटना से निपटने के लिए महिलाओं को खुद आत्मनिर्भर होना पड़ेगा क्योंकि हमेशा कानून और पुलिस हर जगह मौजूद नहीं हो सकता। साथ ही महिलाओं को अपने रहन-सहन, पहनावा-ओढ़ावा का भी विशेष ख्याल रखना होगा। लड़कियां ऐसी कोई भड़काऊ ड्रस न पहनें जो राह चलते लोगों के मन में गलत नजरिये को जन्म दे। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण चूंकि कुदरती देन है इसलिए महिलाओं और पुरुषों दोनों को अपनी सीमाओं का विशेष ख्याल रखना जरूरी है। इसे हर हाल में नैतिकता का पैमाना बनाना ही घृणित सोच को बदलने का सबसे कारगर तरीका होगा।
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