क्या रोमांस प्यार का दम घोट देता है?
गुरुवार, 14 फ़रवरी, 2013 को 09:26 IST तक के समाचार
रूमानियत को अकसर इश्क की इंतेहा
समझा जाता है. चाहत के इस फसाने की निशानी सिर्फ वेलेंटाइन डे के दिन ही
नहीं बल्कि हर जगह दिखाई देती है.
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वेलेंटाइन डे पर मोहब्बत का इज़हारलेकिन ये ज़रूरी नहीं कि किस्से कहानियों, उपन्यासों और फिल्मों के कथानक में दिखाई जाने वाली क्लिक करें रोमांटिक बातें हक़ीक़त की दुनिया का हिस्सा भी हों. सवाल ये है कि क्या प्यार में रोमांस ही सब कुछ है? कहीं रोमांस की ये तिलिस्मी दुनिया प्यार के रास्ते में बाधा तो नहीं?
दोस्ती और फलसफे पर किताबें लिख चुके मार्क वेर्नन पेश से लेखक और पत्रकार हैं. वह कहते हैं कि रूमानियत को लेकर हमारा नजरिया दरअसल लंबे चलने वाले रिश्तों का सबसे बड़ा दुश्मन है.
"प्यार अंधा होता है या दूसरे लफ्जों में कहें तो रूमानियत भरे इश्क की इंतेहा पर हम अंधे हो जाते हैं और फिर नतीजतन हम जिंदगी में कुछ खोने लगते हैं"
मार्क वेर्नन, लेखक व पत्रकार
उन्होंने कहा,“या सिनेमा पर ही गौर करें. बॉक्स ऑफिस पर रोमांटिक कॉमेडी फिल्में बड़ा कारोबार कर रही हैं. प्रेमियों के एक दूसरे की बाहों में खो जाने वाला सही नुस्खा मिल जाए तो आप करोड़ों कमा सकते हैं. डेटिंग वेबसाइट्स का कारोबार मंदी को मात देकर पिछले साल 60 फीसदी की दर से बढ़ा है”.
रोमांस की हक़ीकत
कुछ रोमांटिक फिल्में
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कैसाब्लांका
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द नोटबुक
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नॉटिंग हिल
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टाइटैनिक
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दिल वाले दुल्हनिया ले जाएँगे
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मैने प्यार किया
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कयामत से कयामत तक
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मुगले आज़म
क्लिक करें प्यार ने लांघी सरहद की भी सीमा
मार्क को लगता है कि यह इस दौर का सबसे दुखदाई मिथक है. मिथक और भी हैं. हम यह समझने लगते हैं कि कोई है कि जिसके होने भर से हमारी जिंदगी मुकम्मल हो जाती है और जिसके बगैर हम खुद को अधूरा महसूस करने लगते हैं.
इस आदमी की तलाश, उससे इश्क और फिर दो बदन से एक जान होने का खूबसूरत हादसा. नए जमाने की जिंदगी में यह एक मुश्किल चुनौती है.
मार्क कहते हैं कि यह साबित करना मुश्किल है और हैरत जाहिर करते हैं कि जोड़ों पर एक दूसरे की उम्मीदों को पूरा करने का किस कदर दबाव होता होगा. यह उन्हें मदद करने की बजाय रिश्तों को कमजोर करता है.
ये इशक नहीं आसां
यह बात आपको चौंका सकती है कि दूसरी शादी ज्यादा बेहतर चलती है. खासकर तब जबकि किसी ने रिश्तों की रूमानियत की इंतेहा पर जाकर अपनी राहें जुदा की हो.
हाल ही में एक अध्ययन में यह पाया गया कि जोड़ों की आपसी समझदारी, उन्हें मिलने वाला सामाजिक सहयोग और वित्तीय स्थायित्व जैसी चीजें रिश्तों की कामयाबी के लिए जरूरी हैं.
इन जोड़ों ने जिंदगी की जद्दोजहद से शायद बहुत कुछ सीखा है. वे अपनी मुश्किलों के बारे में सलीके से बात करते हैं और अपने साथी, रिश्तेदारों और दोस्तों पर भरोसा करते हैं.
क्या आपने कभी सोचा है कि इश्क का मौत से इतने करीब का रिश्ता क्यों है. यहां तक कि शेक्सपियर ने भी जब इश्क की कहानी लिखो तो इसे हादसा ही कहा.
अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि लोग रूमानियत के मिथक से इन्कार कर रहे हैं. 90 के दशक के बनिस्पत तनहा जिंदगी बसर करने वाले लोगों की तादाद 50 फीसदी बढ़ी है.
कई रिपोर्टों में कहा गया है कि अकेले रहने का मतलब अपनी आजादी को बेहतर तरीके से जीना और दोस्ती सरीखे दूसरे रिश्तों के लिए ज्यादा वक्त निकालना है.
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