आख़िर हममें बुद्धिमत्ता आती कहां से है?
गुरुवार, 21 फ़रवरी, 2013 को 08:03 IST तक के समाचार
आज हम दिमाग पर अपना दिमाग लगाएंगे. सवाल ये है कि कौन सी चीज़ हमें बुद्धिमान बनाती है? क्या बुद्धिमत्ता कुदरती है?
क्या ये हमारे अंदर ही पैदा और विकसित होती है या फिर गूगल, विकीपीडिया जैसे साधन हमारे दिमाग पर कोई असर डालते हैं?एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार हम लोग ‘दिमागी कंजूस’ हैं.
इसका मतलब ये हुआ कि हम तब तक अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करना चाहते जब तक कि मजबूरी न हो जाए.
हम किसी जगह को ढूंढने के लिए अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालने के बजाय 'गूगल मैप' या ऐसे ही किसी उपाय को ढूंढते हैं जो आसान हों.
बांटने से बढ़ता है दिमाग
प्रयोगों से ये साबित किया गया है कि ऐसी तस्वीर जिसे हम देख रहे हों- उसमें से बिल्डिंग गायब हो जाती है, ऐसे लोग जिनसे हम बात कर रहे हैं- बदल जाते हैं, लेकिन अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता.इस अवधारणा को मनोवैज्ञानिक ‘बदलाव के प्रति अंधापन’ कहते हैं.
" इंसान ऐसे जीव हैं जो स्वाभाविक रूप से नए विचार, क्षमताएं और साधन जुटा लेते है."
दार्शनिक एंडी क्लार्क
इसका मतलब ये है कि दिमाग रिकॉर्ड रखने के लिए स्मरण शक्ति के बजाय दुनिया पर निर्भर करता है. सामान्यतः ये एक अच्छी बात मानी जाती है.
कई दार्शनिक मानते हैं कि दिमाग अपना विस्तार माहौल में करने के लिए ही तैयार किया गया है. यहां तक कि सोचने की प्रक्रिया जितनी दिमाग के भीतर हो रही होती है उतनी ही बाहर भी हो रही होती है.
दार्शनिक एंडी क्लार्क तो इंसानों को, ‘पैदाइशी साइबोर्ग्स’ (आधा इंसान-आधा मशीन) तक कहते हैं. वो कहते हैं कि इंसान ऐसे जीव हैं जो स्वाभाविक रूप से नए विचार, क्षमताएं और साधन जुटा लेते है.
समाज ही जीतता है
हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के स्मरण शक्ति पर किए गए एक शोध के मुताबिक लोग अपने परिचित माहौल और परिचित व्यक्ति के साथ चीज़ों को बेहतर ढंग से याद रख पाते हैं.शोध के अनुसार ऐसा इसलिए होता है कि आपसी समझ वाले लोगों के बीच याद रखने के लिए चीज़ों का बंटवारा हो सकता है.
दूसरों पर भरोसा करने की दिमागी क्षमता इंसान की सबसे बड़ी ताकत है. हम अपने ज्ञान को बांट सकते हैं और अपनी समझ को विकसित कर सकते हैं.
तकनीक लोगों के लिए चीज़ों का ख़्याल रखती है ताकि हमें न रखना पड़े. इसी तरह संकलित ज्ञान और जानकारी समाज को चलाने में मददगार होती है.
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