हिंद महासागर की तलहटी में प्राचीन महाद्वीप के अवशेष
मंगलवार, 26 फ़रवरी, 2013 को 07:38 IST तक के समाचार
एक प्राचीन भूखंड के अवशेष हिंद
महासागर के तल के नीचे दबे हुए मिले हैं. एक अध्ययन में शोधकर्ताओं को
महासागर के तल के नीचे एक ऐसे भूखंड के अवशेष मिले हैं जो 2,000 से लेकर आठ
करोड़ 50 लाख साल तक पुराने हो सकते हैं.
वैज्ञानिकों ने इस भूखंड को मौरिशिया नाम दिया है
जो कि आधुनिक दुनिया के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने के समय खंडित होकर
लहरों के नीचे खो गया था.सुपर महाद्वीप
क़रीब 75 करोड़ साल पहले धरती रोडीनिया नाम के एक विशाल महाद्वीप के रूप में थी और भारत, मेडागास्कर के समीप अवस्थित था लेकिन अब इनके बीच हज़ारों किलोमीटर तक समुद्र है.
अब शोधकर्ताओं को लगता है कि उन्होंने उस महाद्वीप के एक भूखंड का पता लगा लिया है जो कि कभी भारत और मेडागास्कर के बीच दबा हुआ था.
"हमने समुद्री किनारे से जो रेत के कण जुटाए थे उनमें जिरकॉन मौजूद हैं, जो विशेषरूप से महाद्वीपीय पर्पटी में पाए जाते हैं और वे बेहद प्राचीन हैं"
प्रोफ़ेसर तोर्सविक
रेत के ये कण 90 लाख साल पहले हुए ज्वालामुखी विस्फोट के अवशेष हैं और इनमें मिले धातु अवशेष और भी पुराने हैं.
नॉर्वे की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओस्लो के प्रोफ़ेसर ट्रोंड तोर्सविक कहते हैं, “हमने समुद्री किनारे से जो रेत के कण जुटाए थे उनमें जिरकॉन मौजूद हैं, जो विशेषरूप से महाद्वीपीय पर्पटी में पाए जाते हैं और वे बेहद प्राचीन हैं.”
ये जिरकॉन 1,970 से 60 करोड़ वर्ष के बीच के हैं और शोधकर्ताओं के दल का निष्कर्ष है वे प्राचीन भूखंड के अवशेष हैं जो कि एक ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान खिंच कर द्वीप की सतह पर आ गए.
खिसक गया भूखंड
ये इतिहास में लाखों सालों के बीच की परिघटना है जिसका विस्तार प्रिकैंब्रियन काल की बंजर और जीवन रहित धरती से डायनोसोर के अस्तित्व के काल तक है.
लेकिन क़रीब साढ़े आठ करोड़ साल पहले जब भारत मेडागास्कर से, अपनी आज की स्थिति की ओर खिसकने लगा तब लघु महाद्वीप टूट गया होगा और आखिरकार समुद्री लहरों के नीचे खो गया होगा.
हालांकि इसका एक हिस्सा बचा रह गया होगा.
प्रोफ़ेसर तोर्सविक इसे समझाते हुए कहते हैं, “इस समय सेशेल्स ग्रेनाएट या फिर महाद्वीपीय पर्पटी का एक टुकड़ा है जो कि हिंद महासागर के बीचोंबीच स्थित है. लेकिन एक समय ये मेडागास्कर के उत्तर में अवस्थित था. और संभव है कि ये हमारे अनुमान से भी काफ़ी बड़ा हो और ऐसे कई महाद्वीपीय भूखंड सागर में बिखरे पड़े हों.”
इस खोई हुई धरती के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए और गहन शोध की ज़रूरत है.
प्रोफ़ेसर तोर्सविक बताते हैं, “हमें भूकंपीय आंकड़ों की ज़रूरत होगी जिससे कि भूसंरचना की छवि बनाई जा सके. यही सबसे बड़ा प्रमाण होगा. या फिर समुद्र के तल में काफी गहरी खुदाई करनी होगी जिसके लिए काफ़ी पैसे की ज़रूरत होगी.”
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