लंदन क्यों छोड़ रहें हैं ब्रितानी गोरे?
शनिवार, 23 फ़रवरी, 2013 को 13:55 IST तक के समाचार
ब्रिटेन की ताज़ा जनगणना के अनुसार लंदन में रहने वाले गोरे ब्रितानी लोग अब वहां अल्पसंख्यक होने लगे हैं.
नए आंकड़ों के मुताबिक़ लंदन में रहने वाले गोरे ब्रितानी लोगों की संख्या लंदन की कुल जनसंख्या की 45 फ़ीसदी रह गई है.मैंने तमाम आंकड़ों का अध्ययन किया और इस नतीजे पर पहुंचा कि ये एक सकारात्मक पहलू है न कि नकारात्मक जैसा कि कुछ सुर्खियां आपको बताने की कोशिश कर रही हैं.
गोरे ब्रितानियों के लंदन छोड़ने को आप्रवासियों के चलते मूल निवासियों के पलायन के तौर पर पेश किया जा रहा है, इसमें कुछ सच्चाई भी है लेकिन मेरी समझ से इसे श्रमिक वर्ग की आर्थिक उन्नति और सपनों के पूरा होने के तौर पर देखा जाना चाहिए.
पिछले दशक में यानी 2001 से 2011 के बीच लंदन में रहने वाले गोरे ब्रितानियों की संख्या में छह लाख बीस हज़ार की कमी पाई ग.ई लेकिन शेष इंग्लैंड और वेल्स में रहने वाले गोरे ब्रितानियों की संख्या में केवल दो लाख बीस हज़ार की बढ़ोत्तरी हुई.
"गोरे ब्रितानियों के लंदन छोड़ने को आप्रवासियों के कारण मूलनिवासियों के पलायन के तौर पर पेश किया जा रहा है, इसमें कुछ सच्चाई भी है लेकिन मेरी समझ से इसे श्रमिक वर्ग की आर्थिक उन्नति और सपनों के पूरा होने के तौर पर देखा जाना चाहिए."
मार्क ईस्टन, बीबीसी होम संपादक
मेरा मानना है कि जन्म दर में लगातार हो रही गिरावट और ब्रितानियों के देश छोड़कर जाने के कारण ऐसा हुआ है.
आर्थिक उन्नति
21वीं सदी के पहले दशक में तमाम ब्रितानी लोगों की नौकरियां चली गई लेकिन उनके घरों में उनका काफ़ी पैसा लगा हुआ था. लेकिन नौकरी जाने के बाद मुआवज़े के तौर पर मिलने वाली एकमुश्त रक़म और पेंशन की रक़म से कई लोगों को फ़ायदा भी हुआ.इसकी वजह से कई ब्रितानी गोरों ने लंदन को छोड़ने का फ़ैसला कर लिया. लंदन पर नज़र दौडा़ने से पता चलता है कि कई मोहल्लों से लोग अपने घरों को छोड़कर जा रहे हैं.
लंदन के कई मोहल्लों में आकर बसने वालों में काले अफ़्रीक़ी लोगों की एक बड़ी संख्या है. मेरी मुलाक़ात से विक्टर और विक्टोरिया से हुई जिनके माता-पिता 50 के दशक में घाना से ब्रिटेन आए थे.
विक्टर लंदन ट्रांसपोर्ट में काम करते हैं और विक्टोरिया एक नर्स हैं. लंदन से अपने घर बेचकर जाने वाले गोरे ब्रितानियों का फ़ायदा उठाते हुए विक्टर और विक्टोरिया ने लंदन में घर ख़रीद लिया और यहीं बस गए.
बदलता माहौल
लंदन छोड़कर जाने वाले गोरे ब्रितानी इसेक्स और साउथएंड जैसे शहरों में जाकर बड़े-बड़े घरों में रहने लगे हैं.कई ब्रितानी गोरों ने इसलिए उस इलाक़े को छोड़ दिया क्योंकि उनके आस-पड़ोस में कई ग़ैर-ब्रितानी या दूसरे मूल के लोग आकर बसने लगे थे जिनका रहन-सहन उनसे बिल्कुल अलग था.
पुराने चायख़ानों और रेस्त्रा की जगह अब टेकअवे चिकन शॉप और हलाल सुपरमार्केट खुल गए हैं.
लेकिन इससे साथ-साथ एक और बात भी है.
20वीं सदी के मध्य में गंदी बस्तियों से आकर लंदन में बसने वाले गोरे ब्रितानियों ने 21वीं सदी के शुरूआत में लंदन के बाहर बेहतर अवसर पाए. खा़सकर पिछले दशक में आर्थिक उन्नति और मकान की बढ़ती क़ीमतों के कारण अपने घरों को काफ़ी ऊंचे दाम में बेचकर लंदन से बाहर कॉटेज ख़रीदना शुरू कर दिया.
इसलिए कहा जा सकता है कि ये अरमानों और उनके सफल होने की कहानी है.
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