गुमनामी बाबा, भगवनजी या फिर सुभाष चंद्र बोस?
गुरुवार, 14 फ़रवरी, 2013 को 14:28 IST तक के समाचार
इस कहानी की शुरुआत हुई थी साल 1985 में जब मैने घर में दादाजी को किसी बाबा की मृत्यु के बारे में बात करते सुना था.
समय बीतता गया और यदा कदा इस बाबा के बारे में बात
होती रही जिसे फैज़ाबाद शहर में गुमनामी बाबा के नाम से इसलिए बुलाया जाता
था क्योंकि वह किसी से मिलते-जुलते नहीं थे.हमेशा एक फुसफुसाहट सुनते रहे कि यह बाबा जिन्हें लोग भगवनजी के नाम से संबोधित करते थे वह शायद क्लिक करें सुभाष चंद्र बोस थे जो कथित रूप से गुमनामी में रह रहे थे.
सरकारी खज़ाने में जमा गुमनामी बाबा का सामान
- सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता/परिवार की निजी तस्वीरें
- कलकत्ता में हर वर्ष 23 जनवरी को मनाए जाने वाले नेताजी जन्मोत्सव की तस्वीरें
- लीला रॉय की मृत्यु पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें
- नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे
- 555 सिगरेट और विदेशी शराब का बड़ा ज़खीरा
- रोलेक्स की जेब घड़ी
- आज़ाद हिन्द फ़ौज की एक यूनिफॉर्म
- 1974 में कलकत्ता के दैनिक 'आनंद बाज़ार पत्रिका' में 24 किस्तों में छपी खबर 'ताइहोकू विमान दुर्घटना एक बनी हुई कहानी' की कटिंग्स
- जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें
- भारत-चीन युद्ध सम्बन्धी किताबें जिनके पन्नों पर टिप्पणियां लिखी गईं थीं
- सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच पर बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें
- सैंकड़ों टेलीग्राम, पत्र आदि जिन्हें भगवनजी के नाम पर संबोधित किया गया था
- हाथ से बने हुए नक़्शे जिनमे उस जगह को इंकित किया गया था जहाँ कहा जाता है नेताजी का विमान क्रैश हुआ था
- आज़ाद हिन्द फ़ौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन रॉय के लिखे गए बधाई सन्देश
फैज़ाबाद शहर के सिविल लाईन्स में स्थित 'राम भवन' में इस गुमनामी बाबा की मृत्यु होती है और उसके दो दिन बाद बड़ी गोपनीयता से इनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.
लेकिन लोगों की आँखें तब फटी की फटी रह गईं थीं जब इनके कमरे से बरामद सामान को करीने से देखा गया.
उसी के ठीक बाद इस तरह की बात ने दम भरा कि यह कोई साधारण बाबा नहीं थे और सुभाष चंद्र बोस भी हो सकते हैं.
हालांकि भारतीय सरकार और इतिहास के अनुसार सुभाष चंद्र बोस की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी.
गुमनामी बाबा का आगमन
फैज़ाबाद में स्थानीय लोगो के मुताबिक़ गुमनामी बाबा या भगवनजी 1970 के दशक में जिले में पहुंचे थे.शुरुआत में यह अयोध्या की लालकोठी में बतौर किराएदार रहा करते थे और कुछ ही दिन बाद बस्ती में जाकर रहने लगे थे.
लेकिन बस्ती उन्हें बहुत रास नहीं आया और भगवनजी वापस अयोध्या लौटकर पंडित रामकिशोर पंडा के घर रहने लगे.
कुछ वर्ष बाद इनका अगला पड़ाव था अयोध्या सब्जी मंडी के बीचोबीच स्थित लखनऊवा हाता जहाँ ये बेहद गुप्त तरीके से रहे.
इनके साथ इनकी एक सेविका सरस्वती देवी रहीं जिन्हें यह जगदम्बे के नाम से बुलाया करते थे.
बताया जाता है कि इस महिला का ताल्लुक़ नेपाल के राजघराने से था लेकिन ये पढ़ी-लिखी नहीं थीं.
अपने अंतिम समय में, गुमनामी बाबा के नाम से थोड़े मशहूर हो चुके ये बाबा, फैजाबाद के राम भवन में पिछवाड़े में बने दो कमरे के मकान में रहे.
यहीं पर इनकी मृत्यु हुई और उसी के बाद कयास तेज़ हुए की ये सुभाष चंद्र बोस हो सकते हैं.
आखिर कौन थे बाबा?
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एक बात जो तय है वह ये कि यह कोई साधारण बाबा नहीं थे.
जिस तरह का सामान इस व्यक्ति के पास से बरामद हुआ वह कुछ बातें ख़ास तौर पर दर्शाता है.
पहली यह कि इस व्यक्ति ने अपने इर्द-गिर्द गोपनीयता बनाकर रखी.
दूसरी यह कि शायद यह बात कोई नहीं जान सका कि यह व्यक्ति 1970 के दशक में फैजाबाद-बस्ती के इलाके में कहाँ से पधारा.
तीसरी, स्थानीय और बाबा के करीब रहे लोगों की मानें तो वह कौन लोग थे जो इस बाबा से मिलने दुर्गा पूजा और 23 जनवरी के दिनों में गुप्त रूप से फैज़ाबाद आते थे और उस वक़्त बाबा के परम श्रद्धालु और निकट कहे जाने वाले परिवारजनों को भी उनसे मिलने की मनाही थी.
चौथी, अगर यह व्यक्ति जंगलों में ध्यानरत एक संत था तब इतनी फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन कैसे बोलता था.
पांचवी, इस व्यक्ति के पास दुनिया भर के नामचीन अखबार, पत्रिकाएँ, साहित्य, सिगरेट और शराबें कौन पहुंचाता था.
आखिरी बात यही कि इस व्यक्ति के जीते जी तो कई लोगों ने सुभाष चंद्र बोस होने का दावा किया और उन्हें प्रकट कराने का दम भरा (जय गुरुदेव एक उदाहरण), लेकिन इस व्यक्ति की मौत के बाद से नेताजी के जीवित होने सम्बन्धी सभी कयास बंद से क्यों हो गए.
'बोस की मौत दुर्घटना में नहीं हुई'
ताईवान के अधिकारियों ने कहा है कि भारत के स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की मौत ताईवान में किसी विमान दुर्घटना में नहीं हुई.
आज़ाद
हिंद फौज के कुछ सदस्यों का मानना रहा है कि सुभाष चंद्र बोस की मौत 18
अगस्त, 1945 को ताईवान की राजधानी ताईपे में एक विमान दुर्घटना में हो गई
थी.
आज़ाद हिंद फौज का गठन बोस ने ब्रितानी साम्राज्य के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए किया था.
ताईवान में अब भारतीय जाँचकर्ताओं को बताया है कि ताईपे में 14 अगस्त से 20 सितंबर 1945 के बीच कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं थी.
उनके एक साथी ने तो यहाँ तक दावा किया कि उस विमान दुर्घटना में वह ख़ुद बच गए और उन्होंने बोस को विमान के मलबे में मृत देखा था.
हालाँकि बोस का शव कभी बरामद नहीं हो सका और ऐसी अटकलें जारी रहीं कि बोस उस विमान दुर्घटना में जीवित बच गए थे.
कुछ ऐसी भी अफ़वाहें थीं कि सुभाष चंद्र बोस सोवियत रूस चले गए थे और वहाँ उन्हें जेल में रखा गया.
सच्चाई क्या है?
नेताजी
के नाम से मशहूर सुभाष चंद्र बोस ने भारत में ब्रितानी साम्राज्य के
ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी. उनका मानना था कि भारत से ब्रितानी साम्राज्य को
ख़त्म करने के लिए सशस्त्र विद्रोह ही एक मात्र रास्ता हो सकता है.
बोस
ने निर्वासन में रहकर आज़ाद हिंद फौज का गठन किया था जिसका लक्ष्य दूसरे
विश्व युद्ध में ब्रितानी साम्राज्य के ख़िलाफ़ युद्ध करना था.
अब ताईवान सरकार ने भारतीय जाँच दल को बताया है कि अगस्त में राजधानी ताईपे में कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं थी.
बोस
पर एक क़िताब लिखने वाले कल्याण कुमार घोष ने इस ख़बर पर कहा, "जो लोग यह
मानते हैं कि बोस की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई, यह ताज़ा ख़बर उनकी
दलील को मज़बूत बनाती है."
बोस के बारे में हमेशा से ही रहस्य बना रहा है और यह साबित नहीं हो सका है कि उनकी मौत किस तरह हुई.
जापान सरकार का कहना है कि उनकी अस्थियाँ वहाँ एक मंदिर में सुरक्षित रखी गई हैं.
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