14.2.13

सबसे 'बदसूरत' महिला 150 साल बाद दफ़न

 गुरुवार, 14 फ़रवरी, 2013 को 08:48 IST तक के समाचार

जूलिया के शव को वापस मैक्सिको लाने का अभियान सात साल से भी ज़्यादा वक्त तक चला.
दुनिया की सबसे बदसूरत महिला के रूप में मशहूर जूलिया पेस्टराना के शव को 150 साल के लंबे समय के बाद आखिरकार दफ़नाया गया है.
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19वीं शताब्दी में जूलिया पेस्टराना दुनिया की सबसे बदसूरत महिला के रूप में जानी जाती थी क्योंकि आनुवांशिक रुप से ही उनका चेहरा बालों से ढका हुआ था.
लातिन अमरीकी देश मैक्सिको में 1834 में जन्मीं जूलिया का मुंह भी काफी हद तक बाहर निकला हुआ था. इसी वजह से उन्हें भालू महिला भी कहा जाता था.
1850 के दशक में जूलिया एक अमरीकी सर्कस के मालिक थियोडोरे लेंट से मिलीं. बाद में दोनों ने आपस में विवाह कर लिया. इसके बाद जूलिया लेंट के सर्कस में अपना शो पेश करती रहीं.
"आप कल्पना कीजिए की जूलिया को कितना अपमान झेलना पड़ा होगा और उन्होंने उससे पार पाया. यह काफी गरिमामयी कहानी है."
मारियो लोपेज, गवर्नर, सिनालोओ, मैक्सिको
1860 में मॉस्को में एक बच्चे को जन्म देने के बाद जूलिया की मौत हो गई. नवजात शिशु की शक्ल भी जूलिया जैसी ही थी लेकिन वह ज़्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहा.

शव का इस्तेमाल

दुनिया की सबसे बदसूरत महिला के शव को 150 साल बाद दफ़नाया गया.
मौत के बाद जूलिया के अमरीकी पति ने शव को कहीं दफ़नाया नहीं बल्कि उसे रासायनिक लेपों के सहारे लेकर दुनिया भर में शो करते रहे.
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ये सफ़र नॉर्वे में जाकर थमा. नॉर्वे में 1976 में इस शव को चुराने की घटना भी हुई, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया.
उसके बाद इसे ओस्लो विश्वविद्यालय में सुरक्षित रखा गया.
अब जाकर उनका विधिवत रूप से उनका अंतिम संस्कार हुआ. उन्हें सफेद ताबूत में सफेद गुलाब के फूलों के बीच दफ़नाया गया.

जूलिया का संघर्ष

सिनालोओ द लेव्या शहर के लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी. सिनालोओ के गवर्नर मारियो लोपेज ने कहा, “आप कल्पना कीजिए की जूलिया को कितना अपमान झेलना पड़ा होगा और उन्होंने उससे पार पाया. यह काफी गरिमामयी कहानी है.”
जूलिया का अंतिम संस्कार कराने वाले फादर जेमी रायस ने कहा, “एक इंसान किसी के लिए कोई वस्तु नहीं हो सकता.”
इस शव को मैक्सिको लाने की कोशिश 2005 में मैक्सिको की कलाकार एंडरसन बारबाटा ने शुरू किया, जिसका मैक्सिको के अधिकारियों ने भी समर्थन किया.
एंडरसन बारबाटा ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, “मुझे महसूस होता है कि वे इतिहास और विश्व की स्मृति में गरिमामयी जगह की हकदार हैं.”

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