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विवादों के संत: आसाराम हरपालानी कैसे बन गए आसाराम बापू, जानिए पूरी कहानी

dainikbhaskar.com  |  Feb 06, 2013, 13:00PM IST



आसाराम बापू के भक्‍तों में कई रसूखदार लोग शामिल हैं। बताया जाता है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, अमित शाह समेत कई नेता उनके आश्रम में जाते हैं। 2005 में सरस्वती नदी को दोबारा जीवित करने के गुजरात सरकार के अभियान में आसाराम को ही मुख्य अतिथि बनाया गया था और गुजरात सरकार की उपलब्धियों को बताने के लिए 2007 में कुछ समय के लिए वन्दे गुजरात टीवी चैनल शुरू किया था तो इसमें लगातार आसाराम बापू की फुटेज दिखाई जाती थी। मीडिया का ध्यान उन पर नहीं था। तब तक वह काफी मीडिया फ्रैंडली भी थे। लेकिन गुजरात के आश्रम में दो बच्चों की मौत के बाद आश्रम में गई महिला पत्रकारों के साथ उनके चेलों ने बदतमीजी की थी और दिव्य भास्कर के एक पत्रकार को बंदी तक बना लिया था जिसे बाद में पुलिस ने छुड़ाया था।

विवादों के संत: आसाराम हरपालानी कैसे बन गए आसाराम बापू, जानिए पूरी कहानी

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आसाराम बापू के भक्‍तों में कई रसूखदार लोग शामिल हैं। बताया जाता है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, अमित शाह समेत कई नेता उनके आश्रम में जाते हैं। 2005 में सरस्वती नदी को दोबारा जीवित करने के गुजरात सरकार के अभियान में आसाराम को ही मुख्य अतिथि बनाया गया था और गुजरात सरकार की उपलब्धियों को बताने के लिए 2007 में कुछ समय के लिए वन्दे गुजरात टीवी चैनल शुरू किया था तो इसमें लगातार आसाराम बापू की फुटेज दिखाई जाती थी। मीडिया का ध्यान उन पर नहीं था। तब तक वह काफी मीडिया फ्रैंडली भी थे। लेकिन गुजरात के आश्रम में दो बच्चों की मौत के बाद आश्रम में गई महिला पत्रकारों के साथ उनके चेलों ने बदतमीजी की थी और दिव्य भास्कर के एक पत्रकार को बंदी तक बना लिया था जिसे बाद में पुलिस ने छुड़ाया था।
 

विवादों के संत: आसाराम हरपालानी कैसे बन गए आसाराम बापू, जानिए पूरी कहानी

dainikbhaskar.com  |  Feb 06, 2013, 13:00PM IST
विवादों के संत: आसाराम हरपालानी कैसे बन गए आसाराम बापू, जानिए पूरी कहानी

जमीनें हड़प कर खड़ा किया साम्राज्य
 
आसाराम और उनके ट्रस्ट पर जमीन कब्जाने के कई आरोप हैं। फरवरी 2009 में गुजरात सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया कि आसाराम के आश्रम ने 67,089 वर्ग मीटर जमीन कब्जा ली है। इस समय आसाराम के खिलाफ लग-अलग जगहों पर एक दर्जन से ज्यादा केस चल रहे हैं।
 
मोटेरा के अशोक ठाकुर ने बापू के आश्रम पर अपनी पांच एकड़ जमीन कब्जाने का आरोप लगाया है। अशोक का कहना है कि उनकी जमीन आश्रम से लगी हुई है और गुरु पूर्णिमा के दिन उनकी जमीन में टेंट लगाये जाते थे। आश्रम वालों को टेंट लगाने की इजाजत उनके पिता ने दी थी। उनके पिता की मौत के बाद आश्रम वालों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया और कहा कि यह जमीन उनके पिता ने आश्रम को दान में दी थी। हालांकि आश्रम इस बारे में कोई सबूत नहीं दे सका था।
 
इसके अलावा एक आदमी ने आसाराम के प्रवचन में मशीन से टॉफियों की बौछार करने के कारण अपनी एक आंख फूटने का भी आरोप लगाया है। 
 
दूसरा केस सूरत के जहांगीरपुरा गांव के किसान अनिल व्यास ने किया है। यहां के आश्रम पर कई लोगों की जमीनें कब्जाने के आरोप हैं। व्यास आश्रम से अपनी 34,400 वर्ग मीटर जमीन वापस लेने का केस लड़ रहे हैं। व्यास का कहना है कि मामला अदालत में होने के बावजूद गुजरात सरकार ने 24 जनवरी 1997 को जमीन के अधिग्रहण को नियमित कर दिया था। हालांकि 8 दिसंबर 2006 को हाईकोर्ट ने जमीन के अधिग्रहण को गैरकानूनी करार दिया और फैसला किसान के पक्ष में दिया। इसके बाद आश्रम ने इस फैसले के खिलाफ डिविजन बेंच में अपील की थी। 
 
दिल्ली की विधवा महिला सुदर्शन कुमारी ने भी आसाराम के ट्रस्ट के खिलाफ केस दर्ज कराया है। महिला का कहना है कि उसे धोखा देकर कुछ कागजों पर साइन लिए गए थे जिसे बाद में राजौरी गार्डन में उनके मकान का ग्राउंड फ्लोर आश्रम को दान में दिया दिखाया गया। महिला ने कहा है कि 6 जुलाई 2000 को आश्रम के सत्संग में ले जाने के बहाने उसे जनकपुरी के सब-रजिस्ट्रार ऑफिस ले जाया गया। यहां उसे हिप्नोटाइज करके कुछ कागजों पर साइन ले लिए। बाद में नगर निगम अधिकारियों के आने पर उसे पता चला कि उसका ग्राउंड फ्लोर उससे ले लिया गया है। 
 
गुड़गांव के पास राजकोरी गांव में बने आश्रम के अधिकारियों पर फर्जी दस्तावेज देकर आश्रम का रजिस्ट्रेशन कराने का आरोप है। राजकोरी निवासी भगवानी देवी ने आसाराम के आश्रम पर अपनी जमीन कब्जाने पर दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली है।
 
सरकारी एजेंसियों ने भी आसाराम के ट्रस्ट पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के आरोप लगाए हैं। 2008 में बिहार स्टेट बोर्ड ऑफ रिलीजियस ट्रस्ट ने आसाराम के ट्रस्ट को अपनी 80 करोड़ रुपये की जमीन कब्जाने पर नोटिस दिया था। 
 
अप्रैल 2007 में पटना हाईकोर्ट से रिटायर्ड जज ने आसाराम बापू और उनके चेलों पर अपनी जमीन पर कब्जा करने की शिकायत दर्ज कराई थी।
रतलाम में आसाराम के ट्रस्ट को लंबी मुकदमे बाजी के बाद जमीन खाली करनी पड़ी थी।
 
जनवरी 2007 में राजकोट आश्रम में करीब 4.7 लाख रुपये की बिजली चोरी भी पकड़ी गई थी। इतने विवादित होने के बावजूद आसाराम और चर्चा में आते गए हैं। उन्हें गुजरात सरकार के सभी दफ्तरों में देखा जा सकता है और राज्य परिवहन निगम की बसों पर उनके फोटो और संदेश भी लिखे हुए हैं।
 
इन सभी आरोपों को आश्रम नकारता रहा है।

एक महीने में चार बच्चों की मौत
अभी हाल में आसाराम के दिल्ली गैंगरेप पर दिए बयान, गलती एक तरफ से नहीं होती है, से पूरे देश का ध्यान उनकी तरफ गया लेकिन गुजरात का उनका मोटेरा आश्रम जुलाई 2008 से ही लोगों की निगाह में है। उनके इस आश्रम के बाल केंद्र में दाखिला लेने के एक महीने बाद ही 3 जुलाई को दस साल के दो चचेरे भाइयों अभिषेक और दीपेश वाघेला की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी। बच्चों के परिवार वालों ने उनकी हत्या करने का आरोप लगाया था। 23 जनवरी 2013 को अहमदाबाद कोर्ट ने इस हत्या में आरोपी उनके आश्रम के सात शिष्यों को समन जारी किया था। पहले इन बच्चों के घरवालों को बताया गया था कि दोनों बच्चे आश्रम से भाग गए हैं। 
 
बच्चों के घरवाले एक महीने में आठ बार उनसे मिलने आश्रम गए थे। तीन जुलाई को उन्हें आश्रम से फोन पर पूछा गया कि क्या बच्चे घर पहुंचे हैं? लेकिन बच्चे घर पर नहीं थे। आश्रम में जाकर बच्चों के बारे में पूछने पर गुरुकुल के व्यवस्थापक पंकज सक्सेना ने उनसे पीपल के पेड़ के 11 चक्कर लगाकर अपने बच्चों के बारे में पूछने को कहा। परिवार वालों ने ऐसा ही किया पर कुछ नहीं हुआ। आश्रम वालों ने उन्हें पुलिस में शिकायत भी नहीं करने दी। अगली सुबह पुलिस में शिकायत दर्ज करने गए तो पुलिस ने शिकायत दर्ज करने के बजाय उन्हें ही डांटा। बाद में आश्रम के पास दोनों बच्चों के शव मिले लेकिन पुलिस ने फिर भी कार्रवाई नहीं की। बाद में मीडिया द्वारा मामले को उठाने पर आश्रम वालों ने पत्रकारों को ही पीटना शुरू कर दिया था। 
 
इस घटना के बाद आश्रम में तांत्रिक क्रियाएं करने के आरोपों को बल मिला। इस तरह की अफवाहें तो काफी समय से थीं।
 
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में आसाराम के ही दूसरे आश्रम में दो और बच्चे मरे पाए गए थे। ये बच्चे रामकृष्ण यादव (नर्सरी) और वेदांत मौर्या (पहली क्लास) स्टूडेंट थे। इन दोनों की लाश 31 जनवरी 2008 को हॉस्टल के टॉयलेट में मिली थी। गुस्साए लोगों ने आश्रम के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया था और इसे बंद करने की मांग की थी।
 
गुजरात में मृत मिले बच्चों के परिजनों ने मामले की जांच के लिए गठित जस्टिस डीके त्रिवेदी कमीशन के सामने कहा था कि उनके बच्चों की जान काले जादू और तांत्रिक क्रिया में गई थी। इस कमीशन का गठन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों के बढ़ते विरोध के बाद किया था। हालांकि कमीशन की कार्रवाई भी विवादों के घेरे में रही थी और गुजरात हाईकोर्ट ने कमीशन की आसाराम बापू और उनके बेटे पर कठोर न होने की निंदा भी की थी। कमीशन के सामने पेश होने पर भी आसाराम बिना इजाजत के कभी दूध पीने तो कभी अपने समर्थकों को संबोधित करने कमरे से बाहर निकल जाते थे।
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करीबियों ने छोड़ा साथ तो खुली पोल
आसाराम के करीबी और पूर्व सचिव राजू चांडाक और निजी फिजिशियन रहे अमृत प्रजापति ने आश्रम में कई गैरकानूनी धंधों के होने की बात कही थी। लेकिन त्रिवेदी कमीशन के सामने पेश होने से पहले चांडाक को तीन गोलियां मारी गईं और प्रजापति का आरोप रहा है कि उन पर आश्रम से जुड़े लोगों ने कम से कम छह बार हमला किया है। 
 
बीएएमएस की पढ़ाई करने वाले प्रजापति ने 'ओपन' पत्रिका को बताया था कि वह आश्रम में डॉक्टर की जगह खाली होने पर 1988 में पहली बार आसाराम से मिला था। उसे खाने और रहने के अलावा 15000 रुपये मासिक वेतन देना तय हुआ। उसे सूरत आश्रम में आयुर्वेदिक लैब बनाने का काम दिया गया। शिष्यों की संख्या बढ़ने पर आसाराम ने दवाइयों की गुणवत्ता कम करने पर जोर दिया। गाय के घी की जगह मिलावटी घी का इस्तेमाल होने लगा। प्रजापति कहते हैं कि वह आश्रम के भ्रष्टाचार और महिलाओं के शोषण का गवाह हैं। वह कहते हैं, 'उनका निजी फिजिशियन बनने पर मैंने ये चीजें बहुत नजदीकी से देखी हैं। मैं आसाराम के कमरे में कभी भी जा सकता था। उनकी मां की मौत होने के अगले दिन मैं उनके दिल्ली के आश्रम में गया। वहां एक महिला लेटी हुई थी...। इसके आगे मैं नहीं देख सका।' 
 
प्रजापति बताते हैं कि धमकाए जाने पर 20 अगस्त 2005 को उन्होंने आश्रम छोड़ दिया। सितंबर 2005 को उन्हें गाजियाबाद में करीब 15 लोगों ने पीटा। उन्होंने प्रजापति को आसाराम के खिलाफ बोलने पर जान से मारने की धमकी दी। 
 
इस बारे में आसाराम के प्रवक्‍ता का कहना था कि प्रजापति कभी बापू के कर्मचारी नहीं थे और उन्‍हें आश्रम से निकाला गया था।
 
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करीबी की मौत के बाद संदेह में 
सबसे ताजा मामला करीब एक हफ्ते पुराना है। जबलपुर स्थित उनके आश्रम के एक शिष्‍य की रहस्‍यमय मौत को लेकर वह और उनका आश्रम सवालों के घेरे में आए हैं। मृतक राहुल पचौरी के परिजनों का कहना है कि वह आसाराम का करीबी था और उनके कई राज जानता था। आश्रम में बनने वाली दवाइयों में गडबड़ी से संबंधित बातें वह आसाराम को बताने वाला था। राहुल के पिता इन्‍हीं सब बातों को अपने बेटे की 'हत्‍या' की वजह बता रहे हैं। पुलिस अभी इस आरोप की जांच कर रही है।
 
 
 

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