जर्जर ढांचे का नतीजा
Updated on: Tue, 31 Jul 2012 06:05 AM (IST)
पहले से ही बिजली संकट से जूझ रहे देश में उत्तरी ग्रिड फेल होने
से सात राज्यों में जनजीवन जिस तरह बाधित हुआ उससे एक बार फिर यह साबित
हुआ कि भारत में बिजली का ढांचा अभी भी जर्जर बना हुआ है। ग्रिड फेल होने
से जिस बड़े पैमाने पर संकट उत्पन्न हुआ और उसके चलते उत्तार भारत के करोड़ों
लोग प्रभावित हुए उससे भारत की ऊर्जा क्षमता पर नए सिरे से प्रश्नचिह्न
लगा है। चिंताजनक केवल यह नहीं है कि ग्रिड फेल हो गया, बल्कि यह भी है कि
18 घंटे बाद भी यह नहीं जाना जा सका कि वस्तुत: ऐसा किन कारणों से हुआ? यही
कारण रहा कि राज्यों में दोषारोपण शुरू हो गया। दिल्ली की मानें तो ग्रिड
फेल होने के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जिम्मेदार हैं, क्योंकि
इन्होंने अपने कोटे से च्यादा बिजली ले ली। हालांकि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री
भी कुछ इसी नतीजे पर पहुंचते दिखे, लेकिन उनके पास इस सवाल का कोई जवाब
नहीं कि जब कुछ राच्य जरूरत से च्यादा बिजली ले रहे थे तो उन्हें रोका
क्यों नहीं जा सका? क्या ग्रिड इसलिए फेल हुआ, क्योंकि निगरानी व्यवस्था भी
फेल हो गई थी? इन सवालों के जवाब सामने आना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि
ग्रिड फेल होने के लिए कोयले की कमी को भी जिम्मेदार माना जा रहा है।
सच्चाई जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कोयले का उत्पादन और उसकी
ढुलाई बुरी तरह प्रभावित है। विडंबना यह है कि विभिन्न केंद्रीय
मंत्रालयों की तकरार के कारण ही कोयले का मसला एक लंबे अर्से से कलह का
कारण बना हुआ है। जितना गंभीर ग्रिड का फेल होना है उतना ही यह भी कि बिजली
की आपूर्ति बहाल करने में आवश्यकता से अधिक समय लग गया। किसी आपदा की
स्थिति में इतना व्यापक बिजली संकट भयावह परिणामों वाला हो सकता है।
हालांकि केंद्रीय बिजली मंत्री ने ग्रिड फेल होने के कारणों की जांच के लिए
एक समिति गठित कर दी है, लेकिन इसमें संदेह है कि यह समिति उन कारणों पर
सही ढंग से प्रकाश डाल सकेगी जिनके चलते इतना बड़ा संकट पैदा हुआ। संदेह इस
पर भी है कि इस समिति की सिफारिशों पर सही ढंग से विचार किया भी जाएगा या
नहीं? ऐसा इसलिए, क्योंकि इसके पहले उत्तारी ग्रिड फेल होने पर ही जो समिति
बनाई गई थी उसकी सिफारिशों पर आधे-अधूरे ढंग से अमल हुआ। ग्रिड फेल होने
से उत्पन्न संकट पर ऊर्जा मंत्री ने जिस तरह यह कहकर अपने तंत्र को बेहतर
साबित करने की कोशिश की उसका कोई महत्व नहीं कि 2008 में जब अमेरिका में
बिजली संकट पैदा हुआ था तो वहां के लोगों ने भारत से मदद मांगी थी। तथ्य यह
है कि अमेरिका ने बिजली संकट पर काबू पा लेने के कई दिनों बाद भारत से यह
जानकारी हासिल करने पर विचार किया था कि वह ग्रिड फेल होने की स्थिति में
किस तरह संकट से पार पाता है। बेहतर हो कि ऊर्जा मंत्री यह समझें कि बिजली
के ढांचे में व्यापक सुधार की जरूरत है और इसके लिए मौजूदा तौर-तरीकों से
काम चलने वाला नहीं है। भारत बिजली संकट के मुहाने पर बैठा है। चिंताजनक यह
है कि यह संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है। इस स्थिति में ऐसे दावे
करना व्यर्थ है कि पिछले वर्षो की अपेक्षा च्यादा बिजली पैदा की जा रही है,
क्योंकि चंद राच्यों को छोड़कर देश के किसी भी हिस्से को पर्याप्त बिजली
नहीं मिल पा रही है।
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