बेअसर कानून
Updated on: Sun, 15 Jul 2012 03:17 PM (IST)
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए कानून का दिल्ली में
कोई खास असर न होना निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे न सिर्फ राजधानी
में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या कम बनी हुई है, अपितु कन्या भ्रूण
हत्या में लिप्त लोगों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई भी संभव नहीं हो पा रही है।
दिल्ली में लिंगानुपात यह दर्शाता है कि कन्या भ्रण हत्या रोकने के लिए
बनाया गया प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट यहा दम तोड़ रहा है। सरकार
के बेटी बचाओ अभियान के बावजूद राजधानी में छह वर्ष तक की लड़कियों की
संख्या में कमी जारी है। कानून को धता बताकर लोग भ्रूण में ही कन्या का पता
लगाकर उनकी हत्या कर दे रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे प्रमुख वजह
अल्ट्रासाउंड मशीन का बढ़ता प्रयोग है। नियमानुसार विशेषज्ञ डॉक्टर ही इसका
प्रयोग कर सकते हैं लेकिन दिल्ली में झोलाछाप डॉक्टर धड़ल्ले से इसका
प्रयोग कर रहे हैं और उन पर रोक लगाने के सरकारी प्रयास विफल ही नजर आते
हैं। दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग की पहल पर पिछले दो महीने में
पीएनडीटी एक्ट के तहत एक दर्जन क्लीनिकों के संचालकों के खिलाफ मामला दर्ज
किया गया है। लेकिन इस सच से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि पीएनडीटी एक्ट
के तहत दिल्ली में आज तक किसी को भी सजा नहीं हुई है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ दिल्ली में ही पीएनडीटी एक्ट बेअसर है, केंद्रीय
स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट चौंकाने वाली तस्वीर पेश करती है। इसके
अनुसार देश में 17 साल में सिर्फ 55 लोगों को इस एक्ट के उल्लंघन का दोषी
पाया गया है और फिलहाल 902 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज है। ऐसे में इस बात
का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि इस कानून को लागू करने को लेकर
कितनी गंभीरता दर्शाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण
दिल्ली को इस मामले में पहल करनी चाहिए। दिल्ली सरकार को पूरी सख्ती के साथ
इस कानून का पालन सुनिश्चित करना चाहिए। अल्ट्रासाउंड सेंटरों का समय-समय
पर निरीक्षण किया जाना चाहिए और दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित
की जानी चाहिए ताकि दिल्ली में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या में
वृद्धि हो और वह इस कानून के पालन के मामले में अन्य राज्यों के समक्ष एक
उदाहरण प्रस्तुत कर सके।
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