22.7.12

अंधे विश्वास की पीड़ा


बहादुरगढ़ में कमेटी डालने के नाम पर करोड़ों रुपये बटोर कर दंपती के फरार होने से पुलिस, प्रशासन से अधिक आम आदमी के विवेक पर प्रश्नचिह्न लग गया है। ऐसे फंदेबाज और धंधेबाज हर शहर, हर गली में सक्रिय हैं, हर शहर में ऐसे दर्जनों मामले हो चुके परंतु आम आदमी अब तक जागरूक नहीं हो पाया। ठगी के इस मायाजाल में फंसने के लिए आम आदमी को ही सबसे अधिक जिम्मेदार माना जा सकता है। मोटे ब्याज और तत्काल धन वापसी का लालच बुद्धि, विवेक का हरण कर लेता है और आम दुकानदार, दिहाड़ी मजदूर, फैक्टरी कर्मचारी ठगों की तरफ उसी तरह ख्िाचे चले जाते हैं जैसे चीनी की ओर चींटी और चुंबक की ओर लौह कण। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि गृहिणियां सर्वाधिक संख्या में इस जाल में न केवल स्वयं फंसती हैं बल्कि पति समेत अन्य परिजनों को भी धकेलती हैं। विडंबना देखिए कि कमेटी डालते वक्त कोई व्यक्ति पुलिस या प्रशासन को सूचना नहीं देता तथा न ही रुपये इकट्ठे करने वाले की पृष्ठभूमि के बारे में तफ्तीश करता। बाद में लुट पिट जाने के बाद सब पुलिस, प्रशासन और सरकार पर ठीकरा फोड़ते हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक चिटफंड कंपनियों ने लाखों लोगों को जमकर लूटा। रातों रात कंपनियों के दफ्तरों पर ताले लग जाते और सुबह लोग अपने सपनों को चूर-चूर पाकर विलाप करते। चिट फंड कंपनियों का बोरिया बिस्तर समेटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के शिकंजा कसने का इतना असर तो हुआ कि बड़े शहरों में अब एक भी ऐसा दफ्तर दिखाई नहीं देता। हालांकि छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में इक्का-दुक्का ऐसी कंपनियां अपना उल्लू सीधा कर ही लेती हैं। अब चिंता की बात यह है कि उन चिट फंड कंपनियों का स्थान कमेटी डालने वालों ने ले लिया। 20 या 50 सदस्य बना कर मोटे लाभ का लालच दे कर हर माह या 15 दिन के अंतराल पर धन जमा करवाया जाता है। पैसे लेने या देने का कोई रिकार्ड या प्रमाण किसी के पास नहीं होता। इस अंधे विश्वास को क्या नाम दिया जाए? सरकार, सामाजिक संस्थाएं, प्रबुद्ध नागरिक, प्रशासनिक और बैंक अधिकारी आमजन को जागरूक करें तो शायद विवेक जाग जाए। गैरकानूनी व आपराधिक काम को बढ़ावा देने में आमजन हिस्सेदार बनना बंद करे । प्रशासन भी अपने खुफिया नेटवर्क के माध्यम से ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रखे जो धन समेटने की व्यूहरचना करते हैं।

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