आत्महत्या क्यों?
Updated on: Sat, 21 Jul 2012 03:01 PM (IST)
वर्तमान समय में तनाव, परेशानी और मुसीबत जीने का एक हिस्सा बन
चुकी है। लगभग हर व्यक्ति को इससे दो-चार होना पड़ता है। हर कोई तनाव,
मुसीबतों व परेशानियों से लड़ना चाहता है। कुछ लड़ कर बाहर निकल आते हैं, तो
कुछ हार कर मौत को गले लगा लेते हैं। फिर भी वह पीछा नहीं छोड़ती। ऐसे में
क्या तनाव, परेशानी व मुसीबतों से मुंह मोड़ा जा सकता है? या फिर उससे हार
कर आत्महत्या का रास्ता चुन लेना मुनासिब है? गुरुवार को दमदम और बेलघड़िया
स्टेशन के बीच ट्रेन के आगे कूद कर एक ही परिवार के तीन लोगों ने जान दे
दी। वह भी सिर्फ इसीलिए क्योंकि उन्हीं की बहू ने उन लोगों पर वधु उत्पीड़न
का केस कर दिया था। पुलिस के भय से माता-पिता और बेटा भागे-भागे फिर रहे
थे। और, जब शायद उन लोगों को दूसरा कोई रास्ता नहीं दिखा, तो अपनी जीवनलीला
ही समाप्त कर ली। ऐसा नहीं है कि सपरिवार जान देने की यह पहली और आखिरी
घटना है। आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति एचआईवी-एड्स और कैंसर से भी भयानक व
लाइलाज बीमारी बन चुकी है। विश्वभर में हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति
खुदकुशी कर रहा है। यदि सिर्फ भारत की बात करें, तो सरकारी आकंड़ों के
मुताबिक वर्ष 2010 में करीब 1.87 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी। पर, ऐसा
क्यों हो रहा है? इसकी वजह क्या है? मनोचिकित्सकों से लेकर पुलिस अधिकारी
तक बढ़ते आत्महत्या की प्रवृत्ति को लेकर कई वजहों को दोषी बता रहे हैं।
इनमें जीवन-यापन में परेशानी, पारिवारिक कलह, सामाजिक व आर्थिक दिक्कतें,
तनाव और बीमारी समेत कई और वजह हो सकती हैं। पर, हम मानव जीवन के मूल्यों
को भूला कर आत्महत्या जैसी कायरतापूर्ण निर्णय क्यों कर रहे हैं। कहा जाता
है 'बड़े यतन कर मानुष तन पावा'। यानी हमे बहुत कठिनाई से मानव जीवन मिला।
उसे ऐसे अकाल मौत का ग्राह क्यों बना दें? गुरुवार को अपनी इहलीला समाप्त
करने वाले रजत पाल की पत्नी प्रियंका ने वधु उत्पीड़न का मुकदमा कर दिया।
रजत उसके पिता ब्रजदुलाल व मां अनिता परेशान हो गई। डर कि पुलिस उन्हें
गिरफ्तार कर लेगी और जेल में बंद कर देगी। इस भय से वे लोग आतंकित हो कर
मारे-मारे फिर रहे थे। और, जब लगा कि अब कोई चारा नहीं बचा तो तीनों ने जान
देने की ठान ली। उत्पीड़न व परेशानी से वधु आत्महत्या करती है, यह तो आम
है। परंतु, वधु अत्याचार का मामला करने पर सपरिवार आत्महत्या की एक अनोखी
घटना है। ऐसे जान देने से मुसीबत से तो छुटकारा मिल गया। पर, आत्मा, जिसे
शास्त्रों में कहा गया है, अमर रहती है। उसे कभी भी सुकून मिलेगी। शायद
नहीं। इसीलिए हम सभी को परेशानी व मुसीबतों से लड़ना चाहिए। न कि उससे मुंह
मोड़ कर अपना अमूल्य जीवन को इसी तरह नष्ट करना चाहिए।
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