पानी की बर्बादी
Updated on: Sat, 14 Jul 2012 02:32 PM (IST)
एक ओर पंजाब का भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है जबकि दूसरी ओर
पंजाब में परंपरा के नाम पर पानी की बर्बादी की जा रही है। मानसून कमजोर
होने के कारण इस वर्ष कम बारिश की आशंका भी जताई जा रही है। प्रदेश में
पानी की रिचार्जिग के लिए भी कोई ठोस कानून नहीं है। राज्य में किसानों को
बिजली पर सब्सिडी दिए जाने से खेती के लिए निकाला जाने वाला पानी भी
आवश्यकता से अधिक निकाला जा रहा है। स्थिति यह है कि शहरों में अनेक
स्थानों पर 52 सेंटीमीटर और गांवों में 27 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से
भूजल का स्तर गिर रहा है। इसे लेकर सरकार तो चिंतित है ही पर्यावरण
विशेषज्ञ भी गंभीर चिंता जाहिर कर रहे हैं। शहरों में भी पानी की बेतहाशा
बर्बादी की जाती है और लोगों को जागरूक करने का कोई प्रयास सरकारी स्तर पर
नहीं किया जाता है। पानी की बर्बादी का एक उदाहरण गत दिवस अमृतसर के
राजासांसी हवाई अड्डे पर देखने को मिला, जहां स्पाइस जेट की नई उड़ान के
दिल्ली से पहुंचने पर उसे पानी की तोपों से सलामी दी गई। अनुमान है कि इस
सलामी में करीब 25000 लीटर पानी बर्बाद किया गया। पानी के फव्वारों से पूरे
विमान को नहलाया गया। देखा जाए तो इसकी कोई जरूरत नहीं थी। इससे पानी के
नुकसान के सिवा कुछ नहीं मिला और जाहिर है कि यह पानी पंजाब के बाहर से
नहीं लाया गया था बल्कि उसका दोहन यहीं की धरती से किया गया था। यह ठीक है
कि इस पानी की कीमत किसी न किसी ने चुकाई होगी किंतु यह बात समझ से परे है
कि ऐसी किसी परंपरा का निर्वाह क्यों किया जा रहा है जिसके कारण यहां आम
लोगों को भविष्य में परेशानी उठानी पड़े। यह सब कुछ स्थानीय अधिकारियों,
यहां तक कि स्थानीय सांसद के सामने हुआ और हैरानीजनक है कि किसी ने इस पर
कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई। सरकार को चाहिए कि वह ऐसी तमाम परंपराओं पर रोक
लगाए जो पंजाब के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हों, चाहे वह पानी के
दोहन का मामला हो अथवा पटाखे फोड़ कर खुशी मनाने जैसा वायु प्रदूषण फैलाने
वाला कोई मामला हो। सरकार को इसके लिए अलग से कानून बनाना चाहिए।
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