शिक्षकों पर लाठीचार्ज
Updated on: Wed, 18 Jul 2012 03:10 PM (IST)
स्थायी करने की मांग को लेकर गत दिवस श्रीनगर में सचिवालय का
घेराव कर रहे रहबर-ए-तालीम शिक्षकों पर पुलिस का बल प्रयोग निंदनीय है।
होना तो यह चाहिए था कि कई महीनो से समय-समय पर आंदोलन कर रहे इन शिक्षकों
की मांगों को पूरा करने के लिए सरकार कोई ठोस प्रयास करती ताकि समस्या का
समाधान होता और शिक्षक स्कूलों में पूरी ईमानदारी से पढ़ाते मगर जिस प्रकार
शिक्षकों पर लाठीचार्ज हुआ है, उससे विवाद बढ़ेगा और शिक्षकों के आंदोलन
से बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होगी। सरकार यह भलीभांति जानती है कि ये
शिक्षक कई वर्षो से राज्य के दूरदराज क्षेत्रों में मात्र दो हजार रुपये
वेतन पर विभिन्न सरकारी स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं जो महंगाई के
इस दौर में बहुत कम है। इनकी मांग है कि उनका वेतन बढ़ाने के अलावा पांच
वर्ष के कार्यकाल को पदोन्नति में शामिल किया जाए, जो जायज भी है। सरकार को
यह नहीं भूलना चाहिए कि दूरदराज क्षेत्रों में स्थित अधिकांश प्राइमरी
स्कूल इन्हीं शिक्षकों के सहारे चल रहे हैं। बेहतर तो यह होता कि जब यह
शिक्षक सरकार के समक्ष अपनी मांगें रख रहे थे तो वह उनकी समस्याओं के
निपटारे के लिए कदम उठाती परंतु इसे विडंबना ही कहेगे कि सरकार भी तब तक
किसी की मांगों पर विचार नहीं करती जब तक कर्मचारी आंदोलन न करे।
रहबर-ए-तालीम शिक्षकों की मांगें कोई नई नहीं हैं और ये इन्हें मनवाने के
लिए कई वर्षो से संघर्ष कर रहे है। अगर सरकार इसी तरह उनकी मांगों को
नजरअंदाज करती रही तो इसका सीधा असर विद्यार्थियों की पढ़ाई पर पड़ेगा।
दूरदराज क्षेत्रों में पहले से ही पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं है और इन हालात
में कोई बेहतरी की अपेक्षा भी नहीं कर सकता। जब तक शिक्षकों की हालत में
सुधार नहीं होगा तबतक स्कूलों की स्थिति में भी सुधार की उम्मीद करना
बेमानी होगा। सरकार को चाहिए कि वे शिक्षकों को विश्वास में ले और बातचीत
के माध्यम से उनकी मांगों को पूरा करने के लिए तत्काल कदम उठाए। वहीं
शिक्षकों को भी चाहिए कि वे सरकार के साथ टकराव का रास्ता छोड़कर बातचीत
करें ताकि राज्य में कहीं पर भी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो।
[स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर]
[स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर]
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